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Chhattisgarh

शहीद जवान के परिवार पर बुलडोजर का खतरा: भुंसरेंगा में मंडराया आतंक

छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के गुण्डरदेही विधानसभा क्षेत्र के ग्राम भुंसरेंगा में एक शहीद जवान के परिवार पर बुलडोजर का संकट मंडरा रहा है।

“जय जवान, जय किसान” का नारा भारत की मिट्टी में रचा-बसा है, लेकिन छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के गुण्डरदेही विधानसभा क्षेत्र के ग्राम भुंसरेंगा में एक शहीद जवान के परिवार पर बुलडोजर का संकट मंडरा रहा है। यह कहानी है 19 महार रेजीमेंट के वीर शहीद उमेश कुमार साहू के परिजनों की, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए, लेकिन आज उनके परिवार को अपने ही गांव में अपमान और धमकी का सामना करना पड़ रहा है।

शहीद के परिजनों की शिकायत

शहीद उमेश कुमार साहू की पत्नी और उनके परिवार ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, सेना प्रमुख, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और बालोद जिला कलेक्टर को एक लिखित शिकायत भेजी है। शिकायत में उन्होंने बताया कि ग्राम भुंसरेंगा के कुछ ग्रामीण उनकी सात डिसमिल जमीन के बदले 30 डिसमिल जमीन की मांग कर रहे हैं। इस मांग को पूरा न करने पर इन ग्रामीणों द्वारा उनके घर पर बुलडोजर चलाने की धमकी दी जा रही है।

शहीद की पत्नी ने अपनी शिकायत में यह भी उल्लेख किया कि यह धमकी न केवल उनके परिवार के लिए अपमानजनक है, बल्कि देश के उस वीर सैनिक की शहादत का भी अपमान है, जिसने लेह-लद्दाख की दुर्गम सीमा पर ऑक्सीजन की कमी के बीच अपनी जान गंवाई।

शहीद का परिवार अकेला और असहाय

शहीद उमेश कुमार साहू का ससुराल भुंसरेंगा में ही है, जहां उनकी पत्नी अपने बीमार ससुर और बच्चों के साथ रहती है। उनके मायके में उनकी मां ही उनका एकमात्र सहारा हैं, जो अपनी बेटी और नाती-पोतियों की देखभाल करती हैं। शहीद की पत्नी का कहना है कि उनके पास न तो कोई और आर्थिक सहारा है और न ही कोई ऐसा समर्थन, जो इस संकट में उनकी ढाल बन सके। ऐसे में ग्रामीणों की दबंगई और बुलडोजर की धमकी उनके लिए असहनीय पीड़ा का कारण बन गई है।

शहीद की शहादत और प्रशासनिक उदासीनता

उमेश कुमार साहू ने लेह-लद्दाख की कठिन परिस्थितियों में देश की रक्षा करते हुए अपनी जान दी थी। वहां ऑक्सीजन की कमी ने उनकी सांसें छीन लीं, लेकिन आज उनके परिवार को “प्रशासनिक ऑक्सीजन” की कमी का सामना करना पड़ रहा है। शिकायत के बावजूद अभी तक इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है, जिससे परिवार में आक्रोश और असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। शहीद की पत्नी का कहना है, “जब देश का जवान सरहद पर शहीद हो जाता है, तो क्या उसके परिवार का यह हश्र होना चाहिए? क्या यही सम्मान है जो हमें मिलना चाहिए?”

सैनिकों का बलिदान और देश का कर्तव्य

हर देश के लिए उसका सैनिक अनमोल होता है। भारत जैसे देश में, जहां सैनिक कड़ाके की ठंड, चिलचिलाती गर्मी, बाढ़ और बारिश में भी सरहद पर डटकर मातृभूमि की रक्षा करते हैं, उनकी शहादत को सर्वोच्च सम्मान दिया जाता है। ये वीर सैनिक अपने परिवार और सुख-सुविधाओं को त्यागकर देशवासियों के लिए चैन और सुकून का रास्ता बनाते हैं। जब तक ये जवान सीमा पर मुस्तैद रहते हैं, तब तक देश का हर नागरिक अपने घर में सुरक्षित सो पाता है। लेकिन भुंसरेंगा की यह घटना एक सवाल खड़ा करती है- क्या हम इन शहीदों के परिवारों को वही सम्मान और सुरक्षा दे पा रहे हैं, जिसके वे हकदार हैं?

“जय जवान, जय किसान” का अपमान?

भारत वह देश है, जहां किसानों और जवानों को बराबर सम्मान दिया जाता है। “जय जवान, जय किसान” का नारा देश की आत्मा में बसा है। लेकिन आज जब एक शहीद जवान का परिवार अपने ही गांव में असुरक्षित महसूस कर रहा है, तो यह नारा खोखला साबित होता दिख रहा है। शहीद उमेश कुमार साहू जैसे वीरों ने देश के लिए अपने प्राण दिए, लेकिन उनके परिवार को आज बुलडोजर के आतंक से बचाने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा। यह स्थिति न केवल शहीद के परिवार के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए शर्मिंदगी का विषय है।

आधुनिक युग में सैनिकों की चुनौती

आज विश्व भर में युद्ध का माहौल बना हुआ है। ऐसे में भारत के सैनिकों का योगदान और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। जहां दुनिया के कई देशों में युवा सुख और आराम को प्राथमिकता दे रहे हैं, वहीं भारत के युवा अपनी मातृभूमि के लिए सरहद पर खून बहाने को तैयार हैं। लेकिन जब शहीदों के परिवारों के साथ ऐसा व्यवहार होता है, तो यह देश की उस भावना पर चोट करता है, जो हर भारतीय के दिल में बस्ती है।

अपील और उम्मीद

शहीद उमेश कुमार साहू के परिवार ने प्रशासन और सरकार से न्याय की गुहार लगाई है। उनकी मांग है कि इस मामले की गंभीरता को समझा जाए और उनके घर को बुलडोजर के खतरे से बचाया जाए। यह सिर्फ एक परिवार की कहानी नहीं, बल्कि देश के हर उस जवान की शहादत का सवाल है, जो अपनी जान देकर हमारे लिए अमन का रास्ता बनाते हैं। अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन और समाज इस परिवार को वह सम्मान और सुरक्षा दे पाएगा, जिसका वे हकदार हैं? या फिर “जय जवान” का नारा सिर्फ किताबों और भाषणों तक ही सीमित रह जाएगा?

“बुलडोजर के आतंक से आज तक कौन बचा है भगवान?”

यह पंक्ति सिर्फ एक परिवार की पीड़ा नहीं, बल्कि उस विडंबना को दर्शाती है, जहां शहीदों के सम्मान की बात तो होती है, लेकिन उनके परिवारों की रक्षा के लिए कदम नहीं उठाए जाते। अब समय है कि इस परिवार को न्याय मिले और शहीद की शहादत का सम्मान बना रहे।

अमीत मंडावी
संवाददाता

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