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हीरो नहीं खलनायक है “जितेंद्र”
कवासी लखमा जो कि बस्तर के विधायक हैं साथ ही सत्तारूढ़ दल के मंत्री भी; बावजूद इसके वे संबंधित जिला के प्रभारी मंत्री भी हैं, इस नाते उनका यह अधिकार है कि उक्त जिला में कम से कम उनकी बातों को तवज्जो देने वाले अधिकारियों की पदस्थापना हो और ऐसा होने के उद्देश्य से ही जितेंद्र शुक्ला की नियुक्ति बस्तर में की गई होगी। ऐसे में यदि उनके द्वारा यदि किसी पुलिस अधिकारी को; एक थाना प्रभारी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर पदस्थापना हेतु “अनुशंसा-पत्र” लिखा गया तो कुछ पार्टीगत विचारधारा से ग्रस्त पत्रकारों को पेचिस क्यों होने लगी..? जितेंद्र शुक्ला जैसे नकचढ़े पुलिस अधिकारी ने लोकसेवा अधिनियम को ताक पर रखकर एक जनप्रिय नेता की भावनाओं को आहत पहुंचाने की चेष्टा करके जनादेश पर भी कुठाराघात किया है।
रायपुर (hct)। चौंकिए नहीं यहाँ हम बॉलीवुड हीरो जितेन्द्र की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि, बस्तर में पदस्थ रहे कुख्यात पुलिस अधिकारी, आईजी; एसआरपी कल्लूरी के चेला, एसपी जितेंद्र शुक्ला की बात कर रहे हैं जो पुलिस विभाग में आदतन बेहद ही शातिर और अनुशासनहीन पुलिस अधिकारी है।
यूँ तो इनके काले कारनामों की लम्बी फ़ेहरिस्त है लेकिन आज हम आपको इनके खाकी में लगे कुछ ऐसे बदनुमा दाग से रु-ब-रु करवाना चाहते हैं जो इनके खलनायकी को उजागर करते हैं। कवासी लखमा; मंत्री बनने से पहले विधायक हैं और अपने क्षेत्र की जनता के हित के लिए हर कदम पर उनके साथ रहते आए हैं इसके चलते कवासी और जितेंद्र में पहले ही ठन चुकी थी।
“फर्जी मुठभेड़ में शातिर”
जितेंद्र शुक्ला के बस्तर में पदस्थ कार्यकाल के दौरान एक ऐसा वाक्या सामने आया जब इसने दो आदिवासी महिलाओं को (फर्जी) मुठभेड़ की आड़ में गोली मरवा दिया ! जिसमे से एक महिला घायल हो गई और एक की मौका-ए-स्थल पर ही मौत हो गई। इसकी जानकारी जब जन-नेता कवासी को लगी तब उन्होंने इसका काफी विरोध किया, और एक मंत्री होते हुए कवासी लखमा ने उनके परिजन को मुआवजा हेतु अपने ही सरकार को पत्र लिखा, और इसकी आंखों में खटकने लगे।
कवासी लखमा बस्तर के एक ऐसे जनप्रिय नेता हैं जो हमेशा आदिवासियों के हक-अधिकार के लिए आवाज बुलंद करते आए हैं, और जब आधी रात की सरकार भूपेश बघेल ने पुलिस विभाग में फेरबदल किया तो अपने मंत्रिमंडल से बिना राय शुमारी के जितेंद्र शुक्ला जैसे वर्दी वाले गुंडे को बस्तर में नियुक्त कर दिया। और ये अपने को हीरो समझ बैठा।
“फर्जी आत्मसमर्पण में मास्टरमाइंड…!”
जिसका सबसे बड़ा सबूत है नक्सली लीडर अर्जुन का आत्मसमर्पण। एक अत्यंत करीबी सूत्रों से जानकारी मिली है कि जिस नक्सली लीडर अर्जुन को इस पुलिस अधिकारी ने अपनी तबादला से महज कुछ घंटे पहले आत्मसमर्पण का नाटक रचा वह अर्जुन तो 16 फरवरी को ही आत्मसमर्पण कर चुका था, लेकिन इस पुलिस अधिकारी ने न जाने किस मंशा से उसे मीडिया और कानून से छुपा रखा था ? सन्देह पैदा करता है जिसकी जांच की जानी चाहिए।
एक यह बात सर्वविदित है कि, सत्ता पक्ष में चाहे किसी की भी सरकार रहे उसके विधायकी क्षेत्र में उसी विधायक के राय-मशविरा से यहां तक कि कलेक्टर की भी नियुक्ति उन्हीं के अनुसार होती है तो एक एसपी की क्या बिसात..?
जितेंद्र शुक्ला कोई दूध का धूला तो है नहीं। वर्दी की आड़ में इनके क्रियाकलापों को लेकर जब हमने इनके बारे और जानकारी हेतु बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार *कमल शुक्ला जी ने हमारे प्रतिनिधि को बताया कि – “बस्तर में जब वे एक विदेशी पत्रकार के साथ समाचार संकलन हेतु अबुझमाढ़ गए थे तो इसी पुलिस अधिकारी ने दुर्भावनावश उन्हें और विदेशी पत्रकार को 8 घंटे थाने में बिठा रखा था, इससे इनकी दूषित मानसिकता ही जाहिर होती है कि ये पुलिस अधिकारी बस्तर के निर्दोष आदिवासियों को नक्सली करार देकर फर्जी एनकाउंटर में तो मार ही रहे हैं साथ ही सामाजिक कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार रक्षकों के साथ ही पत्रकारों पर भी बंदिशें लगा रखे हैं।”
*कवासी लखमा जी से जब हमारी टीम ने उक्त वायरल पत्र के सम्बंध में उनसे रु-ब-रु हुए तो उनका कहना है था – “जितेंद्र शुक्ला ने आदिवासियों के खिलाफ भाजपा शासनकाल में भारी संख्या में फर्जी मामले बनाए हैं। जिसका विरोध मैंने तब भी किया था, और अभी भी उसके पुनः एसपी नियुक्त होने के बाद एक निर्दोष महिला मारी गई जिसको लेकर मैंने विरोध जताया। भाजपा शासन में जिस तरह से आदिवासियों के खिलाफ मनमानी छूट दी गई थी वो नहीं दिया जा सकता।”