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पूर्व सीएम रमन सिंह और सुपर सीएम अमन सिंह नहीं चाहते थे कि बघेल मुख्यमंत्री बने…?

*राजकुमार सोनी

सबसे लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष रहने और सदन से लेकर सड़क तक की लड़ाई वाले भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बनने में सफल हो गए हैं, लेकिन भाजपा के पूर्व सीएम रमन सिंह और सुपर सीएम अमन सिंह नहीं चाहते थे कि बघेल मुख्यमंत्री बने। खबर है कि बघेल को रोकने के लिए कई तरह की कवायद की गई थी। एक शराब माफिया लगभग पांच सौ करोड़ के आफर के साथ पिछले कई दिनों से दिल्ली में सक्रिय था। इसके अलावा छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके में कोयले के खनन कार्य में जुटा एक नामी उद्योगपति भी उठा-पटक में लगा था। अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा भी बघेल को मुख्यमंत्री बनाए जाने के खिलाफ थे इसलिए उन्होंने ताम्रध्वज साहू के नाम को आगे बढ़ाया था और समर्थन भी दिया था। भारतीय प्रशासनिक सेवा और पुलिस सेवा से संबंद्ध अफसर भी बघेल के खिलाफ तगड़ी लामबंदी कर रहे थे, लेकिन सारी लामबंदी धरी रह गई।
तेरी कह के लूंगा…
जिन लोगों ने अनुराग कश्यप की गैंग्स आफ वासेपुर देखी है वे नवाजुद्दीन के किरदार से वाकिफ है। जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने बंपर सीटों के साथ चुनाव जीता तो लोगों ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और भूपेश बघेल को लेकर सोशल मीडिया में कई तरह की पोस्ट की। इस पोस्ट में इस फिल्म का एक डायलाग भी चस्पा था- तेरी कह के लूंगा।
यह सही है कि बघेल और उनकी टीम को किसान, आदिवासी, शिक्षाकर्मी, व्यापारी, सरकारी कर्मचारी सहित अलग-अलग समुदाय का जबरदस्त समर्थन मिला, लेकिन एक बड़ी आबादी रमन और अमन सिंह के 15 साल के अत्याचार और कुशासन का हिसाब भी चाहती है।
        पिछले एक हफ्ते में जब-जब सीएम की दौड़ में टीएस सिंहदेव, ताम्रध्वज साहू और चरणदास महंत का नाम चला तो लोगों को यह कहते हुए भी सुना गया कि भाई… जो भी हो… हिसाब-किताब तो अपना बघेल ही मांग पाएगा। इस विश्वास के पीछे की वजह यह भी थीं कि लोगों ने बघेल को लाठी-डंडे खाते देखा था, जेल जाते देखा था, यहां तक औरतों-बच्चों और बेगुनाहों पर हमला करने वाली रमन सिंह की बहादुर सरकार ने बघेल की मां-पत्नी और बच्चे को भी थाने में बिठवा दिया था। वैसे रमन सिंह की कथित बहादुर सरकार ने यह कारनामा शहीद नंदकुमार पटेल के पुत्र उमेश पटेल के परिजनों के साथ भी किया था।
रमन के सुपर सीएम ने तो भाजपा के कद्दावर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को भी नहीं छोड़ा था। कुछ चारण भाट अखबार और चैनल वालों ने जलकी कांड की आड़ लेकर बृजमोहन अग्रवाल की पत्नी और बच्चों को भी निशाना बनाया। वैसे हकीकत यह भी है कि भाजपा का एक बड़ा धड़ा बघेल के मुख्यमंत्री बनने से खुश हैं। इस धड़े से जुड़े लोग भी 15 सालों में मुख्यमंत्री और उसके कुनबे का विस्तार देखकर हतप्रभ थे। एक स्टिंग आपरेशन में सांसद रमेश बैस, नंदकुमार साय, सांसद चंदूलाल साहू, बंशीलाल महतो यह स्वीकार कर चुके हैं कि छत्तीसगढ़ में नौकरशाही हावी हो गई थीं। सरकार को रमन सिंह नहीं बल्कि सुपर सीएम अमन सिंह चला रहे थे। भले ही एक-दो बड़े कांग्रेसी नहीं चाहते थे कि बघेल सीएम बने, लेकिन रमन सिंह और अमन सिंह की कार्यप्रणाली से नाराज भाजपा का एक बड़ा धड़ा इस कवायद में लगा हुआ था कि किसी भी तरह से बघेल मुख्यमंत्री बन जाए।
अब जबकि बघेल मुख्यमंत्री बन गए हैं तो उनसे कई तरह की अपेक्षाएं की जा रही है। जाहिर सी बात है उन्हें दस दिनों के भीतर किसानों का कर्जा माफ करना है।
यह उनकी प्राथमिकता का सबसे पहला और बड़ा काम भी है, लेकिन इस काम के साथ ही उन्होंने झीरम कांड की जांच की घोषणा कर शहीद परिवारों की आत्मा को ठंडक देनी है। केवल शहीद परिवार ही नहीं प्रदेश की जनता भी इस जघन्य हत्याकांड से पर्दा उठते हुए देखना चाहती है। प्रारंभ से ही बघेल इसे राजनीतिक साजिश करार देते रहे हैं। इस कांड में भारतीय पुलिस सेवा के कई बड़े अफसरों की संलिप्तता को लेकर सवाल उठते रहे हैं। इस कांड से कुहांसा काफी पहले छंट गया होता अगर रमन सिंह की सरकार सीबीआई जांच के लिए तैयार हो जाती। सरकार ने मामले में लीपा-पोती की तो संदेह बढ़ता चला गया। इसके अलावा नान घोटाले में मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह और उनकी पत्नी का नाम उछला है तो पनामा पेपर में उनके बेटे अभिषेक सिंह का। भले ही पूर्व सरकार कोर्ट से कई मामलों में क्लीन चिट जैसी स्थिति लेकर बैठी हुई है। सुपर सीएम अमन सिंह की लंबे समय से नियुक्ति और अगुस्ता हेलिकाप्टर की खरीदी का मामला भी कुछ इसी तरह का है। कानून के जानकारों का कहना है कि नए तथ्यों के सामने आने के बाद सरकार चाहे तो मामला रि-ओपन हो सकता है। इस देश ने जेसिका लाल मर्डर केस में ऐसा होते देखा है।
जासूस अफसरों से निपटना भी चुनौती
कल तक प्रदेश का गोदी मीडिया बघेल को नकारा साबित करने में जुटा हुआ था। मीडिया को लगता था कि कोई भी दूसरा रमन सिंह और अमन सिंह के मैनेजमेंट का मुकाबला नहीं कर पाएगा, लेकिन अब मीडिया का सुर बदल गया है। मीडिया उन्हें समझदार आक्रामक बताने में जुट गई है। यह सही है कि प्रदेश में माओवाद सहित अन्य कई समस्याएं चुनौतियां बनी हुई है, लेकिन इस चुनौती से ज्यादा बड़ी चुनौती पूर्ववर्ती सरकार के जासूस अफसर भी है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि प्रदेश के कई अफसर भगवा रंग में रंगे हुए हैं। हालांकि कांग्रेस ने ऐसे भगवा अफसरों की सूची तैयार रखी हैं, बावजूद इसके यह भी सच है कि ऐसे सभी पलटीमार अफसर नई सरकार के स्वागत में गुलाबों का गुलदस्ता लेकर भी खड़े हैं। भाजपा के जासूस अफसरों से घिर जाना नई सरकार के लिए खतरनाक हो सकता है।

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