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समय आ गया है जब जवानों की शहादत पर निंदा करने वाले राजनीतिज्ञों का बहिष्कार करें : सुजॉय मंडल।

एक्स कोबरा कमांडो ने कहा सत्ता में चाहे कांग्रेस रही हो या भाजपा, जवानों के जान की चिंता किसी ने नहीं की..!

कोलकाता। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आज हुए आतंकी हमले के बाद कभी पुलवामा में तैनात रहे पूर्व कोबरा कमांडो सुजॉय मंडल ने अपना दुख व्यक्त करते हुए कहा कि, सेना और अर्धसेना के जवानों की वीरता पर अक्सर राजनीति करने वाली पार्टीयों के बहिष्कार करने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है, क्योंकि देश मे जब भी जवानों के बड़ी सहादत की ख़बर्रे आती हैं, सारी पार्टीयों के नेता घटना की निंदा करने और बदला लेने की बात करने में लग जाते हैं। क्षणिक वाह-वाही और संवेदना का दिखावा करने के बाद सब कुछ पुराने ढर्रे पर आ जाता है। अब तक उन्होंने यही देखा है कि सहादत की एक घटना के कुछ दिनों बाद ही दुसरी तीसरी घटनाएं तो घटती थी। पर कभी भी घटनाओं को रोकने या उसके कारणों को खत्म करने पुख्ता रणनीति किसी ने नही बनाई। परिणामस्वरूप बस्तर से लेकर झारखण्ड, पूर्वोत्तर से लेकर जम्मू कश्मीर तक नक्सली/आतंकी हमलों में लगातार जवानों की सहादत होती रही है। फील्ड में तैनात अनुभवी जवान हमेशा रणनीतिक बदलाव को लेकर या तो सुझाव देते रहे है या आपरेशन में लगने वाले जरूरी संसाधनों की मांग करते रहे है। परन्तु सिस्टम के जिम्मेदार लोग जवानों के हित मे कुछ करना तो दूर कुछ सुनने को तैयार नही होते है। जिसका परिणाम यह होता है कि जवानों का मनोबल तो बुरी तरह प्रभावित होता ही है। बल्कि उनकी मानसिक स्थिति पूरी तरह से बिगड़ जाती है। हर सहादत के बाद टी वी चैनलों पर बड़े-बड़े नेता, रक्षा विशेषज्ञ और सो काल्ड जानकार ऐसी-ऐसी दलीलें पेश करते है जिन्हें देख सुनकर शहीद जवानों के परिजनों की स्थिति और भी ज्यादा बिगड़ जाती है।
आप कल्पना कर सकते है उनके सांथ विपरीत परिस्थितियों लगातार ड्यूटी करने वाले साथी जवानों की सहादत के बाद हमले में बचे शेष जवानों पर क्या बीतती होगी। उपर से टी वी स्क्रीन पर बैठे लोग बदला लेंगे एक के बदले दस सर लाएंगे चिल्लाते है। परन्तु कैसे लाएंगे कब लाएंगे ये बताने को कोई तैयार नही होता। जबकि हकीकत यह है कि ग्राउंड लेबल पर किसी भी हमले के बाद कि कार्रवाही तो टूटे मन से पुनः खड़े होकर कुछ करने की जिम्मेदारी भी जवानों की होती है। आप बस्तर से लेकर जम्मू तक देखिये जवानों का डिप्लॉयमेंट खतरनाक हमले की आशंका के बीच सड़क मार्ग से ही किया जाता रहा है, जबकि फील्ड में सेवारत जवान डिप्लॉयमेंट की रणनीति में लगातार बदलाव करने सहित हेलीकाप्टर के प्रयोग की मांग करते रहे है। यही नही जम्मू सहित अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में जवान डिप्लॉयमेंट के लिए या लम्बे समय से बुलेट प्रूफ गाड़ियों और आर ओ पी के पूर्व ड्रोन प्रयोग करने की मांग करते रहे है। परन्तु उनकी मांगे आज तक मानी नही गई। केंद्र की वर्तमान भाजपा सरकार जिससे हम जवानों को बड़ी अपेक्षाएं थी उसने भी हमे हर क्षेत्र में सिर्फ निराश किया है। हम जवानों पर राजनीति को केंद्रित कर सत्ता हासिल करने के बाद वर्ष 2014-2019 तक संवेदनशील क्षेत्रो में जवानों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उनके आवागमन के लिए अब तक बुलेट प्रूफ वाहन उपलब्ध नही कराये गए तो बाकी सब बातों को भूल जाइए। हाईवे क्राइम टाईम से बातें करते हुए पूर्व कमांडो सुजॉय गला रुंध गया उन्होंने भरे गले से कहा कि इस देश की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस देश के लोग बड़ी ही जल्दी हर चीज़ भूल जाते है। ऐसा नही होता तो पुलवामा हमले के पूर्व ताड़मेटला 76 जवानों की सहादत और सुकमा 25 जवानों की निर्मम नक्सल हत्या के अलावा उरी और पठानकोट के हमले भुलाए नही गए होते। सच तो यह है कि हमारे नेता और सिस्टम चला रहे गैरजिम्मेदार लोग इतना जानते है कि इस देश में बेरोजगारी इतनी है कि 50-100 जवान शहीद हो भी जाएंगे तो उनकी जगह भरने के लिए फिर हजारो लोग तैयार मिलेंगे। पूर्व कोबरा कमांडो ने बताया कि उसकी तैनाती पुलवामा में वर्ष 2009 से 2013 तक रही तब भी जवानों की डिप्लॉयमेंट इसी असुरक्षित तरिके से की जाती रही जो आज भी इसी ढर्रे से जारी थी सो ऐसे आतंकी हमले पर आश्चर्य प्रकट करने का कोई कारण नही है।
“पुलवामा हमला, सीआरपीएफ के लिए ताड़मेटला के बाद दूसरा सबसे घातक हमला 44 जवानों की एक सांथ सहादत में सिस्टम का बड़ा फेलुवर है ”
पंकज मिश्रा, पूर्व जवान सीआरपीएफ।
सुकमा नक्सल हमले 2016 में अपनी फोर्स के 25 जवानों की सहादत के बाद केंद्रीय गृह-मंत्री राजनाथ सिंह को आड़े हांथो लेने वाले बर्खास्त किये गए सी आर पी जवान पंकज मिश्रा पुलवामा में आतंकी संगठन जैश के हमले में सी आर पी के 44 जवानों की सहादत की खबर सुनते ही स्तब्ध हो गए। उन्होंने सहादत की इस घटना के लिए हमलावर जैश आतंकी संगठन के सांथ केंद्र की मोदी सरकार,केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और राज्यपाल j.k. सहित सुरक्षा अधिकारियों को दोषी माना है। उनके अनुसार सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय लेकर अपनी और अपने पार्टी की राजनीति छवि चमकाने वाले प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री को पुलवामा हमले में अपनी असफलता की नैतिक जिम्मेदारी भी लेते हुये तत्काल अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए। सांथ ही सुरक्षा और गोपनीयता की जिम्मेदारी लेने वाले बड़े अधिकारियों पर भी कार्रवाही की गाज गिरनी चाहिए। ताकि घटनाओं की पुनरावर्त्ति पर रोक लग सके। आज जम्मू-कश्मीर में किसी राजनैतिक पार्टी की चुनी हुई सरकार नही है। अतः ऐसी असफलताओं के लिए केंद्र सरकार जो खुद जम्मू-कश्मीर में कानून व्यवस्था सम्हाले हुए है वही दोषी मानी जायेगी। इससे अधिक शर्मनाक बात क्या हो सकती है कि आपके होते हुए भी आतंकी देश के अंदर घुस कर एक सांथ इतने जवानों की जान लेने में सफल हो जाते है,और आप वही रटा-रटाया निंदावाद में लगे रहते है। एक बात तो तय है कि ऐसे हालात में सिर्फ निंदा बम फोड़कर काम नही चलने वाला है। इस बार सरकार की अफलता को लेकर लोग मुखर है। कुछ ही दिनों बाद चुनाव परिणाम के रूप में लोग असफल केंद्र सरकार के प्रति अपनी नाराजगी प्रकट करेंगे। आप देखिए ताड़मेटला के बाद उरी,पठानकोट और पुलवामा जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति यह बताने के लिए पर्याप्त है कि सरकार के बदलने के बाद भी हालात जस के तस बनी हुए है।
पुलवामा हमला बेहद दर्दनाक,आप उन 44 घरों को याद कीजिये जिनके बाप,बेटे,भाई हमले में शहीद हुए।    मोहम्मद जलील  सीआईएसएफ..
पुलवामा हमला सीधा-सीधा सिक्युरिटी फेलुवर से जुड़ा हुआ है। 7 दिनों के बर्फबारी के बाद इतनी बड़ी संख्या में जवानों का सड़क मार्ग से डिप्लॉय करना पहली बड़ी रणनीतिक चूक थी। वह भी तब जब आपको पता है कि जम्मू-कश्मीर में 2014 से लेकर 2018 तक आतंकी लगातार डिप्लॉय में लगे कानवाय पर 2014 से 2018 के बीच 6 बार छोटे बड़े हमले कर चुके है। जिसमे सी आर पी एफ पर कुल 3 हमले हुए है। फिर भी सड़क मार्ग का प्रयोग बिना उपयुक्त रोड ओपनिंग के अभाव मे 70 वाहनों में 3 हजार जवानों को क्यों और कैसे भेजा गया। डिप्लॉयमेंट के पहले बरती जाने वाली सुरक्षा-व्यवस्था में भी भारी खामियां रही होंगी तभी इतना बड़ा आंतकी हमला सफल हो सका होगा।
“बन्द कीजिये शहीद-शहीद पुकारना और निंदा करना,आप न तो अर्धसैनिकों को शहीद का दर्जा देते है न ही उनके आधुनिकीकरण में आपकी कोई रुचि रही है।”         रणबीर सिंह सेवा निवृत्त अर्धसैनिक अधिकारी।
सबसे पहले तो मैं आपके अखबार के माध्यम से यह कहना चाहूंगा कि टी वी स्क्रीन पर सरकार और उसका तंत्र सी आरपी एफ के मृतकों को शहीद कहना बन्द करे। आपको पता होना चाहिए अर्धसैनिकी को हमारे देश में शहीद का दर्जा नही प्राप्त है। उन्हें सरकार बैटल-केजवल्टी का प्रमाण पत्र देती है। ऊपर से घटना के दोषी सिस्टम पर ध्यान देंगे तो आप पायेगें, कि यह घटना जम्मू-कश्मीर में घटित सबसे भड़क सहादत की घटना है। जिसमे इतनी बड़ी संख्या में एक सांथ एक दिन 44 जवान शहीद हुए है। कारगिल युद्ध मे भी इतने सारे जवान एक सांथ शहीद नही हुए थे। आपका खुफिया तंत्र और सुरक्षा विभाग क्या कर रहा था कि उसे इस तरह की बड़े हमले अंदाजा नही लगा। 70 साधारण वाहनों में 3 हजार जवानों को एक साथ सड़क मार्ग से डिप्लॉय किया जाना समझ से परे है। जबकि जवान पिछले कई सालों से एयर लिप्टिंग के अलावा बुलेट प्रूफ वाहन की मांग करते आ रहे है। इसे नजरअंदाज किया जाना शर्मनाक है। दूसरी तरफ सरकार का शहीदों के प्रति दोहरा व्यवहार गलत है, फ़र्ज़ कीजिये पुलवामा में शहीद अर्धसैनिक बल का कोई जवान यदि गुजरात का रहने वाला है तो उसकी सहादत के बाद गुजरात सरकार उसके परिजनों को महज 4-5 लाख रुपये प्रदान करेगी वह भी बिना पेंशन के। जबकि दिल्ली के रहने वाने शहीद जवान के परिवार को एक करोड़ रुपये की राशि दिल्ली सरकार देती है। इसका मतलब साफ है कि सहादत की किसी भी घटना को लेकर केंद्र सरकार कभी गम्भीर नही हुई। इसलिए 2013 से 2019 तक कुल 6 बडी घटनाएं घटी हर बार सरकार ने सिर्फ भर्त्सना या निंदा की और जिम्मेदारियों से पल्ला छाड़ लिया।
“पुलवामा आतंकी हमला सरकार और सिस्टम के मुंह पर करारा तमाचा है।” मोहम्द जलील।
केंद्र की असफल सरकार के लिए पुलवामा आतंकी हमले की घटना सत्ता परिवर्तन का मूल कारण बनने वाली घटना है। सिर्फ निंदा करने से कुछ नही होने वाला। यदि समय रहते घटना के जिम्मेददार कारणों को दूर कर आतंकियों के विरुद्ध बड़ी सैन्य कार्रवाही नही की गई तो जनता खुद सरकार को केंद्रीय सत्ता से बेदखल कर देगी। ऐसा कहने वाला सी आई एस एफ का निलम्बित कमांडो मोहमद जलील का कहना है यह भी है कि हमारे देश मे ग्राउंड ड्यूटी करने वाले जवानों के अनुभव और सलाह पर ac रूम में बैठे निर्णयकर्ताओं के फैसले हमेसा से भारी रहे है। जबकि दूसरे शक्तिशाली देशों में सुरक्षा या युद्ध नीति में ग्राउंड ड्यूटी के जवानों के सलाह को महत्व दिया जाता है। तब सीरिया और अफगानिस्तान जैसे देशों में उनकी सेनाएं बिना केजवल्टी के आतंकियों पर बड़े सफल हमले कर पाती है।
इधर समाचार लिखे जाने तक पुलवामा हमले में शहीद जवानों की संख्या 45 हो चुकी थी, जबकि घायल जवानों की संख्या 37 हो चुकी थी। एवं क्षेत्र की नाकेबंदी कर हमलावर आतंकियों की खोजबीन तेज कर दी गई है।
सुजॉय मंडल
पूर्व कमांडो, कोबरा बटालियन।

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