Welcome to CRIME TIME .... News That Value...

Chhattisgarh

राजनीतिक पहुंच में अजब का कमाल, आयुष (विभाग) में बैठा “बदेशा” दलाल !

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद दोनों प्रमुख दलों को अपनी सत्ता की प्यास बुझाने का मौका मिला। एक थोपा गया था, जिसके भय से मुक्ति के लिए चुनावी वैतरणी में प्रदेश की जनता ने उसकी नैय्या पार लगा दी। दूसरे डॉ. रमन सिंह; जिसे जनता ने चुनकर सत्ता सौंपी। अपनी पहली पारी की सफलता से लबरेज होकर चाँऊर वाले बाबा की उपाधि से नवाजे जाने के बाद डॉ. साहब इतना कुप्पा हो गये कि अपने मंत्रीमण्डल में अनेक नालायक मंत्रियों और नौकरशाहों को एक हद तक लूटने-खसोटने और मनमर्जी करने की मौन स्वीकृति दे डाली। माना कि किसी भी प्रदेश के संचालन में आईएएस, आईपीएस तथा आईएफएस अधिकारियों की अहम् भूमिका होती है, मगर जहाँ इन अधिकारियों की अनिवार्यता होनी चाहिए वहाँ इन्हें पदस्थ न कर उक्त पदों में अपने चापलूसों की पदस्थापना कर अपनी सात पुश्तों की जिंदगी संवारने में महारत हासिल करने वाले ये नालायक नेता कैसे-कैसे हथकण्डें अपनाते हैं इसका जीता-जागता उदाहरण छत्तीसगढ़ में बहुतयात में देखने-सुनने मिल जायेंगे।
कमल शुक्ला
रायपुर (hct)। बिलासपुर जिले के पेण्डारी में आयोजित सरकारी नरसंहार की बलिवेदी का भष्मासुर महावर फार्मा के संचालकों पर महज धारा 420 के तहत कार्रवाई कर इस नरसंहार का सरकारी पिण्डदान कर दिया गया ! रमन सरकार के इस त्रि-वर्षीय कार्यकाल में जितनी फज़ीहत अमर अग्रवाल के स्वास्थ्य विभाग में हुई है उतनी तो शायद मूणत और बृजमोहन अग्रवाल के विभागों में भी नहीं हुई होगी !
एक ओर खाद्य एवं औषधि प्रशासन में पदस्थ एक दागी अधिकारी एस. बाबू ने जिस महावर फार्मा को गुड मैन्युफेक्चरिंग का प्रमाण-पत्र देकर प्रदेश के निर्दोष जनता की जान लेने का लाईसेंस ही जारी कर दिया। वहीं दूसरी ओर ”डिपार्टमेंट ऑफ आयुष” में संचालक के महत्वपूर्ण पद पर एक अयोग्य और कमीशनखोर डॉक्टर जी०एस० बदेशा का पिछले दस वर्षों से काबिज रहना रहस्यमय है। नियमों के अनुरूप इस विभाग में विभागाध्यक्ष अथवा प्रमुख को आईएएस होना आवश्यक है, पर इस अधिकारी विशेष के साथ सरकार का और खासकर स्वास्थ्य मंत्रालय का ऐसा क्या सम्बंध है कि इन्हें एक नहीं तीनों कार्यकाल में एक ही स्थान पर बैठाया गया है। सूत्रों के अनुसार इस अधिकारी को अविभाजित मध्यप्रदेश के समय अनियमितता व भ्रष्टाचार के मामले में एक जाँच रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से इन्हें किसी प्रशासकीय भूमिका नहीं देने की अनुशंसा की गयी है।
स्वास्थ्य विभाग में सत्ता के कर्णधारों, दलालों और सप्लायरों की सांठ-गांठ का एक और मामला उजागर हुआ है। अब अपने संदेहास्पद रवैये से छत्तीसगढ़ का डिपार्टमेंट ऑफ आयुष शक के दायरे में है। इस विभाग में दवा सप्लाई का कोई ठोस तकनीकी आधार अभी तक नहीं निर्धारित किया गया है, आवश्यकता अनुरूप आज तक कभी भी आपूर्ति नहीं की जाती।
विभागीय सूत्रों के अनुसार कुछ ऐसी दवाएं भी सप्लाई होती है जिनकी समापन तिथि सप्लाई के बाद कुछ ही महीने में होने वाली होती है। सबस्टैण्डर्ड दवाईयाँ बारम्बार $खरीदी जाती है। प्राय: ऐसी फार्मेसियों की दवाईयों की खरीदी होती है जो ओपन मार्केट में प्रचलित नहीं है, रेपुटेड नहीं है, और जिनका काम केवल घटिया दवाईयाँ ही तैयार करना है।
एक जानकारी के अनुसार डिपार्टमेंट ऑफ आयुष, छ.ग. में सरकारी दवा खरीदी में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि मंत्रियों के रिश्तेदारों या मित्रों के मालिकाना हक वाली फार्मेसी से दवा खरीदी जाय (महावर फार्मा के मालिकों का आरएसएस से सम्बंध इस बात के पुख़्ता सबूत हैं।) या फिर ऐसी फार्मेसी से जो बेशुमार कमीशन दे सके। राज्य बनने के बाद दवाओं की सैम्पलिंग के नियम और की गयी जाँच के नतीजों पर की गयी कार्यवाहियाँ आश्चर्यजनक हैं। इसी विभाग के कुछ विशेषज्ञों से यह भी पता चला है कि छ.ग. बनने क ेबाद सप्लाई की गयी सरकारी दवाईयों के स्तर और गुणवत्ता में भारी गिरावट आयी है।
गुणवत्ता की जाँच के लिये आयुष ड्रग कंट्रोलर के निर्देशानुसार आयुर्वेद और यूूनानी की केवल शास्त्रोक्त दवाओं की सेम्पलिंग की जाती है, प्रॉपीटरी दवाओं की नहीं, जबकि प्रॉपीटरी (ब्राण्डेड) दवाईयों में ही मिलावट और घटिया स्तर होने की अधिक सम्भावनाएं हैं। बताया गया है कि ब्राण्डेड दवाओं की जाँच का अभी तक कोई वैज्ञानिक पैमाना विकसित नहीं हुआ है। यदि ऐसा है तो फिर ब्राण्डेड दवाएं सरकारी स्तर पर खरीदी ही क्यों जाती है?

अपनों को फायदा दिलाने की नीति

खरीदी गई घटिया दवाईयों के उस बैच को तो कम्पनी द्वारा वापस मंगवा लिया जाता है! किन्तु उस दवा फार्मेसी को कभी ब्लेकलिस्टेड नहीं किया गया!! और अगले वर्ष फिर उसी कम्पनी से घटिया दवाईयाँ खरीदी जाती है। प्राय: बिलासपुर, गोआ, एवं कर्नाटक की स्तरहीन दवाईयों की खरीदी कर सप्लाई की जा रही है। इन दवा कम्पनियों से सत्तारूढ़ दल के नेताओं की नजदीकियों की खबर तो है, लेकिन इनमें से कुछ कम्पनियों के मालिको का तो सीधे सत्ता से जुड़े होने की भी पुष्टि होती है। अल्मोड़ा में केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित शासकीय आयुर्वेदिक फार्मेसी है जिसकी गुणवत्ता अच्छी है, केन्द्र सरकार के निर्देश के बाद भी छत्तीसगढ़ में वहाँ की दवाईयाँ प्राय: नहीं खरीदी जाती सिर्फ दिखावा मात्र के लिए थोड़ी बहुत खरीदी कर इतिश्री मान लिया जाता है।

*7 दिसंबर 2014 को हाईवे क्राइम टाइम के fb पेज में प्रकाशित।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page