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“नवम्बर क्रांति”की रोशनी मे पूंजीवादी युद्ध और चुनाव का जनहित में बहिष्कार क्यों ?

अवध नारायण कृष्ण कुमार त्रिपाठी
अब तक दो विश्व युद्ध और पन्द्रह बार लोकसभा हो चुके हैं। भारत सहित सारा विश्व तृतीय विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ा है, किसी भी समय युद्ध का नगाड़ा बज सकता है। अब तक हुए विश्व युद्ध तथा चुनाव के दुष्परिणाम पर विचार करते हैं तो इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि अब वक्त आ गया है, पूंजीवादी विश्व युद्ध तथा चुनाव बहिष्कार का।
प्रथम विश्व युद्ध सन् 1914 ई.मे शुरू हुआ जो सन् 1918 ई. तक चला था उसमें गांधी ने 10 लाख भारतीय नवयुवकों को अंग्रेजी फौज में भर्ती कराया था जिसमें से दो लाख शहीद हो गए थे। उसमें अंग्रेजों की जीत हुई थी फिर भी उन्होंने अपने वायदे के अनुसार “कैसरे हिन्द गांधी” को तश्तरी मे आजादी नहीं सौंपा अपितु “रौलट एक्ट” और “जलियांवाला बाग का” तोहफा दिया था।
युद्ध का अन्त पनडुब्बी की मार से हुआ था। उसमे विकसित देशों ने शपथ ली थी कि भविष्य में युद्ध नहीं होगा और “लीग आफ नेशन्स” की स्थापना की थी किन्तु उसकी अवहेलना करते हुए पहली सितम्बर 1939 ई. को द्वितीय विश्व युद्ध का ऐलान किया गया जिसका अन्त 1945 ई.को “ऐटम” की मार से हुआ था। इस बार “यू.एन.ओ.” की स्थापना कर युद्ध से विरत रहने का संकल्प लिया गया, वो संयुक्त राष्ट्र संघ भी अब नख-दन्त विहीन हो चुका है और किसी वक्त तृतीय विश्व युद्ध शुरू हो सकता है जो “ऐटम”की मार से होगा, जिसके दुष्परिणाम की कल्पना नहीं की जा सकती।
अब वक्त आ गया है, जब हम उपरोक्त परिस्थितियों पर विचार करें और “नवम्बर क्रांति” के रौशनी मे उनका बहिष्कार करें।
“समस्या का समाधान” युद्ध और चुनाव नहीं अपितु “शान्ति और क्रांति” से होगा। “क्रांति” ऐसी जिसमें “हिंसा और बलप्रयोग” को स्थान नहीं…
इन्कलाब जिन्दाबाद।

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