Lock Down के भीतर Go Down : “समरथ को नहीं दोष गुसांई”
देश को वैश्विक महामारी कोरोना से बचाने व नियंत्रण की दृष्टि से 22 मार्च को इंडिया के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बुद्धू बॉक्स में प्रगट होकर देश में प्रयोगात्मक तौर पर एक दिन के लिए “जनता कर्फ्यू” का फरमान जारी करते कुछ विशेष प्रजाति; “स्वास्थ्यकर्मियों, पुलिसकर्मियों और मीडियकर्मियों” के सम्मान में ताली, थाली और घण्टी/घण्टा का शंखनाद (अपील) करते हैं, और देश की जनता उनके अपील को देववाणी समझकर ठीक 5 बजे जो जहाँ है, की स्थिति में जो मिला उसी को बजाना चालू कर देते हैं !
देश की दिग्भ्रमित, अतिउत्साही जनता जनार्दन के द्वारा “जनता कर्फ्यू” के प्रतिपालन और उसकी अपार सफलता से अभिभूत, लब-ओ-लबरेज; माननीय मोदी जी पुनः, 24 मार्च को रात्रि 12 बजे के बाद समूचे देशवासियों को अपने-अपने घरों में कैद हो जाने की बात कहते हुए 21 दिन के लिए तमाम तरह के बंदिशों की बेड़ियों में जकड़कर “लॉक डाउन” की घोषणा कर देते हैं।
इन बंदिशों में धारा १४४ जिसके तहत (सोशल डिस्टेंस) किसी भी जगह भीड़ एकत्रित नहीं होना / किया जाना; प्रमुख है, को आवश्यक करार दिया गया है। चूँकि मोदी जी के उक्त फरमान का सभी प्रदेशो में पालन किया जाना सुनिश्चित हुआ है और आज भी देश 14 मार्च तक “लॉक डाउन” के प्रतिपालन में समर्पित हैं, लेकिन…
राजधानी (hct)। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है :- “समरथ को नहीं दोष गुसांई” अर्थात समर्थवान के दोष को नहीं देखना चाहिए, उसका दूध भात होता है। छत्तीसगढ़ प्रदेश में लॉक डाउन की बेड़ियों को तोडा जा रहा है…! आम जनता के द्वारा नहीं, बल्कि खुद जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों के द्वारा। लॉक डाउन के निर्देशों में उपनिर्देशों का फरमान थोपा जा रहा है।
एक तरफ जहाँ स्वयं मुख्यमंत्री भूपेश जी इस अंतर्राष्ट्रीय विपदा में दोनों हाथ जोड़कर सामर्थ्यवान लोगो से सहायता की अपील कर रहे हैं वहीं उनकी जानकारी में उनके प्यादे स्मार्ट सिटी के स्मार्ट मेयर के द्वारा उनकी खुशामदगिरी में विपदाग्रस्त लोगों को दिए जाने वाली राहत सामग्री के लिए 20,000 थैला (झोला) में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की फोटो छपवाकर फिजूलखर्ची का जो नमूना पेश किया है क्या उस खर्चे से किसी और जरूरतमंद गरीब का भला नहीं हो सकता था ? क्या इस झोला को जिस प्रिंटर्स से छपवाया गया उसने लॉक डाउन को डाउन नहीं किया ?
कृपया संज्ञान लें, “दंड का प्रावधान’ और “डंडा की मार” दो जून की रोटी कमाने वालों के नसीब पर ही बरसता है क्या माननीय न्यायालय महोदय ?
लॉक डाउन को तोड़ने का एक नवीन कुत्सित प्रयास एक नौकरशाह के द्वारा
इस फरमान से किया जाने वाला है
*DPI की दो टूक : मध्याह्न भोजन का सूखा राशन 3 अप्रैल से ही बंटेगा
डीईओ को आदेश जारी कर कहा- “प्रोटोकॉल का सिट्रिक्ट पालन कर, बिना भीड़ लगाये, पूरी सुरक्षा से अनाज का वितरण करायें
कुछ शिक्षक संगठनों ने लॉकडाउन के बाद वितरण की मांग की थी
डीपीआई जितेंद्र शुक्ला ने सभी DEO को जारी किया है। अपने आदेश में उन्होंने स्पष्ट किया है कि “3 – 4 अप्रैल से ही मध्याह्न भोजन के लिए सूखा राशन, चावल-दाल का वितरण किया जायेगा।” आदेश में डीपीआई ने कहा कि – “कार्यक्रम पूर्व निर्धारित टाइम टेबल के हिसाब से ही चलेगा, यह अत्यंत महत्वपूर्ण कार्यक्रम है, गरीब घरों के बच्चों को अनाज समय पर उपलब्ध हो यह शासन के निर्देश हैं, इस पूरे कार्यक्रम को कैसे संचालित करना है, यह पत्र द्वारा पूर्व में ही बताया जा चुका है, कुछ जगह से यह प्रश्न पूछा जा रहा है कि इसे लाकडाउन के बाद करें।”
उक्त के सम्बंध में स्पष्ट करना चाहूँगा की शासन के निर्देश के तहत पूर्व निर्धारित तारीख़ों में ही किया जाना है, तत्संबंध में कोरोना से बचाव के जो गाइडलाइन दिए गये हैं उस प्रोटोकॉल का स्ट्रिक्ट पालन करें, सावधानी बरतें, आवश्यकतानुसार प्रदान कार्य में लगने वाले स्टाफ़ के लिए शाला में उपलब्ध निधि से मास्क और सेनेटाइजर क्रय कर सकते हैं।
यह स्पष्ट कर दूं कि कार्यक्रम का मूल उद्देश्य ही गरीब घरों के बच्चों को समय पर MDM के माध्यम से खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना है !
कोरोना वायरस से देश दुनिया जूझ रहे हैं। ऐसे संकट में अमीर-गरीब, छोटे-बड़े, नौकरी पेशा, व्यवसायी, उद्योगपति, गृहणियाँ, बच्चे सभी के सामने भविष्य की चिंता होना लाज़मी है।
अब सवाल जिस पर संज्ञान लिया जाना चाहिए और सम्बंधित के खिलाफ तत्काल प्राथमिकी दर्ज किया जाना चाहिए वह यह कि –
- क्या यहां लॉक डाउन का उल्लंघन नहीं होगा ?
- आपको क्या लगता है कि पालक अकेले आएंगे ? वह तो अधिकांश बच्चों को ले करके आएंगे और कहीं ना कहीं भीड़ टूट पड़ेगी।
- शासन का यह कैसा कदम है ? क्या स्कूलों में अनावश्यक भीड़ संक्रमण का कारण नहीं बनेगा ?
- क्या एक आईएएस अधिकारी को इतना भी भान नहीं कि उसके इस आदेश के परिपालन में वे जानबूझकर मासूमों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं ?
और सबसे अहम बात यह की जब प्रदेश के मुख्यमंत्री भुपेश बघेल ने कोरोना वायरस (कोविड-19) के संक्रमण से बचाव के उपायों के तहत एक बड़ा निर्णय लेते हुए शिक्षा सत्र 2019-20 में कक्षा 1ली से 8वीं स्तर तक तथा कक्षा 9वीं और कक्षा 11वीं में अध्ययनरत विद्यार्थियों को सामान्य कक्षोन्नति (जनरल प्रमोशन) दिए जाने का निर्णय लिया है। यह जानते हुए भी इस अधिकारी के द्वारा जारी आदेश “तुगलकी फरमान” साबित नहीं होगा ?
ऐसे में क्या कहीं सोशल डिस्टेंस कायम रह पाएगी ? और हो सकता है कि बदकिस्मती से यदि कोई कोरोना पॉजिटिव किसी से टकरा गया तो निश्चित ही अनहोनी की आशंका बनती है। जब ऐसा कुछ आयोजन हुआ तो निश्चित रूप से स्कूलों में भीड़ संभालना मुश्किल होगा। एक तरफ तो शासन घर पर रहने की बात करती है और दूसरी तरफ प्रशासन के लोग ऐसी कैसी योजना बनाते हैं ! देश अभी संक्रमण और संभावित महामारी के दौर से गुजर रहा है और ऐसे नाजुक दौर में क्या ऐसा निर्णय लिया जाना उचित होगा ? क्या हम उन पालको और बच्चों की भीड़ को संभाल पाएंगे क्या यह नहीं लगता की चाहे वह कितनी भी बड़ी व्यवस्था कर ले संक्रमण का खतरा बरकरार ही रहेगा।
इस पर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है क्योंकि हर परिवार को पहले से ही राशन दिया जा चूका है तो फिर एमडीएम का सूखा राशन बाँटने का क्या तात्पर्य है ? ये राजनीती का समय नहीं सही और सुरक्षित कदम उठाने का समय है ऐसे समय पर आप हजारों लिहो की जिंदगियों को खतरे में नहीं डाल सकते। और अभी की स्थिति और भी खतरनाक हो गई हैं जबसे दिल्ली में तगलीगी वाला मामला सामने आया है।