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Chhattisgarh

भू-माफियाओं के खिलाफ आदिवासी समाज की भूख हड़ताल चौथे दिन भी जारी।

कर्रेझर के करीब 20 परिवारों ने अपनी जमीनें बेचीं, जिन्हें एक आदिवासी के नाम पर खरीदा गया और बाद में बेच दिया गया।

बालोद hct : जिले के वनांचल ग्राम कर्रेझर के आदिवासी परिवार, जमीन माफियाओं के खिलाफ एकजुट होकर पिछले तीन दिनों से भीषण गर्मी में शहीद वीर नारायण सिंह की प्रतिमा के सामने राजराव पठार में भूख हड़ताल पर बैठे हैं। यह स्थान तीन जिलों के आदिवासियों का मिलन स्थल है और उनकी देवभूमि मानी जाती है। बता दें कि जमीन हड़पने के इस खेल के पीछे कुछ रसूखदार और धनाढ्य लोगों के साथ भू-माफिया गिरोह की साजिश बताई जा रही है।

ये शातिर लोग भोले-भाले आदिवासियों की कम शिक्षा और गरीबी का फायदा उठाकर चंद रुपये के लालच में शासकीय दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवा लेते हैं। जब तक असली मालिक को इसकी भनक पड़ती है, उनकी कौड़ियों के भाव बिकी जमीन करोड़ों की हो जाती है और मालिकाना हक किसी और के हाथ चला जाता है। इस बीच दलाल मुनाफा कमाते हैं, जबकि असली मालिक बदहाली में जीने को मजबूर हो जाता है।

जब तक उनकी जमीन वापस नहीं मिलती, वे यह हड़ताल खत्म नहीं

आंदोलनकारियों का आरोप है कि धमतरी और बालोद के कुछ भू-माफियाओं ने 16 आदिवासी किसानों की जमीन को पहले एक आदिवासी महिला के नाम पर खरीदा और अब उसे सामान्य वर्ग के नाम हस्तांतरित करने के लिए कलेक्ट्रेट में आवेदन दिया है। इन जमीनों पर सैकड़ों एकड़ में फार्म हाउस बनाए गए हैं। इसकी जानकारी मिलते ही आदिवासी समाज ने विरोध शुरू कर दिया और भूख हड़ताल पर बैठ गया। भूख हड़ताल कर रहे आदिवासी परिवारों का साफ कहना है कि जब तक उनकी जमीन वापस नहीं मिलती, वे यह हड़ताल खत्म नहीं करेंगे।

ग्रामीण आदिवासी परिवारों के कई सदस्य, अपने बच्चों और परिजनों सहित इस भूख हड़ताल में शामिल हैं। आंदोलनरत ग्रामीणों में से एक आदिवासी युवक विनोद नेताम ने बताया कि, “हम आदिवासियों का शोषण हो रहा है, जिसके खिलाफ हम आंदोलन कर रहे हैं। कर्रेझर के करीब 20 परिवारों ने अपनी जमीनें बेचीं, जिन्हें एक आदिवासी के नाम पर खरीदा गया और बाद में बेच दिया गया। आदिवासियों को आड़ में इस्तेमाल कर यहां करोड़ों का खेल खेला जा रहा है।”

उन्होंने खुलासा किया कि इस क्षेत्र के उद्यान का हवाला देकर धमतरी जिले में हॉर्टिकल्चर कॉलेज संचालित किया जा रहा है। विनोद ने कहा, “जिस जगह हम आज बैठे हैं, वह आदिवासी समाज की पवित्र देवभूमि है। हम अपने अधिकारों के लिए यहां डटे हैं। 30 हजार रुपये में बेची गई जमीनों का सौदा अब करोड़ों में हो रहा है।”

प्रशासन की सुस्ती बनी कारण

आदिवासी समाज ने इस मामले की शिकायत 1 जुलाई 2024 को कलेक्ट्रेट में दर्ज की थी, लेकिन जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। नतीजतन, समाज को अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू करनी पड़ी। इससे पहले 26 मार्च को धरना दिया गया था, पर बात नहीं बनी। अब समाज “जल, जंगल, जमीन भुमकाल” का नारा बुलंद कर अपनी मांगों पर अड़ा है। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि यदि मामले का समाधान नहीं हुआ, तो वे बस्तर-रायपुर नेशनल हाइवे को जाम करने के लिए मजबूर होंगे। यहां की स्थिति गंभीर बनी हुई है, और आदिवासी समुदाय अपने हक की लड़ाई में अडिग दिखाई दे रहा है।

कौड़ियों की जमीन, करोड़ों की साजिश

सूत्र बताते हैं कि यह 52 एकड़ जमीन महानदी और गंगरेल बांध के संगम क्षेत्र में स्थित है। वनांचल और पहाड़ी इलाका होने के कारण यह बेहद खूबसूरत और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। भविष्य में यहाँ रिसॉर्ट और आवासीय परिसर बनाकर मोटा मुनाफा कमाने की योजना है। इसीलिए भू-माफियाओं की नजर इस पर टिकी है। लेकिन आदिवासी समाज को डर है कि रिसॉर्ट संस्कृति उनकी मान्यताओं और परंपराओं को नष्ट कर देगी। फिलहाल समाज का कहना है कि यह आंदोलन शुरुआत मात्र है। यदि प्रशासन ने पीड़ितों को उनकी जमीन वापस नहीं दिलाई, तो यह प्रदर्शन प्रदेशव्यापी रूप ले सकता है।

पुलिस और एम्बुलेंस की तैनाती

सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले चल रहे इस भूख हड़ताल को देखते हुए प्रशासन ने चौबीसों घंटे पुलिस बल तैनात किया है। आपात स्थिति से निपटने के लिए एम्बुलेंस भी मौके पर मौजूद है।

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