स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल : डॉक्टर-एम्बुलेंस गायब
स्कूल में छात्रा बीमार, सरकारी अस्पताल खाली ! छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य विफलता उजागर...

अम्बागढ़ चौकी hct : कक्षा 9वीं की छात्रा जब रोज़ की तरह अपने स्कूल में पढ़ाई कर रही थी, तभी अचानक उसके शरीर में तेज झटके आने लगे और वह जमीन पर गिर पड़ी। क्लास में मौजूद बच्चे घबरा गए, लेकिन शिक्षकों ने बिना एक पल गंवाए छात्रा को संभाला और तत्काल प्राथमिक मदद देने की कोशिश की। चूंकि स्कूल क्षेत्र पहाड़ी और दूरस्थ है, इसलिए शिक्षक जानते थे कि एम्बुलेंस का इंतजार करना स्थिति को और बिगाड़ देगा। नतीजतन उन्होंने अपने निजी वाहन की मदद ली और छात्रा को जल्दी से आमाटोला अस्पताल पहुंचाया। यह घटना इस बात का जीवंत उदाहरण है कि किस तरह ग्रामीण इलाकों में बीमारी से ज्यादा डर स्वास्थ्य व्यवस्था की सुस्ती से लगता है।
आमाटोला अस्पताल की सच्चाई
जब छात्रा को आमाटोला अस्पताल पहुंचाया गया, तो परिजनों और शिक्षकों को यह उम्मीद थी कि वहां कम से कम एक डॉक्टर मिलेगा, लेकिन विडंबना यह रही कि अस्पताल में न कोई डॉक्टर मौजूद था, न कोई स्टाफ और न ही एम्बुलेंस की कोई व्यवस्था। यह वही अस्पताल है जिसके बाहर बड़े–बड़े बोर्ड लगे होते हैं कि “24×7 चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है।” लेकिन जब असल में किसी को मदद की जरूरत पड़ी, तब अस्पताल का सन्नाटा बता गया कि सरकारी दावे और जमीनी हकीकत के बीच कितनी गहरी खाई है। मजबूरी में अभिभावक छात्रा को फिर से निजी वाहन में डालकर जिला अस्पताल तक दौड़ाते रहे और इस सफर में हर पल बच्ची की सांसें जिम्मेदारों की लापरवाही पर सवाल उठाती रहीं।
स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल
छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सेवा की ‘उत्तम व्यवस्था’ का ढोल अक्सर बजाया जाता है, लेकिन वास्तविकता सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले उन वीडियो में साफ दिख जाती है, जहां लोग अपने बीमार परिजनों को बाइक पर बांधकर अस्पताल ले जाते हैं क्योंकि एम्बुलेंस समय पर नहीं आती। छात्रा के मामले ने भी स्पष्ट कर दिया कि यह समस्या किसी एक गांव या एक अस्पताल की नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम की जमी हुई सड़ांध का नतीजा है। अगर आज एक बच्ची की जान शिक्षक और परिजन अपनी सूझबूझ से बचा रहे हैं, तो यह सरकार की उपलब्धि नहीं, बल्कि सरकारी लापरवाही की कलई खोलने वाला सबूत है। सवाल यह है कि आखिर स्वास्थ्य सेवाओं की जिम्मेदारी किसके भरोसे छोड़ दी गई है?
इंतजार किसी एम्बुलेंस का नहीं, जिम्मेदारी का था
जिस दिन छात्रा की तबीयत बिगड़ी, उस दिन आमाटोला अस्पताल में जो अफरा-तफरी मची, वह किसी फिल्मी दृश्य की तरह नहीं, बल्कि जमीनी सच्चाई का कड़वा स्वाद था। अस्पताल में डॉक्टर नहीं था, पैरामेडिकल स्टाफ नहीं था और मरीजों को ले जाने के लिए एक एम्बुलेंस तक उपलब्ध नहीं थी। परिजन और शिक्षक अस्पताल परिसर में निराश होकर घूमते रहे, लेकिन ‘सरकारी सुविधा’ नाम की कोई चीज आसपास दिखाई नहीं दी। अंत में उन्हें निजी वाहन में ही जिला अस्पताल की ओर रवाना होना पड़ा। यह घटना पूरे क्षेत्र की स्वास्थ्य नीति पर सवाल खड़ा करती है — क्या सरकारी अस्पताल सिर्फ इमारतें हैं, या वहां इलाज भी कभी मिलना चाहिए?
सरकारी दावे बनाम जमीनी सच
सरकार बार-बार दावा करती है कि छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सुविधाएं मजबूत हो चुकी हैं, और गांव–गांव में बेहतर इलाज उपलब्ध कराया जा रहा है। लेकिन आमाटोला अस्पताल की यह घटना बताती है कि ये दावे सिर्फ कागजों पर चमकते हैं, जमीन पर नहीं। जब एक बच्ची को इलाज के लिए डॉक्टर नहीं मिलता, एम्बुलेंस नहीं मिलती और परिजन निजी वाहन के भरोसे जिला अस्पताल की ओर भागते हैं, तब यह समझ में आता है कि स्वास्थ्य सुविधा का पूरा ढांचा किस हद तक चरमरा चुका है।






