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Chhattisgarh

माकपा ने पूछा : प्रधानमंत्रीजी, जनता के प्रति राज्य के कर्तव्यों को कौन पूरा करेगा ?

मार्क्सवादी म्युनिस्ट पार्टी ने प्रधानमंत्री मोदी के आज के संदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि तीन सप्ताह के लॉक डाउन के त्रासद अनुभव से उन्होंने कोई सबक हासिल नहीं किया है, क्योंकि उनके संबोधन में कोरोना का शिकार हुए 300 से अधिक मौतों और अनियोजित लॉक डाउन से उपजी अफरा-तफरी के कारण हुई 200 से अधिक मौतों का कोई गम नहीं था। उल्टे उन्होंने संवेदनहीन तरीके से लॉक डाउन बढ़ाने की जो घोषणा की है, उससे प्रवासी और दिहाड़ी मजदूरों, स्वरोजगार में लगे लघु व्यवसायियों, किसानों और ग्रामीणजनों की त्रासदी और भुखमरी की समस्या में कई गुना ज्यादा इजाफा होने वाला है।

एक जारी बयान में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि देश की जनता यह आशा कर रही थी कि लॉक डाउन के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट से उबरने के लिए प्रधानमंत्री कुछ ठोस कदमों के साथ सामने आएंगे, लेकिन उसे निराश ही होना पड़ा। इस समय हमारे देश के गरीब भूख से मर रहे हैं और प्रवासी मजदूर आवास के संकट से जूझ रहे हैं, कोरोना से बचाव के लिए उनके पास मास्क व दस्ताने तक नहीं है, चिकित्सक पीपीई व स्वास्थ्य कर्मी न्यूनतम सुरक्षा उपकरणों के बिना कार्य करते हुए स्वयं कोरोना का शिकार हो रहे हैं, करोड़ों मजदूरों की आजीविका खत्म हो गई है, तो किसानों का उत्पादन खेत में पड़े-पड़े सड़ रहा है और उनकी कीमतें गिर गई है, राज्य सरकारें इस महामारी से निपटने के लिए और अपने प्रदेश की जनता को राहत देने के लिए आर्थिक संसाधनों के अभाव से जूझ रहे हैं। अफसोस की बात है कि ये सब मुद्दे प्रधानमंत्री की चिंता का विषय नहीं है। इस महामारी की आड़ में संघी गिरोह द्वारा सांप्रदायिक दुष्प्रचार करके समाज में जो जहर घोला जा रहा है, उस पर भी उन्होंने सोची-समझी चुप्पी साध ली है।

माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने प्रधानमंत्री द्वारा जनता को उनके सात कर्तव्य बताने पर उलट कर पूछा है कि प्रधानमंत्रीजी, जनता के प्रति राज्य की जिम्मेदारियों को कौन पूरा करेगा और इस अनियोजित लॉक डाउन के कारण हुई 200 से ज्यादा मौतों की जिम्मेदारी कौन लेगा? उन्होंने कहा है कि आर्थिक पैकेज के नाम पर जनता के लिए जो थोड़ी-सी राहत देने की घोषणा भी की गई है, अभी तक जमीन पर नहीं उतरी है। प्रधानमंत्री की अपील का उद्योगपतियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है और बड़े पैमाने पर मजदूरों की छंटनी की गई है और उन्हें मार्च माह के वेतन और मजदूरी तक से वंचित होना पड़ा है।

माकपा ने कोरोना से निपटने के लिए जीडीपी का कम-से-कम 5% खर्च करने और इसका राज्यों के बीच न्यायपूर्ण वितरण करने, उन्हें युद्ध स्तर पर बड़े पैमाने पर पीपीई, जांच किटों सहित चिकित्सा उपकरण व सुविधाएं उपलब्ध कराने, अपनी आजीविका खोने वाले सभी लोगों को उनकी मजदूरी और आय के हो रहे नुकसान की भरपाई करने, रबी फसल को स्वामीनाथन आयोग के सी-2 लागत मूल्य के आधार पर डेढ़ गुना भाव में सरकारी खरीदी करने, सभी पंजीकृत मनरेगा मजदूरों को काम देने या काम न दे पाने पर पूरी मजदूरी का भुगतान करने, 20 अप्रैल के बाद प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने की व्यवस्था करने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक करने की मांग की है।

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