Welcome to CRIME TIME .... News That Value...

Corruption

देवभोग : पंचायतों में सूची पट्टिका के नाम पर सरपंचों से वसूली का दबाव

3,000 का बोर्ड पंचायतों को 20,000 रुपये में थमाया जा रहा है। नवनिर्वाचित सरपंचों से जबरन वसूली की शिकायत पर प्रशासन में हलचल।

रायपुर hct : गरियाबंद जिला अंतर्गत देवभोग ब्लॉक के ग्राम पंचायतों में इन दिनों विकास कार्यों से जुड़ी राशि का नया खेल खुलकर सामने आ गया है। नवनिर्वाचित सरपंचों को नाम पट्टिका (बोर्ड) लगाने के नाम पर अघोषित ठेकेदारों की गठजोड़ मंडली खुलकर सक्रिय हो चुकी है। मामला इतना संगीन है कि 3,000 रुपये का बोर्ड 20,000 रुपये में पंचायतों को थमाया जा रहा है। यानी, असली कीमत से करीब सात गुना ज्यादा का बिल बनाकर वसूली की जा रही है। यह न केवल आर्थिक अनियमितता है बल्कि पंचायतों को मिलने वाले विकास निधि का खुला दुरुपयोग भी है।

20 हज़ार का बिल, 3 हज़ार की असलियत

खुलासे में सामने आया है कि जिन बोर्डों की असली कीमत बाज़ार में 2,500 से 3,000 रुपये से अधिक नहीं है, उन्हें 20,000 रुपये प्रति बोर्ड के हिसाब से पंचायतों को थमाया गया। “डिजिटल प्रिंटिंग प्रेस” नामक संस्था से जारी नकली जैसे कैश मेमो से यह ठगी की जा रही है। बता दें कि बिल में प्रिटिंग प्रेस का एड्रेस नही है, जबकि बकायदा GST नम्बर दर्शाया गया है जो जाँच के दायरे में आता है।  दस्तावेज़ों के मुताबिक, अलग-अलग पंचायतों में एक ही दर और एक ही ढर्रे से बिल बनाकर राशि की वसूली की जा रही है।

उदाहरण के तौर पर, ग्राम पंचायत करलागुडा और ग्राम पंचायत सुकलीभाठा (पुराना) के लिए जारी बिल में यही पैटर्न देखा गया— एक बोर्ड, 20,000 रुपये। दोनों कैश मेमो पर हस्ताक्षर और मुहर के साथ राशि को वैध दिखाने की कोशिश की गई है। सुकली भाटा (पुराना) के पंचायत सचिव गौरीशंकर यादव से जब इस सम्बन्ध में जानकारी ली गई, तो उसने बताया की उनके द्वारा 18 हजार रुपये का पेमेंट किया है। 

शिकायत और प्रशासनिक हलचल

इस पूरे खेल की शिकायत हरिशंकर मांझी, अध्यक्ष भारतीय जनता युवा मोर्चा देवभोग ने की है। उनका आरोप है कि नवनिर्वाचित सरपंचों और पंचों के नाम अंकित करने के लिए जबरन बोर्ड लगवाया जा रहा है और इसके एवज में मोटी रकम वसूली की जा रही है। शिकायत पर अनुविभागीय अधिकारी (रा.), देवभोग ने संज्ञान लेते हुए पूरे प्रकरण की जांच का आदेश जारी कर दिया है।

आदेश में साफ लिखा गया है कि आवेदक द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच कर नियमानुसार कार्रवाई की जाए और दोषियों के खिलाफ कदम उठाए जाएं। फिलहाल मामले ने पंचायतों के गलियारों से लेकर जिला मुख्यालय तक हलचल मचा दी है।

पंचायत निधि पर डाका

गौर करने वाली बात यह है कि ये बोर्ड लगाने का कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है। पंचायत प्रतिनिधियों के नाम दीवार लेखन से भी अंकित किए जा सकते हैं, जिससे न केवल पारदर्शिता बनी रहती है बल्कि अतिरिक्त खर्च से भी बचा जा सकता है। लेकिन अघोषित ठेकेदारों और कुछ अंदरूनी मिलीभगत के चलते पंचायत निधि का खुलेआम बंदरबांट हो रहा है।

ग्रामीणों का कहना है कि विकास कार्यों के लिए जो राशि पंचायतों को मिलती है, उसी पर यह डाका डाला जा रहा है। अगर 20 हज़ार रुपये का बोर्ड हर पंचायत से जबरन वसूला जाएगा तो करोड़ों की राशि इस भ्रष्ट तंत्र में समा जाएगी।

सरपंचों पर दबाव और भय का माहौल

नवनिर्वाचित सरपंचों के सामने यह बोर्ड घोटाला किसी “अघोषित टैक्स” की तरह सामने आ रहा है। ठेकेदार और उनसे जुड़े लोग दबाव बनाकर सरपंचों से बिल पास कराने की कोशिश कर रहे हैं। कई सरपंचों ने तो मजबूरी में बिलों पर हस्ताक्षर भी कर दिए हैं, जबकि कुछ लोग अब भी इसका विरोध कर रहे हैं।

शिकायतकर्ता ने अपील की है कि अगर किसी भी पंचायत प्रतिनिधि पर बोर्ड के नाम से अवैध वसूली का दबाव बनाया जाता है तो वे तत्काल मोबाइल नंबर 6260446183 पर संपर्क करें। यह नंबर उन प्रतिनिधियों के लिए एक तरह से “हेल्पलाइन” की तरह जारी किया गया है ताकि उन्हें न्याय मिल सके।

बड़ा सवाल : दीवार लेखन से क्यों परहेज?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब बोर्ड के बजाय दीवार लेखन के जरिए नामों का उल्लेख किया जा सकता है, तो आखिर किसके हित में 20 हज़ार का बोर्ड पंचायतों पर थोपे जा रहे हैं? क्या यह पूरा खेल ठेकेदार-मित्र मंडली को फायदा पहुंचाने के लिए रचा गया है?

गांवों में जहां अब भी सड़क, पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी है, वहां जनता का पैसा बोर्डों पर उड़ाना किस हद तक जायज़ है?

प्रशासन की अगली परीक्षा

अब पूरा मामला प्रशासन की टेबल पर है। जांच में यह साबित करना मुश्किल नहीं होगा कि बोर्ड की असल कीमत कितनी है और बिल में कितनी हेराफेरी की गई है। असली चुनौती होगी इस वसूली सिंडिकेट को तोड़ने और जिम्मेदारों पर कार्रवाई करने की।

अगर प्रशासन ने इसे हल्के में लिया, तो यह बोर्ड घोटाला भविष्य में पंचायतों के विकास के लिए मिलने वाली राशि पर और भी गहरी चोट करेगा। लेकिन अगर कड़ी कार्रवाई हुई तो यह मामला भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकता है।

यह खबर केवल एक बोर्ड की नहीं है, बल्कि उस पूरे तंत्र की पोल खोलती है जो ग्राम पंचायतों की गाढ़ी कमाई पर डाका डालने में माहिर हो चुका है।

मुकेश सोनी, संवाददाता
whatsapp

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page