विधवा की जमीन हड़पाऊ नेता, वकील और ‘संवेदनशील’ पुलिस की तिकड़ी

अंबिकापुर/सरगुजा hct : उत्तर छत्तीसगढ़ का सरगुजा ज़िला इन दिनों एक ऐसे जमीन घोटाले की वजह से सुर्खियों में है, जिसने राजनीति, प्रशासन और कानून – तीनों की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला किसी सामान्य विवाद का नहीं, बल्कि एक अशिक्षित विधवा महिला की 2.8 हेक्टेयर पैतृक जमीन पर कब्जा, करोड़ों के सौदों, राजनीतिक गठजोड़ और कानूनी छलावे से जुड़ा है। सीजेएम कोर्ट ने सुनवाई के बाद एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया।
कहानी की शुरुआत – पैतृक भूमि और भरोसे का जाल
आवेदिका चंद्रमणी देवी कुशवाहा, सूरजपुर जिले की एक ग्रामीण और अशिक्षित विधवा, अपने पैतृक हक के लिए सालों से संघर्ष कर रही हैं। उनकी कुल 2.870 हेक्टेयर जमीन, जो ग्राम भगवानपुरखुर्द (तहसील अंबिकापुर, जिला सरगुजा) में स्थित है, राजस्व अभिलेखों में उनके भाई रघुवर कुशवाहा और छतरू कुशवाहा के नाम दर्ज थी।
चंद्रमणी और उनकी रिश्तेदार कलावती कुशवाहा इस जमीन पर अपना नाम दर्ज कराकर बंटवारा कराना चाहती थीं, लेकिन भाईयों की असहमति के कारण यह मामला उलझ गया। इसी दौरान दोनों ने कानूनी मदद के लिए अधिवक्ता दिनेश कुमार सिंह को नियुक्त किया और अपने सभी दस्तावेज उन्हें सौंप दिए।
वकील से कानूनी मदद या जालसाजी?
मामले का प्रमुख आरोपी पेशे से अधिवक्ता है। पीड़िता अशिक्षित; विधवा होने के कारण अपने वकील पर पूरा भरोसा करती रही। आरोप है कि दिनेश कुमार सिंह ने उसी भरोसे का फायदा उठाकर :
- 1.75 करोड़ रुपये का पहला अनुबंध कराया,
- फिर 1.13 करोड़ रुपये का दूसरा अनुबंध करवाया,
- लेकिन सिर्फ 40.16 लाख रुपये का ही भुगतान कराया।
दोनों अनुबंधों के बावजूद आज भी जमीन का कब्जा पीड़िता के भाईयों के पास है, जबकि रजिस्ट्री अलग-अलग नामों पर करवाई गई। आवेदिका का कहना है — “वकील जहां कहते, वहां दस्तखत कर देते थे। हमें असली सौदे की जानकारी नहीं दी गई।” यह भी सामने आया कि भुगतान चेक के बजाय नकद किया गया, जिससे यह साबित होता है कि अनुबंध में दर्शाई गई पूरी रकम का भुगतान कभी हुआ ही नहीं।
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जमीन के सौदों की असलियत
अभियुक्तों ने एक ही जमीन के लिए दो बार अलग-अलग अनुबंध कराए, पहला 1.75 करोड़ में, दूसरा 1.13 करोड़ में, और फिर अलग-अलग टुकड़ों की रजिस्ट्री कराते समय केवल 40.16 लाख रुपये का भुगतान किया।
25 सितंबर 2017 को खसरा नंबर 55/1 और 122/4 (रकबा 0.06 और 0.59 आरे) की बिक्री भी कराई गई, जिसमें 11.50 लाख रुपये का चेक (क्रमांक 0524) दिखाया गया, जबकि जमीन का कब्जा आज भी पीड़िता के भाईयों के पास है।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी और आदेश
लंबे समय तक थाने, एसपी और आईजी से शिकायतें करने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। आवेदिका ने 10 जून 2018, 16 फरवरी 2019, 7 जुलाई 2023 को अंबिकापुर थाने में, और 6 जुलाई 2023, 21 अगस्त 2023 को पुलिस अधीक्षक के पास, तथा 14 सितंबर 2018 और 16 फरवरी 2019 को आईजी के पास गुहार लगाई। अंततः मामला सीजेएम कोर्ट पहुंचा।
कोर्ट ने दिया आदेश :
“भारतीय दंड संहिता की प्रासंगिक धाराओं – 420, 467, 468, 471, 120बी और 34 – में अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना की जाए। थाना प्रभारी अंबिकापुर रिपोर्ट दो सप्ताह में न्यायालय को सौंपें।”
एफआईआर हुई, लेकिन फाइल ‘संवेदनशील’ !
कोर्ट के आदेश पर 19 जुलाई 2025 को एफआईआर नंबर 482/25 कोतवाली अंबिकापुर में दर्ज हुई। लेकिन पुलिस ने तुरंत इसे ‘संवेदनशील’ श्रेणी में डालकर फाइल सील कर दी। अब सवाल उठ रहा है – आखिर सच छुपाने की यह मजबूरी क्यों?क्योंकि, इस एफआईआर में जिनके नाम हैं, उनमें एक तरफ सत्तारूढ़ दल का जिला अध्यक्ष (भारत सिंह सिसोदिया), और दूसरी तरफ विपक्षी दल का जिला महामंत्री (राजीव अग्रवाल) शामिल हैं। यानी फाइल खोलो तो सत्ता और विपक्ष दोनों एक ही पाले में खड़े नजर आते हैं -जमीन पर नहीं, कागजों पर !
राजनीति और भू-माफिया का गठजोड़
एफआईआर में कुल 7 आरोपी हैं:
- दिनेश कुमार सिंह (अधिवक्ता)
- भारत सिंह सिसोदिया (जिला भाजपा अध्यक्ष)
- राजीव अग्रवाल (जिला महामंत्री, कांग्रेस सरगुजा)
- रविकांत सिंह
- नीरज प्रकाश पांडे
- राजेश सिंह
- निलेश सिंह
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह समूह लंबे समय से ग्रामीण क्षेत्रों में विवादित जमीनों की खरीद-बिक्री के धंधे में सक्रिय है
जहाँ मुकदमे या बंटवारे में फंसे मालिकों को डर या लालच दिखाकर कम दाम में सौदा कराने और बाद में ऊंची कीमत पर बेचने का खेल चलता है।
प्रदेश में चर्चा क्यों?
यह मामला सुर्खियों में इसलिए है क्योंकि :
- सत्ता और विपक्ष दोनों एक ही फाइल में खड़े हैं,
- एक अधिवक्ता ने भरोसे का फायदा उठाकर अपनी ही मुवक्किल की जमीन बिकवा दी,
- और पुलिस पारदर्शिता के बजाय ‘संवेदनशील’ का कवच ओढ़े बैठी है।
जमीन, राजनीति और कानून – तीनों के इस गठजोड़ ने जनता को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या अब न्याय की तलाश में केवल कोर्ट ही आखिरी सहारा है? अब सबकी नजरें पुलिस की जांच और इस फाइल पर हैं, क्या यह सच के साथ जनता के सामने आएगी या ‘संवेदनशील’ की सील के पीछे ही दबी रहेगी?
