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Chhattisgarh

पैसा दो, सुरक्षा लो… !

सीसीटीव्ही के नाम पर वसूली, व्यापारियों ने मुख्यमंत्री से लगाई गुहार

रायपुर hct : यह सुनने में अटपटा लग सकता है कि एक लोककल्याणकारी राज्य में सुरक्षा के नाम पर आम आदमी की जेब ढीली की जा रही हो। जनसुरक्षा या जनभागीदारी के बहाने उसे जिला प्रशासन की ‘चंदा चकारी’ का शिकार बनना पड़ रहा है। छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों में सीसीटीव्ही कैमरे लगाने के लिए व्यापारियों और नागरिकों से धन उगाही की जा रही है। दुर्ग और राजनांदगांव के व्यापारी संगठनों ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से इसकी शिकायत करते हुए हस्तक्षेप की मांग की है।

क्या है पूरा मामला?

छत्तीसगढ़ में बढ़ते अपराधों पर लगाम कसने के लिए सरकार सक्रिय है। अपराधियों को पकड़ने में सीसीटीव्ही कैमरे सबसे कारगर साबित होते हैं, इसलिए राज्य के हर कोने में इन्हें लगाने की योजना है। लेकिन मौजूदा कैमरों में आधे से ज्यादा खराब पड़े हैं, और उनका रखरखाव पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ है। सरकार भी इसके लिए बड़ा बजट देने को तैयार नहीं दिखती। नतीजतन, जिला प्रशासन ने पुलिस और जनभागीदारी के जरिए फंड जुटाने का रास्ता चुना। यह अभियान पूरे प्रदेश में नहीं, बल्कि खास तौर पर दुर्ग और राजनांदगांव में जोर-शोर से चल रहा है।

180 चौराहा 200 कैमरे लागत लगभग 8 करोड़

दुर्ग में 180 चौराहों पर 200 कैमरे लगाने की योजना है, जिसकी लागत करीब 8 करोड़ रुपये है। इसमें ITMS और भिलाई इस्पात संयंत्र ने 1-1 करोड़ रुपये का योगदान दिया है, बाकी राशि जनता से जुटाई जा रही है। वहीं, राजनांदगांव में 150 मौजूदा कैमरों के अलावा 300 और कैमरे लगाए जा रहे हैं, जिसका खर्च 2 करोड़ से अधिक है। यानी दोनों जिलों में करीब 6 करोड़ रुपये का चंदा वसूला जा रहा है। छोटे-बड़े व्यापारी, उद्योगपति, कॉलोनियों और मोहल्लों के निवासी सब इस दायरे में हैं। प्रशासन का यह प्रयास गलत नहीं, लेकिन इसकी पारदर्शिता और प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे हैं।

मुख्यमंत्री से शिकायत

दुर्ग और राजनांदगांव के व्यापारियों ने मुख्यमंत्री से गुहार लगाई है। उनका कहना है कि जनता की सुरक्षा और संपत्ति की रक्षा सरकार का दायित्व है। सीसीटीव्ही का खर्च और रखरखाव भी सरकार को ही उठाना चाहिए। इतनी बड़ी राशि के संग्रह और खर्च में पारदर्शिता की कमी साफ दिखती है। सवाल उठ रहे हैं कैमरे किस कंपनी से खरीदे गए? इंस्टॉलेशन का ठेका किसे मिला? रखरखाव की क्या योजना है? प्रदेश में पहले से लगे ज्यादातर कैमरे खराब पड़े हैं। महासमुंद में भी पुलिस ने ऐसा ही अभियान चलाया था, लेकिन व्यापारियों ने यह कहकर मना कर दिया कि प्रशासन पैसे तो ले लेता है, पर रखरखाव नहीं करता।
चिंता जायज है

दुर्ग और राजनांदगांव में लोगों को पैसे देने से परहेज नहीं, बल्कि चिंता इस बात की है कि कहीं यह राशि भ्रष्टाचार की भेंट न चढ़ जाए। क्या गारंटी है कि ये हजारों कैमरे भविष्य में शोपीस नहीं बन जाएंगे? व्यापारियों की मांग साफ है। सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठें, लेकिन पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हो।

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