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सिचाई विभाग के “जलासुर अफसरों” का आश्चर्यचकित कर देने वाला कारनामा।

एक नहर की ऐसी कहानी जिसमें न मुआवजा मिला और न पानी।

धरमजयगढ़ के कापू क्षेत्र अंतर्गत “बंधनपुर व्यपवर्तन योजना” में वर्ष 2013-14 में लगभग 52 किसानो की भूमि शासन द्वारा अधिग्रहित की गई थी। जिसके तहत किसानो को जमीन का मुआवजा मिलना था। लेकिन; विडम्बना देखिए कि भू-अर्जन को 8 साल बीत जाने के बाद भी शासन द्वारा किसानो को मिलने वाली मुआवजा राशि कागजों में दफ़न होकर रह गई है। नहर बनकर लम्बे गड्ढों में तब्दील हो चुका है और उसमे प्रवाहित होने वाला पानी अन्यत्र बह रहा है। नहर के बनने और उसके जीर्णावस्था में चले जाने के कारण रेती-सीमेंट-गिट्टी, नहर से लगे आसपास के खेतों में पट चुका है।
नहर निर्माण में विभागीय जलासुर अफसरों द्वारा हुई भ्रष्टाचार की दास्ताँ अब अपनी बरबादी की गुहार लगा रहा है। रखरखाव नही होने से नहर से बहकर आने वाले बालू से कई किसानों के खेत; खेती करने लायक भी नही बचा है। कुल मिलाकर प्रभावित किसानो को चौतरफा नुकसान हुआ है, प्रभावित किसान बैतू राम,सोनके राम, लीमा धर, तेजराम, रुद्रो राम, खिरोधर, रोहित और बहाल जैसे 52 किसानो की माने तो वे मुआवजा की समस्या को लेकर जल संशाधन सहित धरमजयगढ़ एस डी एम् कार्यालय का चक्कर लगाकर थक चुके हैं लेकिन अधिकारियों से सिवाय आश्वासन के कुछ न मिला यहाँ तक की जिला कलेटर को जनदर्शन में आवेदन क्रमांक 040317021179 टोकन नंबर 040317013040 दिनांक 12/09/17 को आवेदन भी लगा चुके हैं पर नतीजा शून्य ही रहा। परेशान किसान समय के सांसद विष्णु देव साय से भी गुहार लगा चुके हैं। और अब किसानों में मुआवजा नहीं मिलने पर धीरे-धीरे आक्रोश पनपने लगा है कुछ किसान तो जीवन त्यागने तक की बात कहने लगे हैं और जल संसाधन विभाग कार्यालय जाकर अधिकारियों का घेराव करने का मन बना चुके हैं।
इस सम्बन्ध में धरमजयगढ़ एसडीएम नन्द कुमार चौबे से जानकारी ली गई तो उन्होंने बताया कि प्रकरण प्रक्रियाधीन है, धारा 04 का प्रकाशन हो चूका है। धारा 19 का प्रकाशन होना बाकी है, उसके पश्चात धारा 21 की कार्यवाई की जायेगी। तब जाकर तत्काल अवार्ड पारित किया जाएगा। देरी होने की वजह धरमजयगढ़ जल संसाधन विभाग द्वारा किसानो का एकजाई प्रकरण समय पर नहीं बनाया जाना बताया गया।
इस लापरवाही की वजह जो भी हो लेकिन इसमें किसानो का बड़ा आर्थिक नुकसान होता दिख रहा है। किसानो की माने तो एक मात्र जमीन ही उनके जीवन निर्वाह का सहारा था जिसमे खेतीबाड़ी कर अनाज पैदा कर अपने और परिवार का भरण पोषण करते थे नहर निर्माण में उनकी जमीन चले जाने से उनकी माली हालत खस्ता हो चुकी है। मुआवजे के पैसे मिलेंगे सोचकर अपने भविष्य के सुनहरे सपने बुन रहे थे, लेकिन लंबे समय से मुआवजा लंबित होने की वजह से उनके सपने चूर-चूर हो गए है। नतीजन मुआवजा कब मिलेगा ये सोच सोचकर बहुत से किसान मानसिक रूप से अवसाद के शिकार हो चुके हैं।
सूत्र : *munadi.com

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