Welcome to CRIME TIME .... News That Value...

Corruption

गरियाबंद में करोड़ों की मिल्क पेस्ट्यूराइजेशन मशीन धूल फांक रही

दूध उबलने से पहले ही ‘राजनीतिक तापमान’ गिरा - भ्रष्ट तंत्र की कड़ाही में बस मलाई तैरती रह गई

जितने हरामखोर थे क़ुर्ब-ओ-जवार में, परधान बनकर आ गए पहली कतार में…

अदम गोंडवी साहब की ये पंक्ति मुझे अक्सर झकझोर जाती है। वजह साफ़ है, क्योंकि यह हमारे लोकतंत्र के उस कटु सच पर फिट बैठती है, जिसमें जनता अपने खून-पसीने की कमाई से नेताओं को गद्दी सौंपती है, और वे, अपवादों को छोड़ दें तो, इतने हरामखोर, मक्कार और अशिक्षित निकलते हैं कि नीति-निर्धारण उनके एजेंडे में कभी होता ही नहीं।
देश को आगे ले जाने के लिए एक और जमात भी है — आईएएस, आईपीएस जैसी तथाकथित बुद्धिजीवी लॉबी; जो खुद को देश का दिमाग मानती है। अफ़सोस, यही जमात आज इस मुल्क के लिए कोढ़ बन चुकी है।

गरियाबंद hct : जिले के ग्राम चिखली में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में “रीपा योजना” के तहत करीब एक करोड़ रुपये की लागत से “दूध पाश्चुरीकरण मशीन” (Milk Pasteurization Machine) लगाई गई थी। सत्ता परिवर्तन के साथ ही इस परियोजना की सांस अटक गई। यह मशीन शबरी बनकर किसी नए ‘विष्णु अवतार’ का इंतजार करती रही…; संयोग देखिए, इस बार विष्णु ने अवतार नहीं लिया; बल्कि खुद अवतरित हुए हैं, और भी उसे सुध नही।

रिबन, फोटोशूट, और गायब रणबांकुरे

स्थापना के समय कलेक्टर से लेकर प्रशासन के बड़े-बड़े चेहरे वहां मौजूद थे। रिबन कटे, फोटो खिंची, भाषणबाज़ी हुई, विज्ञापन बंटे, और अख़बारों में योजनाओं का गुणगान छप गया। लेकिन आज वही चेहरे गधे के सींग की तरह ग़ायब हैं। यह वही रणबांकुरे थे, जिनसे उम्मीद थी कि वे एक लड़ाई छेड़ेंगे — मगर उन्होंने तो सिर्फ़ उद्घाटन की नौटंकी निभाई और चलते बने।

महिला जनप्रतिनिधि का जवाब – ‘ढांक के तीन पांत’

ग्राम की महिला जनप्रतिनिधि से पूछा गया कि मशीन अब तक क्यों नहीं चली, तो उन्होंने सरकारी सच्चाई का निचोड़ परोस दिया। उनका कहना था –

बिना एक फूटी कौड़ी के, ईमानदारी की चौकीदारी 

करीब 11 महीने से इस मशीन की रखवाली के लिए नियुक्त कर्मचारी द्वारका रोज़ाना ड्यूटी देता है। न उसे अब तक एक फूटी कौड़ी पगार मिली, न किसी ने उसकी सुध ली। लेकिन द्वारका की ईमानदारी यह कि उसने इस करोड़ों की मशीन को छोड़कर जाना मंज़ूर नहीं किया। द्वारका कहते हैं – “यहां बड़ी-बड़ी मशीनें रखी हैं, अगर मैं छोड़ दूं तो कुछ भी नहीं बचेगा।”
वेतन न मिलने के बावजूद वह जिम्मेदारी और उम्मीद के सहारे चौकीदारी कर रहे हैं, जबकि इस वजह से वे कहीं और काम भी नहीं कर पा रहे। व्यवस्था ने उसे भूखा रखा, मगर उसने व्यवस्था की रखवाली में एक दिन की भी कोताही नहीं की। सवाल यह है कि जिस सिस्टम में द्वारका जैसे लोग भी हाशिये पर धकेले जाते हैं, वहां दूध तो क्या, इंसानियत भी पेस्ट्यूराइज हो जाती है।

तकनीकी सच्चाई और योजना का खोखलापन

मिल्क पेस्ट्यूराइजेशन एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें दूध को तय तापमान (63°C से 72°C) तक गर्म कर तुरंत ठंडा किया जाता है, ताकि बैक्टीरिया मर जाएं और शेल्फ लाइफ बढ़े। लेकिन इसके लिए निरंतर दूध आपूर्ति और स्थायी बाजार ज़रूरी है।
यह मशीन हार्डवेयर, इंस्टॉलेशन, बिजली, पानी, और स्टाफ ट्रेनिंग सहित करोड़ की लागत की है। कोल्ड चेन और ट्रांसपोर्ट के बिना उत्पाद बाजार तक नहीं पहुंच सकते और यही सबसे महंगा हिस्सा है। सरकार ने इन सवालों के जवाब पहले नहीं खोजे, और अब यह योजना कागजों में दम तोड़ रही है।

असली ‘राजनीतिक पेस्ट्यूराइजेशन

यह कहानी सिर्फ एक तकनीकी नाकामी की नहीं है, बल्कि उस सड़े-गले तंत्र की है जो जनता का पैसा फोटोशूट और रिबन-कटाई में बहा देता है। सत्ता बदलते ही योजनाएं बदल जाती हैं, मशीनें धूल खाती हैं, और जवाबदेही का नाम लेने पर सन्नाटा छा जाता है।
जनता का पैसा गया, सिस्टम ने मलाई खा ली, और मशीन खामोश खड़ी है — यही है असली ‘राजनीतिक पेस्ट्यूराइजेशन’, जहां गर्मी जनता सहती है और मलाई नेता खाते हैं।

मुकेश सोनी, संवाददाता
whatsapp

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page