नियमितीकरण की मांग पर अड़े पंचायत सचिव, आंदोलन हुआ तेज…
आंदोलनकारियों का कहना है कि जब तक ठोस निर्णय नहीं लिया जाएगा, तब तक हड़ताल जारी रहेगी।

गुरूर {बालोद} hct : छत्तीसगढ़ में पंचायत सचिवों का आंदोलन अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। बीते एक माह से कलमबंद हड़ताल पर बैठे सचिव अपनी नियमितीकरण और शासकीयकरण की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। सचिवों का कहना है कि जब तक उन्हें स्थायी कर्मचारी का दर्जा नहीं दिया जाता, वे काम पर नहीं लौटेंगे।
प्रदेश भर के पंचायत सचिव इस समय रायपुर समेत विभिन्न जिलों में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। इनका आरोप है कि वे वर्षों से पंचायत स्तर पर विकास योजनाओं से लेकर जनसेवा के विभिन्न कार्यों का निर्वहन कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अब तक शासकीय कर्मचारी का दर्जा नहीं दिया गया है।
28 विभागों का कार्यभार, पर अधिकारों से वंचित
पंचायत सचिवों का दावा है कि उनके ऊपर लगभग 28 से 29 विभागों का कार्यभार है, जिसमें विकास योजनाओं का क्रियान्वयन, रिकॉर्ड संधारण, जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करना, राजस्व संकलन, शासन की योजनाओं का प्रचार-प्रसार आदि शामिल हैं। इसके बावजूद उन्हें वे सभी सुविधाएं नहीं मिल रहीं जो किसी नियमित कर्मचारी को मिलती हैं।
भविष्य असुरक्षित, पेंशन और अन्य लाभों से वंचित
सचिवों का कहना है कि वर्तमान में उन्हें केवल कार्यकाल के दौरान ही वेतन मिलता है, लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद न पेंशन की सुविधा है, न ही किसी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ। इससे उनका भविष्य असुरक्षित बना हुआ है।
‘गारंटी’ की याद दिला रहे सचिव
सचिवों ने विधानसभा चुनाव से पूर्व भाजपा सरकार द्वारा किए गए वादों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “गारंटी” का हवाला देते हुए सरकार से पूछा है कि आखिर उनकी मांगें अब तक पूरी क्यों नहीं हुईं। आंदोलनकारियों का कहना है कि जब तक ठोस निर्णय नहीं लिया जाएगा, तब तक हड़ताल जारी रहेगी।
पंचायत कार्य ठप, सरपंच भी असहाय
ग्राम पंचायतों में सचिवों की अनुपस्थिति के कारण विकास कार्य पूरी तरह ठप हो चुके हैं। नवनिर्वाचित सरपंचों को भी प्रशासनिक कार्यों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। कई गांवों में बुनियादी सुविधाओं से जुड़े काम तक रुके हुए हैं।
सरकार से शीघ्र पहल की मांग
आंदोलनरत पंचायत सचिवों ने राज्य सरकार से मांग की है कि उनकी समस्याओं के समाधान हेतु उच्चस्तरीय प्रशासनिक समिति का गठन कर शीघ्र निर्णय लिया जाए, जिससे वे अपने कार्यस्थल पर लौट सकें और ग्राम पंचायतों की व्यवस्था पुनः सुचारु रूप से चल सके।
असमंजस की स्थिति निर्मित
पंचायत सचिवों का यह आंदोलन राज्य की ग्रामीण प्रशासनिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। अब यह देखना अहम होगा कि सरकार इस मसले पर कितना संवेदनशील रुख अपनाती है और कब तक कोई ठोस निर्णय लेकर सचिवों का विश्वास बहाल करती है।

