
रायपुर hct : छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में रेत माफिया का आतंक एक बार फिर शासन और कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। सीतामढ़ी क्षेत्र में रेत माफिया की गतिविधियों को उजागर करने की कोशिश कर रहे युवा पत्रकारों को खुलेआम जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं, जबकि प्रशासन और पुलिस पूरी तरह से मौन हैं।
यह घटनाक्रम राज्य के कुख्यात ₹600 करोड़ के कोयला लेवी घोटाले की याद दिलाता है, जिसने एक समय में पूरे प्रदेश को हिला दिया था। उस घोटाले की तरह ही अब रेत माफिया भी खुलेआम शासन तंत्र को चुनौती दे रहे हैं — पत्रकारों को धमकाना, कानून का मजाक बनाना और बेधड़क ट्रकों से अवैध खनन करना इस बात का प्रमाण है कि सरकार का माफिया पर से नियंत्रण दिनों दिन कम होते जा रहा है।
अधिकारियों की निष्क्रियता
स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि उन्होंने सीतामढ़ी के रेत घाटों पर माफिया की गतिविधियों का वीडियो सबूत जुटाया, लेकिन प्रशासन ने अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
अधिकारियों की निष्क्रियता और सरकार की चुप्पी को लेकर आम जनता में भारी आक्रोश है। सोशल मीडिया पर भी लोग मुख्यमंत्री और गृहमंत्री से तुरंत हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं।
राज्य सरकार और पुलिस तंत्र निष्क्रिय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सिर्फ एक स्थानीय कानून व्यवस्था का मामला नहीं रह गया है, बल्कि यह लोकतंत्र और प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। यदि राज्य सरकार और पुलिस तंत्र अब भी निष्क्रिय रहते हैं, तो यह सवाल उठना लाज़मी है कि वे इस तंत्र के हिस्सेदार हैं या फिर पूरी तरह असमर्थ।
विपक्ष ने भी इस मुद्दे को लेकर सरकार पर तीखा हमला बोला है। भाजपा नेताओं ने बयान जारी कर कहा कि “कोरबा अब माफिया राज की राजधानी बनता जा रहा है और कांग्रेस सरकार आंखें मूंदे बैठी है।”
यह एक यक्ष प्रश्न है कि क्या राज्य सरकार इस बढ़ते संकट से निपटने के लिए सख्त कदम उठाएगी या फिर कोरबा की रेत में कानून और लोकतंत्र की आवाज दबती ही चली जाएगी।
