कोटवार और चक्रधारी पेयजल की समस्या को लेकर पड़ रहे ग्रामीणों पर भारी…
शासकीय हैंडपंप पर कब्जा प्रशासन मौन ! अवैध ईंट भट्ठों से धधक रहा गुरूर कार्रवाई करेगा कौन ?

गुरूर (बालोद) hct : ग्राम कंवर सहित आसपास के कई गांव इन दिनों दोहरी मार झेल रहे हैं, एक ओर भीषण गर्मी में पेयजल संकट, दूसरी ओर शासकीय संसाधनों पर दबंगों का कब्जा और प्रशासन की खामोशी। कोटवार गंभीर राम और उनके सहयोगी गंगा राम चक्रधारी पर आरोप है कि उन्होंने गांव के शासकीय हैंडपंप को उखाड़कर वहां निजी मोटर पंप स्थापित कर लिया है, जिससे ग्रामीणों को जल संकट का सामना करना पड़ रहा है।
शासकीय जमीन पर खुलेआम ईंट भट्ठा, नियमों को दिखा रहे ठेंगा
ग्रामीणों के अनुसार, आरोपितों द्वारा कोटवारी सेवा भूमि पर अवैध रूप से ईंट भट्ठा भी संचालित किया जा रहा है। शासन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद यह कारोबार बेधड़क चल रहा है, मानो प्रशासन को खुली चुनौती दी जा रही हो। न केवल ग्राम कंवर, बल्कि सनौद, बोहारा, डोटोपार, अरकार, कोसागोंदी, पेंडरवानी, देवकोट और सांगली जैसे गांव भी इसी संकट से गुजर रहे हैं।
प्रशासनिक चुप्पी : मूक दर्शक बना सिस्टम
खनिज विभाग, तहसील कार्यालय और स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को पूरे मामले की जानकारी होने के बावजूद अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। अधिकारी निरीक्षण कर लौट जाते हैं, लेकिन न तो ईंट भट्ठों पर ताले लगे, न ही शासकीय हैंडपंप को बहाल किया गया।
धुएं, राख और जल संकट से त्रस्त ग्रामीण, जनहित में कार्रवाई की मांग
ग्रामीणों का कहना है कि ईंट भट्ठों से निकलने वाली राख हवा में उड़कर न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए खतरा बन रही है, बल्कि आंखों में जलन और सांस की समस्याएं भी बढ़ रही हैं। वे चाहते हैं कि शासकीय बोर का पानी फिर से सार्वजनिक हित में उपयोग हो चाहे वह पेयजल के रूप में हो या जलविहीन शौचालयों में।
प्रशासन पर उठे गंभीर सवाल, क्या है मिलीभगत की संभावना?
ग्रामीणों ने आशंका जताई है कि कहीं प्रशासनिक उदासीनता के पीछे कोई साठगांठ तो नहीं? यदि नहीं, तो फिर कार्रवाई में देरी क्यों? मीडिया के माध्यम से अपनी पीड़ा साझा करते हुए ग्रामीणों ने शासन से त्वरित कार्रवाई की मांग की है।
अब सवाल ये है: क्या जागेगा प्रशासन, या फिर यही रहेगा हाल?
ग्रामीणों की उम्मीदें अब प्रशासनिक कार्रवाई पर टिकी हैं। क्या अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगेगा? क्या शुद्ध जल के लिए तरसते लोगों को उनका हक मिलेगा? या फिर यह मामला भी फाइलों की धूल में दब जाएगा?

