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तेजबहादुर के नामांकन रद्द पर सवाल ?

जब सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाने वाला बर्खास्त कोबरा कमांडों चुनाव लड़ सकता है तो तेजबहादुर क्यो नही…?

“तेज बहादुर के नामांकन पर प्रश्न उठाने वाले चुनाव आयोग से पूर्व कोबरा सुजॉय मंडल का सवाल”

नीतिन सिन्हा
कोलकाता। आपको याद होगा कि वर्ष 2013/14 में शहीद हेमराज और सुधाकर के सहादत के नाम पर तब का एक विपक्षी कद्दावर नेता चीख-चीखकर केंद्र सरकार को कोसता फिर रहा था। उसकी भावपूर्ण बोली और बनावटी चेहरे के भाव को देखकर पूरा देश भ्रमित हो गया था, सब को यह लगने लगा था, कि बस यही वो व्यक्ति है जो भारत का भावी प्रधानमंत्री बन सकता है। इसके नेतृत्व में देश वापस सोने की चिड़िया या विश्व गुरु बन पाएगा। इस व्यक्ति ने 10 साल पुरानी तत्कालीन केंद्र सरकार की छोटी-छोटी गलतियों को सुनियोजित तरीके से इतना बड़ा करके दिखाया कि देश की 125 करोड़ जनता को यह लगने लगा उसे आजादी की दूसरी लड़ाई लड़नी है और उन्हें इस लड़ाई का महानायक मिल गया है। जो न केवल 100 दिनों के शासन में देश को महाशक्ति बना देगा बल्कि गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, भ्रस्टाचार और आतंक/नक्सलवाद जैसी बड़ी समस्याओं पर सहज नियंत्रण पा लेगा।
हद तो तब हो गई जब प्रारम्भ से ही इस व्यक्ति ने राजनीति से कोषों दूर रहने वाली भारतीय सेना को अपने राजनैतिक लाभ प्राप्त करने के लिए सत्ता हासिल करने की चाबी बनाते हुए जन-भावानाओ का भरपूर इस्तेमाल किया। इस व्यक्ति के द्वारा प्रसारित किए गए जुमलों में अच्छे दिन आने वाले हैं तथा विदेशी बैंकों में जमा काले धन का भंडार वापस लाकर देश के प्रत्येक नागरिक के खातों 15-15 लाख रु यूं ही जमा हो जाएंगे का ऐसा जादुई असर हुआ कि रातो-रात देश में सत्ता परिवर्तन का माहौल बन गया। जिसका असर यह हुआ कि वर्ष 2014 में इस व्यक्ति विशेष के नेतृत्व में देश की नई सरकार ऐतिहासिक परिणाम के साथ सत्ता में आ गई। हालांकि यह अलग बात रही की धीरे-धीरे इस व्यक्ति का असर आम जनमानस के मनोभाव से ठीक उसी तरह उतरने लगा जिस तरह नील में डूबा सियार पहली बारिश में धूल कर अपनी वास्तविक पहचान में वापस आ गया था और उसे स्वघोषित जंगल का राजा मनाने वाले बाकी जानवरों ने उसका क्या हाल किया था यह सर्वविदित है। षड्यंत्र, झूठ, हिंसा, जातिवाद, बदला और पूंजीपतियों को लाभ देने के अलावा बीते 5 साल के शासन में भाजपा सरकार ने कुछ नही किया
सुजोय मंडल (एक्स कोबरा कमांडो)

देश के हिंसा ग्रस्त राज्यों में दस साल तक कठिन सेवा देने वाले कोबरा कमांडो सुजोय मंडल ने अपना अनुभव शेयर करते हुए कहा है कि सेना या अर्धसेना के जवान तब सुधाकर और हेमराज की हत्या से इतना विचलित हो गए या कर दिए गए थे, कि उन्होंने तत्तकालीन मनमोहन सिंह सरकार के साशन काल मे हमारे शहीद सैनिकों के बदले की गई सर्जिकल स्ट्राइक को भी ध्यान नही दिया तब भी हमारे जाबांज़ सैनिकों ने दो के बदले 10 पाकिस्तानी सैनिकों को उनके ही कैम्प में मारकर 4 पाक रेंजरों के सर भी अपने साथ ले आये थे। बहरहाल संसाधनों की कमी, अधिकारियों के अत्याचार, फ़ौज तंत्र में व्याप्त भर्राशाही और वर्षों पुरानी अपनी मांगों को हम सैनिक और जवान तत्कालीन भाजपा स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी के प्रति यह धारणा बना लिए थे कि वे अगर सत्ता में आये तो सब कुछ चमत्कारिक ढंग से सुधर जाएगा। कोई अधिकारी अपने अधीनस्थ जवानों से अमानवीय व्यवहार नही करेगा। हमें अपने दुश्मनों से से लड़ने के लिए संसाधनों की कमी नही होगी। वन रैंक वन पेंशन, शहीद का दर्जा और 2003 से बन्द हुई पेंशन बहाली होगी। अंततः हम सबने मिलकर उन्हें अपना नेता या प्रधानमंत्री चुन लिया। हमे हमारी गलती का एहसास तब हुआ जब 2015 में जब सरकार को सत्ता में आये पूरे एक साल हो गए थे। उनके 100 दिनों वाला फंडा (झांसा) जुमला साबित हो चुका था।
देश मे महंगाई, भ्रस्टाचार और जातीय राजनीतिक हिंसा अपने चरम पर थी। इन सबके बीच न तो आतंकी हमले कम हुए थे न ही माओवादी हिंसा रुकी थी। इन सबसे इतर सिस्टम से लड़ कर असफल हो रहे पीड़ित जवानों की आत्महत्या की घटनाएं भी बढ़ने लगी थीं। बड़बोले गृह मंत्री राजनाथ सिंह का नियंत्रण केंद्रीय पुलिस या अर्धसैनिक बलों पर नही के बराबर था। वे भी बेअसर नेता बनने लगे थे। इधर 2014 सुकमा हमले में अकारण शहीद साथियों ले न्याय की लड़ाई सिस्टम से लड़ने के दौरान खुद उन्हें सरकार और सत्ता से किसी प्रकार की कोई मदद नही मिली थी।
अंतत: उन्हें सही होकर भी सी आर पी एफ कोबरा बटालियन से अकारण बाहर कर दिया गया। उन्होंने प्रायः सभी जिम्मेदारों से पत्राचार किया परन्तु कहीं से कोई सहायता नही मिली। इसी बीच सरकार के चुनावी वायदों को पूरा न करने व उनकी अंदेखियाँ करने पर नाराज पूर्व सैनिको/अर्धसैनिकों ने राजधानी दिल्ली में आंदोलन की शुरुवात की। उनके शांति पूर्ण आंदोलन को जिस तरह केंद्र सरकार ने बल का इस्तेमाल करते हुए दबाया वह हृदय विदारक था। इस क्रम में पकितानी हमलों में शहीद होने वाले जवानों की संख्या भी बढ़ने लगी। देशभक्ति और पाकिस्तान चीन से कड़े व्यवहार का दावा करने वाले प्रधानमन्त्री भाजपा के विभिन्न राज्यों के विधान सभा चुनावों में स्टार प्रचारक की भूमिका निभाने में व्यस्त रहे । थोड़ा बहुत समय मिला भी तो उन्होंने अपने समर्थक उद्योगपतियों को व्यापारिक लाभ पहुंचाने विदेश यात्राओं में गंवा दिया। इधर उनके संरक्षण में उनके तंत्र ने देशभक्ति का सर्टिफिकेट बॉटने,राजनीतिक बदले की प्रवृत्ति बढ़ाने के अलावा जातीय और साम्प्रदायिक हिंसा को जम कर बढ़ावा दिया। वर्ष 2015 से 2018 के बीच 2 हजार से अधिक घटनाएं जातीय और राजनीतिक हिंसा की दर्ज की गई। जबकि सिस्टम के विरुद्ध आवाज उठाने वाले जवानों से केंद्र सरकार और उसके तंत्र ने अपना व्यक्तिगत दुश्मन की तरह व्यवहार किया। बचा-खुचा कसर भाजपा पोषित राष्ट्रवादी तंत्र के गुंडों और किराए के प्रचारकों (आई टी सेल) ने पूरी कर दी। पंकज मिश्रा,नवरतन चौधरी, तेजबहादुर, मोहम्मद जलील जैसे देश के दूसरे दर्जनों संघर्ष रत जवानों के साथ सरकार के व्यवहार को पूरे देश ने देखा किस तरह सरकार ने व्यवस्था में खामियों को उजागर करने वाले जवानों के प्रति सहानुभूति एखकर उसमें सुधार करने के बजाए अपने पोषित तंत्र के इस्तेमाल से उन्हें बदनाम करने की साजिश रची। इन बातों से व्यथित जवानों ने पहली बार ये तय किया कि सेना/अर्धसेना में व्याप्त दुर्व्यवस्थाओं में सुधार के लिए सरकारी प्रयासों के इतर खुद सरकार का हिस्सा बनकर सुधारा जाए। इस प्रयास में bsf के पूर्व जवान तेजबहादुर ने वाराणसी से नामांकन भरना तय किया। यहाँ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कई प्रकार की व्यवस्थाओं और ताम-झाम के अपनी उम्मीदवारी का दावा पेश किया है। जबकि इसके उलट जवान तेजबहादुर और उनके समर्थक सैनिक जवानों ने बेहद सादगीपूर्ण तरीके से नामांकन दाखिल किया, परन्तु जवानों ने पैदल ही बनारस की गलियां नापते हुए सहज भाव से जन-सम्पर्क जारी रखा।
प्रारंभिक तौर पर सत्तारूढ़ दल ने बेहद हल्के में तेजबहादुर की दावेदारी को लेने के बाद तब उनके विरुद्ध दुष्प्रचार करना प्रारम्भ किया जब देश भर की दूसरी राजनैतिक हस्तियों और बुद्धिजीवी वर्गों का ध्यान तेजबहादुर की दावेदारी की तरफ जाने लगा। परिणाम यह रहा कि कुछ दिन पूर्व निर्दलीय नामांकन भरने वाले तेज बहादुर की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए जैसे ही महागठबंधन का उम्मीदवार घोषित किया। राजनीतिक हल्कों में तूफान खड़ा हो गया। इधर केंद्र की मोदी (भाजपा) सरकार के कथित इशारों पर तेज बहादुर के नामांकन फार्म में त्रुटियां निकाल कर उनकी उम्मीदवारी ओर प्रश्न चिन्ह लगाने वाला चुनाव आयोग सक्रिय हो गया। इधर bjp के आई टी सेल ने जो सम्भवतः तेजबहादुर की बढ़ती लोकप्रियता से पूरी तरह घबराया हुआ था,वह तेज बहादुर के विरुद्ध दुष्प्रचार में लग गया। उनका सोशल मीडिया अकाउंट में आपराधिक छेड़छाड़ से लेकर उनके प्रति भ्रामक जानकारियों प्रेषित की जाने लगी। bjp नेताओं और सेल ने यहां तक कहा कि भगोड़ा बर्खास्त सैनिक देशभक्त मोदी के खिलाफ चुनाव नही लड़ पायेगा। जबकि आयोग ने तेजबहादुर की दावेदारी से पृथक उनके द्वारा दो अलग-अलग बार भरे गए शपथ पत्र को आधार मानकर कुछ प्रश्न पूछे हैं। इधर बर्खास्तगी के आधार पर चुनांव दावेदारी को रोके जाने के कथित प्रयासों को सुनियोजित साजिश बताते हुए पूर्व कोबरा कमांडों सुजोय मंडल ने विगत 2016 विधानसभा चुनाव के अपनी mla की सफल चुनावी दावेदारी और चुनांव लड़ने सम्बन्धित दस्तावेज पेश कर चुनांव आयोग और भाजपाई षड्यंत्रकारियों की नींदे उड़ा दी है। जबकि खबर मिली है कि चुनाव आयोग या भाजपाई साजिशकर्ताओं के विरुद्ध तेजबहादुर के समर्थन में देश का शसक्त बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों और महागठबंधन के नामी वकीलों ने मोर्चा सम्हाल लिया हैं। इसे देखकर यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि बिना बड़ी साजिश के तेजबहादुर के नामांकन पर प्रश्न चिन्ह लगाना भाजपाई आयोग के बूते की बात नही है।

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