Welcome to CRIME TIME .... News That Value...

editorial

किसी अखबार या चैनल में काम करने वाला “हर शख्स पत्रकार” नहीं होता।

पत्रकार अखबार की रीढ़, लेकिन कुछ सिर्फ फोन से ही ‘क्रांति’ करते हैं !

आधुनिक पत्रकारिता की दौर में कोई भी ऐरा ग़ैरा नत्थू खैरा “GoDaddy” से कोई एकाध डोमेन ख़रीद/पंजीयन कर महज 5 से 15 हजार खर्चा कर पोर्टल बनवा लेता है और फिर शुरू हो जाती है पत्रकारिता की दुकानदारी..

सभी, “मीडियाकर्मी” तो कहला सकते है, लेकिन हर कोई “पत्रकार” नहीं होता है।

हॉकर और पत्रकार में भावनात्मक फर्क

आप यदि किसी हॉकर को पत्रकार कहेंगे तो वह बेहद खुश होगा, लेकिन यदि किसी पत्रकार को हॉकर कह देंगे तो स्वाभाविक है कि उसमें नाराजगी आएगी। ये सही है कि बिना सभी के सहयोग से कोई अखबार नहीं निकाल सकता मगर किसी अखबार को निकालने वाले सभी पत्रकार नहीं कहलाते। इसमें सभी की अलग-अलग भूमिका और पद है तो…

पत्रकारिता जगत की पोस्ट (पद) 

मालिक — पहले का परंपरागत चेहरा। मालिक पहले सिर्फ एक पत्रकार ही अखबार का मालिक होता था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी भी यंग इंडिया अखबार के मालिक रहे हैं। 7 मार्च 1956 को राजस्थान पत्रिका अखबार की शुरुआत करने वाले श्री कर्पूरचंद क़ुर्लिस जी भी मालिक बनने से पहले एक जाने-माने पत्रकार थे। उज्जैन जिले के स्थानीय तौर पर बात करे तो 51 साल पहले दैनिक अवंतिका अखबार की शुरुआत करने वाले श्री गोवर्धनलाल मेहता जी पत्रकार थे।

जिन्हें पत्रकारिता की “प” नहीं मालूम और सम्पादक लिखना भी नहीं आता वह आजकल व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के सहारे तथाकथित पत्रकार बन बैठे हैं ! पत्रकारों की यह खतरनाक “खरपतवार” पत्रकारिता जगत के सबसे बड़े शत्रु हैं। इन्हीं खरपतवार के चलते पत्रकारिता आज अपनी पहचान की मोहताज हो गई है।

वर्तमान दौर की हकीकत

दैनिक अग्निपथ अखबार की शुरुआत करने वाले ठाकुर शिवप्रताप सिंह चंदेल जी देश के जाने-माने मूर्धन्य पत्रकार थे। 40 साल से अदम्य साहस की पत्रकारिता कर रहे साप्ताहिक अदम्य अखबार के मालिक श्री भूपेंद्र दलाल जी जाने-माने पत्रकार हैं। लेकिन वर्तमान दौर में कोई सटोरिया, भू-माफिया, शराब माफिया, गुटखा किंग, पार्टी नेता या चकलाघर संचालित करने वाला भी अखबार या चैनल का मालिक बन जाता हैं।

अखबार की सबसे बड़ी कुर्सी

सम्पादक ये मालिक के बाद अखबार की सबसे बड़ी पोस्ट है। इस पोस्ट पर एक सही पत्रकार ही बैठ सकता हैं क्योंकि उसे 10-12 साल मैदान में पत्रकारिता कर सभी बीटों का ज्ञान रहता हैं। कौन सी खबर अखबार में कितनी और कहाँ पर जाएगी। ये सारे अधिकार सम्पादक के पास रहते हैं। ये बात और है कि अखबार मालिक चाहे तो अपने 8 वी पास चमचे को भी सम्पादक की कुर्सी पर बैठा सकता है।

अखबार की रीढ़ की हड्डी

पत्रकार ये अखबार की रीढ़ की हड्डी होते है। इनकी खबरों के दम पर अखबार की साख रहती है और बाजार में वह टिका रहता हैं। अखबार में इनकी अलग-अलग बीट होती है। जैसे क्राइम, प्रशासन, खेल, धर्म, नगर निगम, राजनीतिक व अन्य। ऑफिस मीटिंग के बाद सुबह से शाम तक इन्हें अपनी-अपनी बीटों में रहना होता है और शाम को ऑफिस आकर इन्हें खुद अपनी-अपनी खबरें बनाकर देनी होती हैं। ये बात और है कि मीटिंग के बाद कुछ पत्रकार घर जाकर सो जाते है और शाम को ऑफिस आकर टेलीफोनिक पत्रकारिता को अंजाम देते हैं।

स्थानीय प्रभारी

ब्यूरो प्रमुख यदि अखबार मालिक किसी शहर या तहसील में खुद के खर्च से ऑफिस मेंटेन कर वहाँ की खबरों के लिए स्थानीय पेज निकालता है तो इस स्थान पर बैठाए गए पत्रकार को ब्यूरो प्रमुख कहते है। ब्यूरो प्रमुख को खबरें भी लिखनी होती हैं।

पर्दे के पीछे का हीरो

कंप्यूटर आपरेटर ये पत्रकारों की लिखी खबर या संपादक द्वारा लिखी सम्पादकीय या फिर विज्ञापन को सही डिजाइन देकर सम्पादक द्वारा अखबार में बताए स्थान पर लगाते हैं।

लक्ष्मीपुत्र की भूमिका

मार्केटिंग इन्हें अखबार के लिए विज्ञापन लाना होता हैं। खबरें लिखने की वजह से पत्रकार सरस्वती पुत्र कहलाता है; लेकिन ये अखबार के लिए विज्ञापन के तौर पर धन लाते हैं इसलिए ये लक्ष्मीपुत्र कहलाते हैं। चूंकि लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू होता हैं। जिस पर किसी मार्केटिंग वाले के उल्लू रहने पर भी ये मालिक के लाड़ले रहते है।

फोटो-वीडियोग्राफर सहकर्मी

आजकल इन्हें फोटो-वीडियोग्राफर जर्नालिस्ट कहे जाने लगा है। फोटो-वीडियो ग्राफर अखबार व चैनल मालिक की ओर से इन्हें किसी भी प्रेस कांफ्रेंस में सवाल पूछने के कोई अधिकार नहीं रहते हैं। सवाल पूछने का अधिकार उनके साथ आए सिर्फ पत्रकारों को ही रहता हैं। इनका मूल कार्य घटना-दुर्घटना, मेले-ठेले व अन्य सभी कार्यक्रमों को अपने कैमरे में कैद कर संबंधित बीट के पत्रकारों को जानकारी देना भर रहती हैं। इनके फ़ोटो तक पर caption पत्रकार ही देते हैं।

वितरण का असली जज्बा

हॉकर इनकी अखबार के लिए विशेष भूमिका होती हैं। ये कड़कती सर्दी हो, भीषण गर्मी हो या फिर मूसलाधार बारिश हो, सारी बाधाओं को चीरते हुए सही समय पर पाठकों तक अखबार पहुचाते हैं।

एजेंसी और असलियत

एजेंट : पत्रकारों में अपनी गिनती करने वाले सबसे खतरनाक प्रजाति ये राजधानी या बाहर के किसी शहर के 100-50 अखबार की एजेंसी ले आते हैं। इनका मूल काम कुछ और होता है। लेकिन अपने धंधे की छतरी के तौर पर ये अखबार या चैनल की एजेंसी ले आते हैं। चूंकि मालिक को इनसे धन प्राप्त होता है इसलिए इनके अनुरोध पर वे इन्हें एजेंट का नहीं बल्कि ब्यूरो प्रमुख का कार्ड बनाकर दे देते हैं जबकि ज्यादातर एजेंटों को पत्रकारिता के “प” शब्द की जानकारी भी नहीं होती हैं।

प्रेसक्लब — सदस्यता और राजनीति

प्रेसक्लब अध्यक्ष व उसकी पूरी कार्यकारिणी इसके लिए पत्रकार होना जरूरी नहीं हैं लेकिन इसके लिए प्रेसक्लब के सदस्य व मतदाता होना बहुत जरूरी हैं। भले ही वह सदस्य व मतदाता शराब कारोबारी हो या फिर अन्य किसी धंधे में लिप्त हो। मतदान के बाद यदि वह चुन लिया जाता है तो वह अध्यक्ष व कार्यकारिणी सदस्य बन जाता हैं।

अधिमान्य पत्रकार” नियम और वास्तविकता

शासन के नियमानुसार एक सही पत्रकार ही अधिमान्य पत्रकार बन सकता हैं। मतलब उसका पत्रकारिता के अलावा कोई पेशा न हो, उसकी शिक्षा कम से कम ग्रेजुएट हो, आपराधिक रिकार्ड न हो, पत्रकारिता के रिकॉर्ड के तौर पर उसकी कम से कम 5-6 साल की खबरों की कतरने हो। वे ही अधिमान्य पत्रकार बनने के पात्र होते हैं।

राजनीतिक दखल और कार्ड की विडंबना

ये बात और है कि जनसंपर्क/मंत्री अपने अधिकारों का प्रयोग कर किसी को भी अधिमान्य पत्रकार का कार्ड जारी कर सकते हैं। इसके पहले प्रदेश में 15 साल तक भाजपा की सरकार रही थी। जिस पर प्रदेश के सैकड़ों चाटुकार / दलालों के पास भी अधिमान्य पत्रकार के कार्ड हैं।

whatsapp

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page