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9 अगस्त “विश्व आदिवासी दिवस” को आदिवासीयों का अधिकार, अस्तित्व और अस्मिता के लिए संघर्ष के दिन के रूप में मनाने का आह्वान।

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) दरभा डिविजन कमेटी के सचिव साइनाथ ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी किया है, जिसमे यह उल्लेख है कि; 09 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस को आदिवासियों का अधिकार, अस्तित्व और अस्मिता के लिए संघर्ष के दिन के रूप में मनाएंगे। दुनिया भर के आदिवासी जनता के हकों का संरक्षण, उनके विकास और दुनिया भर के पर्यावरण संरक्षण आदि समस्याओं पर आदिवासियों द्वारा किया गया प्रयास और हासिल किये उपलब्धियों को स्मरण और जतन करने हर साल विश्व आदिवासी दिवस मना रहे है।
1996 दिसम्बर माह में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसी दिन को हर साल विश्व आदिवासी दिवस पालन करने की प्रस्ताव पारित की। हमारे देश में 10 करोड़ मूलवासी है। इन मूलवासियों में कोई भी हिन्दू नही है, यह एक ऐतिहासिक और वस्तुगत सच्चाई है। ब्राह्मणीय हिंदुत्व इन्हे अछूत ही मानती है। 15 प्रतिशत से कम रहे हिन्दू आबादी बाकी जनता को घर वापसी के नाम पर धर्मातंरीकरण कर रही है। इस देश के शोषक-शासक वर्गां ने ब्राह्मणीय हिन्दू धर्मांधता को
उकसाते हुये जनता के खान-पान, वेशभूषा और भाषा को नियंत्रण कर रहे है। गो-रक्षा के नाम से अल्पसंख्यक और दलितों पर माबलिचिंग (भीड़ हत्या) कर रही है। हिन्दू फासीवादी ताकतें सत्ता में काबिज होने के बाद से आदिवासियों, दलितों अल्पसंख्यकों और महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और हत्याओं में तेजी आई है।
देश भर के आदिवासियों द्वारा किया गया अनगिनित संघर्षों की दबाव में आकर शासक वर्गों को मजबूरन कुछ हद तक जनहित कानूनें लाना पड़ा। उसी के तहत संविधान में किया गया 73वां संशोधन के जारिए 1996 दिसम्बर 24 के दिन ‘पेसा’ कानून बनी। मगर विगत 23 सालों से देश भर में कहीं भी अमल में नही लाया, इससे जनता के प्रति शासक वर्गों का छल-कपट नीतियों को समझ सकते हैं। सरकारें गवर्नरों के जारिए ‘पेसा’ को संशोधन करते हुये निर्वीर्य कर रही है। दलाल सरकारों के कार्पोरेट परस्त नीतियों के चलते देश भर में आदिवासियों की विस्थापना में कई गुणा तेजी आई।
विगत 30 सालों से सरकारों के उदारवादी आर्थिक नीतियों के चलते हर साल एक लाख एकड़ जमीन को खदानों, बांधों, कारखानों के नाम से हड़प रही है, फलस्वरूप लाखों की तादात में आदिवासियों ने घर-द्वार छोड़कर मजबूरन में पलायन कर रहे हैं। दयनीय स्थिति में जीवन-यापन कर रहे हैं।
ओड़िशा में निर्मित बांधों के चलते बस्तर के जीवन दायिनी इंद्रावती में जलस्तर सूखने की खगार पर है। इस स्थिति में छत्तीसगढ़ सरकार ने बोधघाट बांध निर्माण के लिए आदेश जारी की है। यह चार जिलों के सरहद में रहने की वजह से 100 से अधिक गांव, 13,750 हेक्टेर कृषि जमीन, 9,000 हेक्टेर जंगल जलमग्न होकर लगभग एक लाख जनता विस्थिपित होगी। पिछले 53 सालों से बैलाडिला पहाड़ों में निहित अपार लौह अयस्क, खनिज संपदा को एनएमडीसी के जरिए खनन करके जापान, कोरिया आदि साम्राज्यवादी देशों को कैडियों के दाम पर बेच रहे है। इससे उत्पन्न जल, वायू ध्वनी प्रदूषण से जनता का जीवन दूभर होती जा रही है। डंकिणि, शंखिणि, तालपेरू, मलिंगेर आदि नदियों में रासायनों से भरी लाल पानी के चलते दर्जनों गांवों के जनता की शुद्ध पेयजल के अभाव में तथा फसलें बरबाद होने पर अकाल मृत्यु की शिकार हो रहे है। कई प्रकार के जीव जंतुओं ने विलुप्त होकर जैव विविधता बिगड़ रही है।
1965-66 में बैलाड़िला पहाड़ों में लोह अयस्क खनन शुरू किया। इस परियोजना के तहत 10 गांवों को बिना पुर्नावास के जबरन विस्थापित किया गया। इस जन विरोधी नीति के खिलाफ जब का तब जनता संघर्ष करती आ रही है। इसी सिलसिले में प्रतिरोध कर रही आदिवासी जनता के ऊपर क्रूर दमन चला रहे है। जनता के आस्था से जुड़ी बैलाडिला पहाड़ों में स्थित 13 नंबर डिपाजिट को अड़ानी ग्रुप को 25 साल की लीज पर देने के खिलाफ हजारों जनता संगठित होकर जून 7 से 13 तारीख तक कड़ी विरोध के साथ जंगी प्रदर्शन किया। उन्होने‘‘भीषण तुफानों से टकराएंगे लेकिन हमारी अस्था और अस्तित्व से जुड़ी पिट्टोड पहाड़ को नही छोडेंगे,’’ का संकल्प लिया है।
एनएमडीसी ने जनता को गुमराह करने के लिए 2014 में तथाकथित फर्जी ग्रामसभा द्वारा अनुमति मिलने की दावा कर रही है। जनता इसे सिरे से नकार रही है। इस योजना के तहत हो रही अवैध जंगल कटाई, रोड़ निर्माण को जनता द्वारा रोका गया। एनएमडीसी कर्मचारियों ने भी अपनी ड्युटी बहिष्कार करके संघर्षरत जनता के साथ हाथ मिलाया। शोसक वर्गों को फायदा पहुॅंँचाने में जुटी दलाल सरकारों ने हजारों की तादात में पुलिस को तैनात करके उसकी सुरक्षा में 13 नंः डिपाजिट और गुमियापाल पंचायत के आलनार पहाड़ों में खनन शुरू करने की कवायद में है।
झूम खेती करते हुये जीवनयापन कर रहे आदिवासियों को जमीन पट्टा देने की बजाय अपना ही जमीन से बेदखल करने की सुप्रीम कोर्ट की जनविरोधी फैसले के खिलाफ समस्त आदिवासी एकजुट होकर संघर्ष करना है।
‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ प्रस्तावों में भाषा विकास का भी एक प्रावधन है। अपना भारत देश में कई आदिवासी बोली भाषाएं हैं। उन्हें विकास के लिए कुछ संस्थाएं प्रयास कर रहे हैं। मगर सरकार आदिवासी भाषा और लिपी के विकास में रोड़ा बनकर हिन्दी और अंग्रेजी भाषा को जबरन थोपकर बच्चों को अपनी मातृभाषा में पढ़ाई से वंचित कर रही है।
साम्राज्यवादी परस्त नीतियों को विरोध करते हुए पेसा कानून को अमल करने की मांग कर रही छत्तीसगढ़ व झारखण्ड की जनता को माओवादियों के समर्थक के नाम से फर्जी केसों में फंसाकर जेलों में ठूंस रही है। मुठभेड़ों के नाम से हत्याएं कर रही है।
प्रिय जनता,
साम्राज्यवादियों, दलाल शासक वर्गों ने हमें गुमराह करने के लिए विश्व आदिवासी दिवस को आगे लाकर शासक वर्गों की पार्टियां भी जोर-शोर से मनाते हुए आदिवासी अस्तित्व को मिटाने की अपनी मनसुबों पर परदा डालने की नाकाम कोशिश कर रही है। आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा और विकास की जगह पर उन्ही के अस्तित्व को मिटाने की नीतियां अपना रही है। विश्व पर्यावरण के संरक्षण के जगह पर्यावरण विध्वंसकारी योजनाओं को अपना रही है।
संयुक्त राष्ट्र संघ (न्छव्) द्वारा पारित किया गया प्रस्तावों की धज्जियां उड़ाते रही दलाल शासक वर्गीय पार्टियां और उनके पिई को विश्व आदिवासी दिवस मनाने का कोई नैतिक अधिकार नही है।

आदिवासियों, जन-पक्षधर बुद्धिजीवियों

विश्व आदिवासी दिवस के इस मौके पर हमारी पार्टी ने लुटेरी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ
एकजुट होकर संघर्ष करने की आह्वान करती है। टाटा, एस्सार के खिलाफ जनता जुझारू संघषों से जिस तरह उन्हे खदेड़ दिया, उसी पथ पर चलते हुए पिट्टोड और आलनार पहाडों को बचाने का शपथ लेकर विस्थापन विरोधी संघर्ष में आगे बढे़ंगे, हम आपके साथ है।
  • आदिवासी विरोधी नीतिंयो के खिलाफ एकजूट होकर संघर्ष करेंगे।
  • जल, जंगल, जमीन अस्तित्व,अस्मिता और अधिकार के लिए संघर्ष करें।
  • आदिवासी भाषा, संस्कृति, विकास के लिए सरकार पर दबाव डालें।
  • पेसा कानून को उसकी मूल स्वरूप में अमल करें।
  • शेड्युल्ड इलाकों से पुलिस-अर्ध सैनिक बलों को तुरंत वापस करने की मांग करें।
  • आदिवासियों को अपनी जमीन से बेदखल करने की सुप्रीम कोर्ट के फैसले को विरोध करें।
  • आदिवासियों के आजीविका व आस्था से जुड़े पहाड़ों के रक्षा के लिए संगठित होकर संघर्ष करे।
  • सार्वजानिक खनिज संपदा को निजी कंपनियों को हवाला करने की नीतिंयों को विरोध करें।
  • बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ सरकारों द्वारा किये गये सभी समझौतों को निरस्त्र करें।
  • घर वापसी के नाम पर जबरन आदिवासियों की धर्मांतरीकरण का विरोध करें।
  • संघर्षरत जनता को मुठभेड़ों के नाम से हत्या करना बंद करों।
क्रांतिकारी अभिवादन के साथ…

साइनाथ
सचिव
दरभा डिविजन कमेटी
भाकपा (माओवादी)

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