Chhattisgarh
राजनीति के मर्तबान में नक्सलवाद का मुरब्बा।
रायपुर (hct)। मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ बंटवारे के बाद विरासत में मिली माओवाद समस्या सरकार के इतनी फायदेमंद साबित होगी किसी ने सोंचा भी नहीं होगा…! जब पंजाब से आतंकवाद को जड़ से समाप्त किया जा सकता है तो फिर छत्तीसगढ़ से नक्सल समस्या का समाधान क्यों नहीं ? दरअसल माओवाद इतनी बड़ी समस्या है ही नहीं जिसका खात्मा नहीं किया जा सके। छत्तीसगढ़ सरकार के लिए माओवाद एक ऐसा साधन बन चुका है जिसके माध्यम से केंद्र द्वारा फंड पाने की दृष्टि से प्रमुख सत्ता दलों ने इसे “मुरब्बा” बना रखा है; और इसके पीछे की मूल कहानी यह कि बस्तर की वादियों में छिपी अकूत खनिज संपदा; जिस पर बड़े कुबेरपतियों की कुदृष्टि लगी है जिनके हाथों में समूचे बस्तर की सरजमीं को बेचा जा सके। चूंकि बस्तर वनाच्छादित अंचल है और यहाँ इसको देव मानने वाले सीधे सरल आदिवासी निवास करते हैं जो जल-जंगल-जमीन को अपना सर्वस्व मानकर इसकी रक्षा करते हैं। यहीं से शुरुआत होती हैं नक्सल की समस्या जो सरकार के आंखों में किरकिरी बनी हुई है और इसे हटाने-भगाने की नीयत से नक्सलवाद का बीजारोपण किया गया है।
कांग्रेस की जोगी सरकार के साथ अपना सफर तय करते नक्सल समस्या, भाजपा के रमन सरकार में इतना विकराल रूप धारण करा दिया जाएगा; किसी ने कल्पना भी नहीं किया होगा। राज्य के डीजीपी डीएम अवस्थी से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक भाजपा शासनकाल के ही अंतिम तीन वर्षों में छत्तीसगढ़ के इतिहास में पिछले तीन साल में ऐतिहासिक आंकड़े सामने आए हैं। पिछले तीन साल 2016, 2017 और 2018 में क्रमश 211,198 और 166 मुठभेड़ हुए है। इन तीन सालों में 336 नक्सलियों के डेड बॉडी बरामद की गई। 3141 नक्सलियों की गिरफ्तारी की गई। ये तीन साल में 829 लैंडमाइंस बरामद, शहीद पुलिस 151 वीरगति प्राप्त की, 207 आम नागरिक चपेट में आए हैं। नक्सलियों से 818 हथियार जब्त किए गए और पुलिस से लुटे गए हथियारों की संख्या 59 है।
जानकारों का मत है कि प्राप्त आंकड़ों में अनेक फर्जी मुठभेड़ भी शामिल हैं जिसमें निर्दोष आदिवासियों को नक्सली होने के शक में बलात घर से निकाल उन्हें गोली मार दी जाती है और मृत शरीर को वर्दी पहनाकर उसके हाथों में भरमार नामक बंदूके भी थमा दी जाती रही है…!