सरगुजा शिक्षा महकमे का ‘नियुक्ति खेल’: तत्कालीन डीईओ पर गड़बड़ी के आरोप।
संयुक्त संचालक ने तलब की 11 बिंदुओं पर रिपोर्ट, कांग्रेस बोली – जांच पूरी होने तक अशोक सिन्हा और बृजकिशोर तिवारी को हटाया जाए।

सरगुजा का शिक्षा विभाग इन दिनों बुरी तरह विवादों में है। नियुक्तियों और पदस्थापना को लेकर उठे सवालों ने पूरे तंत्र की साख पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। मामला तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी सरगुजा अशोक कुमार सिन्हा से जुड़ा है, जिन पर आरोप है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में नियमों को ताक पर रखकर पदस्थापना आदेश जारी किए और विभागीय जांच प्रक्रिया को पूरी तरह दरकिनार कर दिया।
शिकायत और जांच की मांग
12 सितंबर 2025 को संयुक्त संचालक, शिक्षा सरगुजा संभाग, अंबिकापुर ने एक गंभीर पत्र जारी किया।
इसमें कहा गया कि तत्कालीन डीईओ अशोक कुमार सिन्हा ने बिना विभागीय जांच और प्रक्रिया पूरी किए बृजकिशोर तिवारी (सहायक ग्रेड–02) की पदस्थापना कर दी। इस पर न केवल अनियमितता का आरोप लगा है, बल्कि यह भी आशंका जताई गई है कि पूरे घटनाक्रम में नियमों से खिलवाड़ किया गया।
संयुक्त संचालक ने जिला शिक्षा अधिकारी अंबिकापुर से 11 बिंदुओं पर विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। इसमें अतिरिक्त व्याख्याताओं की सूची से लेकर काउंसलिंग प्रक्रिया, रिक्त पदों की स्थिति, आदेश जारी करने वाली शाखा और उन अफसरों के नाम तक शामिल हैं, जिन्होंने इस प्रक्रिया में भूमिका निभाई। आदेश में साफ लिखा गया है कि यह शिकायत गंभीर प्रकृति की है और तीन दिन के भीतर जवाब जरूरी है।
कांग्रेस का मोर्चा – पद से हटाने की मांग
इसी मामले में अब राजनीति भी गरमा गई है। छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी (अल्पसंख्यक विभाग) के प्रदेश महासचिव परवेज आलम गांधी ने पत्र जारी कर बड़ा हमला बोला है। कांग्रेस ने कहा कि जब तक जांच पूरी नहीं होती, तब तक तत्कालीन डीईओ अशोक कुमार सिन्हा और बृजकिशोर तिवारी दोनों को पद से हटाना आवश्यक है।
कांग्रेस का तर्क है कि अगर दोनों अधिकारी अपने-अपने पदों पर बने रहते हैं, तो वे न केवल दस्तावेजों में छेड़छाड़ कर सकते हैं बल्कि जांच की निष्पक्षता पर भी असर डाल सकते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस ने तत्कालीन डीईओ के खिलाफ कार्रवाई की मांग तेज कर दी है।
नियुक्तियों का दलाल तंत्र?
दरअसल, यह विवाद शिक्षा विभाग के उस ‘अंधेरे कोने’ की ओर इशारा करता है, जहां नियुक्तियां और पदस्थापनाएं अक्सर ‘पढ़ाई-लिखाई’ की जगह ‘पैसे और रसूख’ का खेल बन जाती हैं। सवाल यह है कि—
- क्या अशोक कुमार सिन्हा अकेले इस खेल में शामिल थे, या पूरा तंत्र इसमें लिप्त है?
- क्या बृजकिशोर तिवारी को बिना जांच का तोहफा महज एक गलती थी या इसके पीछे कोई गहरी साजिश?
- और क्या यह मामला भी विभागीय फाइलों में दब जाएगा या दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी?
जनता का सवाल – शिक्षा या धंधा?
शिक्षा विभाग से आम जनता की अपेक्षा होती है कि यहां बच्चों का भविष्य संवारने की नीतियां बनेंगी, लेकिन जब अधिकारी ही नियमों की धज्जियां उड़ाकर ‘पदों की अदला-बदली’ का खेल खेलते हैं, तो भरोसा टूटता है। आखिर क्यों हर बार शिकायत आने पर जांच का ढोल पीटा जाता है, और फिर कुछ दिन बाद सबकुछ ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है?
इस संबंध में श्री दिनेश झा, जिला शिक्षा अधिकारी से उनके मोबाइल नंबर +919910597761 पर जानकारी ली गई; तब उन्होंने बताया कि, “डीईओ को हटा दिया गया है। और मामले में कमिश्नर साहब स्वयं जांच कर रहे हैं, जो भी दोषी होगा उन पर करवाई की जावेगी।”
मामला गरम है। संयुक्त संचालक ने विभागीय जांच का शिकंजा कस दिया है और कांग्रेस ने भी दबाव बढ़ा दिया है। आने वाले दिनों में यह साफ हो जाएगा कि सरगुजा शिक्षा विभाग में सच की जीत होगी या सत्ता का खेल जारी रहेगा।
“सरगुजा शिक्षा विभाग में जांच का ढोल फिर बजा, आदेशों की बौछार फिर हुई, लेकिन हकीकत वही – खोदा पहाड़, निकली चुहिया। फर्क इतना कि इस बार चुहिया भी अफसरों की गोद में आराम फरमा रही है।”