ChhattisgarhConcern
फ्लोराइसिस की बिमारी को देव-प्रकोप मानकर बड़ी संख्या में गांव से पलायन कर गए ग्रामीण।
बिमारी को अंधविश्वास से जोड़ रहे है हर घर में है एक शख्स बीमार है।
धरमजयगढ़ (रायगढ़)। जिले में बेतरीब औद्योगिकरण और खनिज उत्खनन से जहाँ जिले के ग्रामीण क्षेत्रो का भूगर्भ जल का स्तर लगातार नीचे गिर रहा है। वही उसके प्रदूषित होने का क्रम भी जारी है। इस प्रक्रिया में उद्योग प्रभावित गांव तो आते है,बल्कि आसपास के दूसरे गांवों का भूगर्भ जल भी फ्लोराइड जैसे विषैले और जानलेवा रसायन से प्रभावित हो चुका है। रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ तहसील मुख्यालय के अंतर्गत मांड नदी के किनारे बसा ऐसा ही एक गांव केराकोना है। जहाँ फ्लोराइसिस बिमारी से ग्रस्त ग्रामीणों की अच्छी खासी संख्या है। आमतौर पर ग्रामीण इलाज के आभाव में इस बीमारी को अंधविश्वास से जोड़ कर देखने लगे है। इसके पीछे की वजह यह है कि गांव के हर घर में एक शख्स इस बीमारी से ग्रस्त है। मुख्यतः गांव के हर एक घर के बीमार व्यक्तियों को कुबड़ेपन की समस्या (बीमारी) ने घेर रखा है, इस बीमारी से गाँव के बूढ़े, बच्चे, जवान सभी के दांत बदरंगे और विकृत हो चुके हैं। लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि आखिर उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है ? वहीँ कुछ ग्रामीण इसे भुत-प्रेत या दैवीय प्रकोप मान रहे हैं। जब कि थोड़े शिक्षित और जागरूक ग्रामीण इसे गांव के हेण्ड पम्प से निकलने वाले दूषित जल को वजह मान रहे है। यद्यपि उन्हें अभी यह पता नही है कि बोरिंग का पानी कैसे और किससे दूषित हुआ है।
केराकोना ग्राम धरमजयगढ़ से कुछ ही किलोमीटर की दुरी पर मांड नदी के तट पर बसा हुआ है जहाँ आदिवासी समुदाय के 10 परिवार के लोग निवासरत है। ये सभी लोग पीने के पानी के लिए उनके गांव में उपलब्ध दो बोरिंग का उपयोग करते हैं।
इन परिवारों में लगभग सभी घरों में एक से दो लोग इस फ्लोराइसिस नामक भयंकर कुबड़ेपन की बिमारी के शिकार है। वहीँ कुछ लोग तो घसीट-घसीटकर निरीह जीवन जी रहे हैं। उनकी माने तो उनके इस दयनीय जीवन के पीछे किसी भूत-प्रेत या दैवीय प्रकोप मुख्य वजह है। गाँव में लोग यह मानने लगे है ,उनकी इस बिमारी का कोई इलाज नही है। वे लोग, इस बिमारी से निजात पाने बैगा से झाड़-फुक के साथ-साथ कुछ झोला छाप डॉक्टरों से इलाज कराकर हार चुके है। लेकिन उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा है,की आखिर गाँव में इस बिमारी का प्रकोप कैसे बढ़ता जा रहा है।
पीड़ित ग्रामीण देवमति, बलिंदरबाई, सुनीता, आसमोती बाई, सोनामती, लीलावती, पेनियासो, सोनसाय, रंजीत राठिया के चेहरे पर चिंता की गंभीर लकीरे इस बिमारी की भयावहपन को बताने के लिए काफी है। अब उन्हें इस बात की चिंता सताने लगी है की हमारे बच्चे भी इस कुबड़ेपन का शिकार न हो जाएं कुल मिलाकर उन्हें अब अपना भविष्य ही अन्धकारमय नजर आने लगा है। यहाँ इस कुबड़ेपन की बीमारी से घबराकर बहुत से लोग गाँव से अन्यत्र पलायन भी कर चुके हैं। वहीँ दूसरी तरफ जिला प्रशासन और लोक स्वास्थ्य विभाग को इस भारी संवेदनशील मामले से कोई लेना देना ही नहीं है।
अगर बात करें पीएचई विभाग की तो उन्हें जानकारी तक नहीं है की केराकोना ग्राम में कितनी बोरिंग और उनकी क्या हालत है? गाँव वाले जिस बोरिंग का पानी पी रहे हैं वो बुरी तरह से दूषित और बदबूदार हैं। प्रशासनिक निष्क्रियता की वजह से उनके पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है। दूसरी तरफ तहसील मुख्यालय का स्वास्थ्य विभाग कभी-कभार कोई शिविर लगाकर महज औपचरिकता पूरी कर देता है।। इन परिस्थितियों में ग्रामीणों के पास अपनी इस गंभीर समस्या से निजात पाने कोई और रास्ता नज़र नहीं आ रहा है। यहां यह बताना लाजिमी है कि अगर इस गम्भीर बीमारी फ्लोराइसिस से मुक्ति के लिए सही समय पर ग्रामीणों के सांथ जिला प्रशासन खड़े नही होता है तो जल्दी ही गांव केराकोना और उसके ग्रामीण अपना अस्तित्व ही खो देंगे।