महाघोटालेबाज पंकज वर्मा पर कसता क़ानूनी शिकंजा
समाज कल्याण विभाग : "एक हजार करोड़ का घोटाला"
छत्तीसगढ़ प्रदेश में मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के शासनकाल में महिला एवं बाल विकास मंत्री रेणुका सिंह के समय से समाज कल्याण विभाग अपने मातहतों के काले कारनामों के चलते सुर्ख़ियों में रहा है। इस विभाग में गुपचुप तरीके से सरकारी धन हड़पने का खेल तब से चलते आ रहा है। मामले का उजागर तो तब हुआ जब 17 जुलाई 2018 को संचालक कोष एवं लेखा विभाग ने दस्तावेजों की पड़ताल की और विभाग में एक हजार करोड़ रुपये के घोटाले को लेकर कुंदन सिंह ने अपने वकील के माध्यम से छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर कर प्रदेश के सात आईएएस व पांच राज्य सेवा संवर्ग के अधिकारियों के खिलाफ फर्जी एनजीओ का गठन कर एक हजार करोड़ रूपए से अधिक रकम के घोटाले का अंजाम दिए जाने का आरोप लगाया।
रायपुर hct : छत्तीसगढ़ प्रदेश में समाज कल्याण विभाग में हुए घोटालों की जांच को लेकर भले ही राज्य सरकार मुंह फेर ले, लेकिन घोटाले की सीबीआई जांच के अदालती फरमान से प्रशानिक हल्कों में खलबली मची हुई है। गौरतलब है कि रायपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर की ओर से अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। उक्त याचिका में उल्लेख है कि राज्य के 6 आईएएस अफसर आलोक शुक्ला, विवेक ढाड, एनके राउत, सुनील कुजूर, बी.एल. अग्रवाल और पीपी सोती समेत सतीश पांडेय, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा ने, स्टेट रिसोर्स सेंटर “राज्य स्रोत नि:शक्त जन संस्थान” (एसआरसी) फर्जी संस्थान के नाम पर 630 करोड़ रुपए का घोटाला किया है।
सीबीआई का नाम आते ही खो चुका है चैन-ओ-सुकून
मामले को लेकर बिलासपुर हाईकोर्ट ने सीबीआई को एक निश्चित समय, सफ्ताह भर में चिन्हित अफसरों के खिलाफ FIR दर्ज करने के निर्देश दिए है। सरकारी रकम डकारने के संदेही अफसरों को अब इस बात की चिंता सता रही है कि; कहीं अब लेने के देने ना पड़ जाए। आर्थिक रूप से मालामाल इन अफसरों को मामले की सीबीआई जांच नागवार गुजर रही है। उन्हें इस बात का अंदेशा है कि यदि सीबीआई ने समाज कल्याण की फाइलों पर नजर दौड़ाई तो ‘अगला-पिछला’ सब कुछ सामने आ जायेगा।
कुछ ने कहा बेवजह फंसाया, कुछ ने बताया खुद को बेगुनाह !
हालांकि घोटाले में नामजद किये गए कुछ अफसरों का यह भी दावा है कि उन्हें बेवजह फंसाया गया। जहाँ तत्कालीन मुख्य सचिव अजय सिंह ने हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान अपना शपथ-पत्र देते हुए उन्होंने 150-200 करोड़ की गलतियां सामने आने की बात कही थी, वहीं आरोपित नौकरशाहों में पूर्व आईएएस बी.एल अग्रवाल ने खुद को बेगुनाह बताया है।
भाजपा नीत सरकार भले ही स्वयं को कितने ही ईमानदार घोषित कर ले किन्तु छत्तीसगढ़ बनने के बाद दर्जनों घोटाले सुर्ख्रियों में रहे, लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों व भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाने में निकम्मी ही साबित हुई। प्रदेश के विभिन्न विभागों में जमकर भ्रष्ट अधिकारियों का राज है, लेकिन इन पर कार्यवाही करने को छोड़ इन्हें पालतू वफादार कुत्तों की तरह पालने में इनका कोई सानी नहीं। सिर्फ समाज कल्याण विभाग को ही लें तो यहाँ घोटालों की भरमार है और यहाँ के भ्रष्ट, नीच, अधम अधिकारी दिव्यांगों एवं नि:शक्तजनों के अधिकारों का हनन कर इनके आड़ में करोड़ों रूपए की अफरा-तफरी करने मेें माहिर हैं। एक हजार करोड़ का एनजीओ घोटाला, निराश्रित निधी का घोटाला, ऑनलाइन सर्वेक्षण घोटाला, सम्बल योजना घोटाला, हाफवे होम घोटाला, पेंशन घोटाला और ना जाने कितने घोटाले इस विभाग की तह में दबे पड़े हैं, फिर भी नकारे निकम्में जनप्रतिनिधियों को यह नजर नहीं आता।
लक्ष्मी राजवाड़े के राज में लक्ष्मी जमकर बरस रही है और भ्रष्ट तंत्र के कुबेर पति इंद्रासन का सुख भोग रहे हैं, लेकिन मजाल है कि पालनहार विष्णुदेव या दरबारी जय विजय की नजर इन पर पड़ जाए…
भ्रष्टाचार की दलदल का पंकज
समाज कल्याण विभाग में चर्चित 1 हजार करोड़ के महाघोटाले की सरगना में यूपी मूल का एक शातिर बंदा; पंकज कुमार वर्मा पुत्र हरिमोहन वर्मा के काली करतूतों ने तो प्रदेश में भ्रष्टाचार की इतिहास रच डाला। इस भ्रष्टासुर ने 1 हजार करोड़ के महाघोटाले की बहती गंगा में हाथ साफ ही नहीं किया; बल्कि इस गंगा में करोड़ो की “निराश्रित निधि” के अलावा बुजुर्गों को मिलने वाली “पेंशन योजना” के साथ “निःशक्तजन ऑनलाईन सर्वेक्षण”, “संबल योजना” के साथ–साथ हाफवे होम योजना में आई राशि को बपौती समझकर डकार लिया।
भ्रष्ट ही नहीं 420 भी है पंकज वर्मा
फर्जी (कूटरचित) शैक्षणिक प्रमाण पत्र के सहारे समाज कल्याण विभाग में फिजियोथेरेपिस्ट के पद पर नौकरी हासिल कर लगातार आउट आफ टर्न प्रमोशन लेते हुए अपर संचालक जैसे ओहदेदार पद पर कब्जा करने वाले पंकज वर्मा वल्द हरिमोहन वर्मा की काली करतूतों से “छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया” का नारा बुलंद कर छत्तीसगढ़ के नाम पर छत्तीसगढ़ियावाद की दुहाई देने वाले राजनेता यह सब जानते हुए भी गांधारी की तरह आंखों में पट्टी बांधे बैठे रहें।
शासन की आँखों में धूल झोंकते काटता रहा मलाई
पंकज वर्मा पर आरोप है कि उसने अपनी भर्ती के दौरान फर्जी एवं कूटरचित दस्तावेज पेश कर वर्ष 1998 में फर्जीं व कुटरचित दस्तावेजों के आधार पर छत्तीसगढ़ शासन में ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट के पद पर शासकीय सेवा प्राप्त कर विगत 25 वर्षों से निरंतर छत्तीसगढ़ शासन से धोखाधड़ी करता रहा। पंकज की पदस्थापना के पश्चात् से निरंतर शिकायतें होती रही, किंतु बड़े अधिकारियों एवं राजनेताओं के संरक्षण के चलतें सभी शिकायतें दरकिनार होती रही और पंकज निरंतर इनका वरदहस्त पाकर मलाई काटता रहा, मगर…
न्यायालय ने लिया मामले में संज्ञान
समाज कल्याण विभाग में अपर संचालक जैसे बड़े पद पर बैठे इस अधिकारी के विरूध्द एक आवेदक ने लंबे समय से पुलिस के बड़े अधिकारियों के समक्ष शिकायत की थी। किंतु अपने पद का रसूख दिखाते हुए इसने पुलिस अधिकारियों के समक्ष उपस्थित होने से साफ इंकार कर दिया। मामले में पुलिस का सुस्त रवैया देखते हुए आवेदक ने न्यायालय के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया गया था। जो संबंधित थाना पुरानी बस्ती के समक्ष प्रस्तुत आवेदक की शिकायत पर पंकज के विरूध्द मामला दर्ज नहीं किए जाने से पेश किया गया था। जिस पर कोर्ट ने त्वरित संज्ञान लेते हुए संबंधित थाना पुरानी बस्ती को ज्ञापन जारी कर प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का आदेश किया।
उच्च न्यायालय पहुंचा मामला, पंकज वर्मा पर दर्ज हुई एफआईआर
मामला जब उच्च न्यायालय पहुंचा जहाँ दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद माननीय न्यायाधीश के संज्ञान में यह जानकारी आई कि न्यायालय के आदेश दिनाक 24.01.2024 का पालन अब तक नहीं किया गया तो इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए रायपुर पुलिस अधीक्षक को झड़प लगाते हुए शपथ पत्र सहित उपस्थित होने आदेशित किया, जिससे आनन-फानन में पुलिस प्रशासन ने महिनों से लंबित न्यायालयीन आदेश पर प्रथम सूचना रिपोर्ट क्रमांक 199/2024 दर्ज तो कर लिया मगर, खाकी और अपराधियों की सांठगांठ का बेहतरीन तालमेल थाना पुरानी बस्ती में ही देखने से समझ आ जाता है।
मामले को खात्मा ख़ारिज पर उतारू थाना पुरानी बस्ती
माननीय न्यायालय ने मामले में संज्ञान लेते हुए जितनी गंभीरता से त्वरित आदेश जारी किया, उक्त आदेश की अवहेलना करते हुए पुलिस ने तीन महीने तक आरोपी पंकज वर्मा को संरक्षण प्रदान करता रहा और उसको गिरफ़्तार करना तो दूर, आरोपी को पाक साफ बताते हुए उसे बरी करने के उद्देश्य से थाना प्रभारी योगेश कश्यप ने यहाँ भी मामले में लीपा-पोती करते हुए दर्ज एफआईआर को ख़त्म ख़ारिज करने का साहस दिखाते हुए न्यायालय के आदेश को ठेंगा दिखाने की हिमाकत कर बैठा ! अब देखना यह है कि इस बचने-बचाने के इस दाँवपेंच में शातिर आरोपी को बचाने में पुलिस की जीत होती है या न्यायालय इस मामले में दोषी पुलिस को कटघरे में खड़ा कर न्यायपालिका का विश्वास बरक़रार रखती है।