छत्तीसगढ़ में 18 माओवादी नेताओं की गिरफ्तारी पर संकट गहराया
संविधान के उल्लंघन और राज्य हिंसा के आरोप, शांति समिति ने की न्यायिक हस्तक्षेप की मांग

CCP ने जताई फर्जी मुठभेड़ में हत्या की आशंका
रायपुर 7 जून : छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में चल रहे सुरक्षा बलों के व्यापक अभियान के बीच 18 माओवादी नेताओं की गिरफ्तारी पर विवाद गहराता जा रहा है। शांति समन्वय समिति (Coordination Committee for Peace – CCP) ने राज्य सरकार से इन सभी को तत्काल सक्षम अदालतों में पेश करने की मांग की है, साथ ही यह आशंका जताई है कि उन्हें “फर्जी मुठभेड़ों” में मारने की योजना बनाई जा रही है।
समिति द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि गिरफ्तार किए गए ये सभी वरिष्ठ माओवादी नेता इंद्रावती नेशनल पार्क के समीप से पकड़े गए हैं और वर्तमान में पुलिस हिरासत में हैं। बयान में इस बात पर गंभीर चिंता जताई गई है कि “मौजूदा हालात में, जब संवैधानिक प्रावधानों की खुलेआम अवहेलना हो रही है, इन बंदियों के जीवन को खतरा है।”
ऑपरेशन कगार और 500 से अधिक मौतें
CCP ने बताया कि यह कार्रवाई अप्रैल 2025 में शुरू हुए ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट और जनवरी 2024 में शुरू हुए ऑपरेशन कगार का हिस्सा है। इन अभियानों में अब तक 500 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा मार्च 2026 तक माओवादी आंदोलन को समाप्त करने का लक्ष्य तय किया गया है, जिसके तहत ये कार्रवाइयाँ की जा रही हैं।
हालांकि, समिति का कहना है कि “इस तथाकथित समाप्ति अभियान में जो तरीके अपनाए जा रहे हैं, वे न केवल भारतीय संविधान, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों का भी उल्लंघन करते हैं।”
पिछले 48 घंटों में मुठभेड़ में वरिष्ठ नेताओं की मौत
बयान में यह भी कहा गया है कि बीते 48 घंटों (5–6 जून) के दौरान माओवादी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की कथित मुठभेड़ों में हत्या की विश्वसनीय रिपोर्टें सामने आई हैं। 6 जून को सेंट्रल कमेटी के सदस्य सुधाकर और उसी दिन नेता भास्कर के मारे जाने की घटनाओं को लेकर गंभीर प्रश्न खड़े हुए हैं। इसके अलावा, दो सप्ताह पूर्व माओवादी महासचिव बसवराजु को पकड़े जाने के बाद मार दिए जाने और शव को परिवार के सुपुर्द न करने के आरोप भी लगाए गए हैं।
रिपोर्टों में यह भी सामने आया है कि पुलिस ने आठ सड़े-गले शवों को पहचान के बिना जला दिया, और इन कार्रवाइयों की राज्य के उच्च अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक सराहना की गई !
संविधान और मानवाधिकारों का उल्लंघन
बयान में कहा गया, “छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में डर का माहौल है। परिवारों को अपने लापता परिजनों की कोई सूचना नहीं दी जाती, और जब दी जाती है तो केवल अज्ञात शव या राख के रूप में।”
पुनर्वास नीति में दुरुपयोग का आरोप
समिति ने राज्य सरकार की आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि इसे पुलिस और अर्धसैनिक बलों द्वारा बर्बरता को वैधता देने का उपकरण बना दिया गया है। “इस नीति के तहत अधिकारियों को न सिर्फ दंडमुक्ति मिल रही है, बल्कि उन्हें पदोन्नति और प्रशंसा भी मिल रही है,” समिति ने आरोप लगाया।
शांति समन्वय समिति ने दो प्रमुख माँगें रखी हैं:
- 18 गिरफ्तार नेताओं को तुरंत अदालत में पेश किया जाए।
- ऑपरेशन कगार को तत्काल समाप्त कर, संघर्षविराम की घोषणा की जाए और मध्य भारत में शांति वार्ता शुरू की जाए।
समिति ने चेताया है कि यदि हालात पर जल्द नियंत्रण नहीं किया गया, तो यह एक गंभीर संवैधानिक संकट में बदल सकता है। बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में प्रो. जी. हरगोपाल, प्रो. जी. लक्ष्मण, डॉ. एम.एफ. गोपीनाथ, सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव, क्रांति चैतन्य और लेखिका मीना कंडासामी शामिल हैं।
संपर्क सूत्र (CCP प्रतिनिधि):
- डॉ. एम.एफ. गोपीनाथ: +91 79935 84903
- कविता श्रीवास्तव: +91 93515 62965
- क्रांति चैतन्य: +91 99122 20044
