Welcome to CRIME TIME .... News That Value...

Chhattisgarh

शराबबंदी : महज एक छलावा…

स्वतंत्रता आँदोलन के दौरान गाँधीजी ने भी कहा था (इस बात की पुष्टि हम नहीं करते) कि; “यदि एक क्षण के लिये भी मुझे तानाशाह बना दिया जावे तो मैं सबसे पहले शराबबंदी करुंगा।” गाँधीजी के नाम पर राजनैतिक रोटियां सेकने वाले देश व प्रदेशो में सत्तासीन रहे पर शराबबंदी के मसले पर शुतुरमुर्ग रव्वैया अपनाते रहे हैं। शराबबंदी का चुनावी दहाड़ मारने वाला छत्तीसगढ़ सरकार भी शराबबंदी को लेकर सिवाय झुनझुना बजाने के कुछ नहीं किया।

मुकेश श्रीवास्तव

छत्तीसगढ़ के अस्तित्व मे आने के बाद शुरुआती ढाई साल अजीत जोगी के अगुवाई मे काँग्रेस ने सत्तासुख भोगा, उसके बाद 15 वर्षों तक रमन सिंह के अगुवाई मे भाजपा सरकार ने शराब को लेकर जो नीति लागू की उससे सरकार के लिए कुबेर का खजाना खुल गया। और तो और तब के मुख्यमंत्री रमन सिंह जो चाऊंर वाले बाबा के नाम से प्रसिद्धि पा चुके थे दारू वाले बाबा के नाम से जाने पहचाने जाने लगे, लेकिन यही दारू (शराब) उस दारू वाले बाबा की लुटिया डूबा दी।
प्रदेश के एक नामी पत्रकार ने तो उक्ताशय को लेकर 2019 के चुनावी वैतरणी में दारू (शराब) पर एक गाना “ओ चाउंर वाले बाबा ओ दारू वाले बाबा…” तैयार किया था; जो चुनाव के नजदीक आते-आते समूचे भाजपा की नैया डूबने में काफी मददगार रही।

अब भूपेश बघेल के नेतृत्व मे एक बार फिर काँग्रेस सत्तासीन है। पहले कार्यकाल मे शराबबंदी का चुनावी वादा करने वाली प्रदेश कांग्रेस चरणबद्ध शराबबंदी का चुनावी नारा लगा, शराब दुकानों की संख्या घटाते-घटाते अंतिम क्षणों मे शराबबंदी लागू करने से ठिठक, पूर्ण शराबबंदी का चुनावी वादा कर सत्तासीन होने वाला भूपेश सरकार शराबबंदी के लिये दो समिति गठित कर अपने वादे को इन समितियों के प्रतिवेदन मिलने के बाद निर्णय लेने की बात रख ठन्डे बस्ते मे डाल दिया है। यह सर्वविदित है समाज में जितना जिस किसी को छिपाया / दबाया जाता है वह उसका उतनी ही तेजी से प्रचार-प्रसार होता है। खुद ही वीडियो देख लीजिए, हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को…

शराब को लेकर भूपेश सरकार में तो आलम यह कि जिस रमन सरकार में यह शराब जितना सर्वसुलभ था उसे उतना ही दुर्लभ किया गया और एक समय तो शराब के नाम पर ऐसा भी था जब इस वर्तमान सरकार के संरक्षण में इनकी पूरी जमात मंत्री से लेकर संत्री तक प्रदेश के मजदूर वर्ग के जेब में सीधा सीधा डाका डाल रहे थे। ऐसे में इस सरकार से शराबबंदी को लेकर कोई उम्मीद पालना खुली आँखों से सपना देखने के समान है। 

शराबबंदी के स्पष्ट चुनावी वादे के बाद कथित समितियों के गठन का औचित्य प्रबुद्धजनों सहित आमलोगों के समझ से परे तो है ही, गठित समितियों के सरकार के एक साल पूरा हो जाने के बाद भी अपना प्रतिवेदन सौँप न पाना काबलियत पर भी उँगली उठाता है और खासकर तब; जब सरकार की ओर से एक समिति के लिये विरोधी दलों द्वारा अब तक नाम न दिये जाने की बात कही जाती है। वादा काँग्रेस पार्टी का है, वादा भूपेश सरकार को पूरा करना है फिर इसके लिये समिति गठित करने और फिर समिति मे विरोधी दल को शामिल करने का औचित्य क्या हैं ? और क्या काँग्रेस पार्टी ने चुनावी वादा करने के पहले शराबबंदी के लाभ – हानि का अध्ययन नहीं किया था ? सरकार के इस कदम से आमजनों को भी यह लगने लगा है कि काँग्रेस पार्टी की मंशा शराबबंदी की नहीं वरन् यह महज चुनावी शिगूफा है। फिलहाल कोरोना संक्रमण के चलते लाकडाउन की वजह से आज तक शराब दूकाने बन्द रखने का सरकारी फरमान और बीते 2 अप्रैल को मदिरा दुकानों को खोले जाने की कार्यवाही तथा सञ्चालन हेतु समिति गठित किये जाने सम्बन्धी शासन द्वारा जारी आदेश के बाद शराबबंदी की माँग को ले एक बार फिर जलजला फूट चला है।

कुछ संघ / संगठन; जहाँ लाकडाउन समय सीमा तक इन मदिरालयों को बन्द रखने की माँग शासन से कर रहे हैं तो कुछ चुनावी वादे का याद दिला शराबबंदी लागू करने की माँग कर रहे। विपक्ष व सत्ता समर्थकों के भी बोल फूट पडे हैं। सत्ता समर्थक (इस बात को जानते हुए भी कि, भाजपा की खामियों के वजह से उन्हें जनता ने शासन की बागडोर सौँपी है।) जहाँ पूर्व मे सत्तासीन रहे दल द्वारा शराबबंदी न किये जाने की बात उठा विरोधी दल पर राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं; वहीं विरोधी दल को अब शराब दूकानों के खुलने से परिवारोँ की परेशानी व कानून -व्यवस्था का मँजर दिखाई पडने लगा है ! इन सब से इतर महिलाएं और खासकर ग्रामीण क्षेत्र के निवासी भगवान से अब कभी शराब दूकान न खुलने की प्रार्थना कर रहे हैं तो आम ग्रामीण अशाँति के माहौल समाप्त होने की स्थिति के मद्देनजर शराबबंदी के पक्ष मे खडे दिख रहे हैं। इन सब के बावजूद भी शासन द्वारा शराबबंदी लागू किये जाने की आशा बेमानी है।

शराबबंदी के लिये नितीश जैसी नियत व संकल्पशक्ति चाहिये।

सरकारी राजस्व के नाम पर शराब दूकानो के हिमायती शायद आज तक यह समझ नहीं पाये हैं कि शराब के दुष्परिणामों से निपटने मे शासन को जो खर्च करना पडता है वह आय से कहीं अधिक होता है और फिर शराब के राजस्व के भरोसे शासन चलाने के हिमायतियों को यह भी बताना चाहिये कि जिन राज्यों मे शराबबंदी लागू है वहां की सरकारें कैसे चल रही हैं खासकर बिहार की नीतीश सरकार जिन्होंने चुनाव मे शराबबंदी का नारा दिया और कुर्सी मे बैठते ही सबसे पहले शराबबंदी के कागज पर सरकारी मुहर लगायी और शराबबंदी न हटाने के लिये लगातार प्रतिबद्धता दिखा रहे हैं। भूपेश सरकार चुनावी वादे के बाद भी शराबबंदी के लिये नितीश कुमार जैसे नीयत व संकल्पशक्ति नहीं दिखा सके और भविष्य मे फिलहाल इसकी सम्भावना भी नहीँ दिखलायी पड रहा।इस स्थिति मे आज की हालात मे आमजनों के पास गाँधीवादी तरीके से आँदोलन के सिवा और अन्य कोई विकल्प नहीं दिख रहा है और इसकी शुरूआत गाँवो से ही करनी होगी।

https://chat.whatsapp.com/LG7AnYeyxJnCNvRAdKB1bH

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page