बालोद में आबकारी अधिकारी की मौन सहमति से शराब का अवैध कारोबार
पत्रकारों के फोन तक न उठाने वाले आबकारी अधिकारी सवालों के घेरे में

जवाबदेही किसकी, या सब ‘मूकदर्शक’ बने हैं?
गुरूर (बालोद) hct :जिले में शराब का अवैध कारोबार दिन-ब-दिन अपने चरम पर है। ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरी गलियों तक, खुलेआम ‘माल’ बिक रहा है। शराब माफिया बेखौफ, और आमजन बेहाल—लेकिन जिला आबकारी विभाग, जिसे इसकी रोकथाम की जिम्मेदारी दी गई है, मानो गहरी नींद में है या शायद जागकर भी आंखें मूंदे हुए है।
पत्रकारों ने की कोशिश, लेकिन फोन भी ‘शाही अंदाज़’ में खामोश
जब अवैध शराब के धंधे की शिकायतों और बढ़ती घटनाओं पर प्रतिक्रिया लेने के लिए पत्रकारों ने जिला आबकारी अधिकारी से संपर्क करना चाहा, तो उनका फोन ‘व्यस्त’ नहीं बल्कि ‘बेपरवाह’ निकला। कई बार कॉल करने के बावजूद अधिकारी ने रिसीव करना तक उचित नहीं समझा। आखिर क्यों? क्या जनता के सवालों का जवाब देना अब अधिकारियों की ड्यूटी में शामिल नहीं रहा?
कौन है जिम्मेदार?
जिला प्रशासन? पुलिस? आबकारी विभाग? या फिर पूरा तंत्र मिलकर ‘विकास’ के इस नए मॉडल को समर्थन दे रहा है? सवाल यह है कि अगर अवैध शराब कारोबार जिले के कोने-कोने में खुलेआम चल रहा है, तो इसका फायदा किसे हो रहा है और नुकसान कौन झेल रहा है?
गांव-गांव में महंगी शराब बेचकर गरीब तबके की कमाई लूटने वाले माफियाओं की जेबें भले ही भर रही हों, लेकिन नशे की गिरफ्त में जा रहे युवा, बिगड़ते सामाजिक माहौल और अपराधों में हो रही बढ़ोतरी की जिम्मेदारी कौन लेगा?
‘मूकदर्शक’ तंत्र या ‘संरक्षक’ अधिकारी?
जिले के लोगों का कहना है कि बिना प्रशासनिक संरक्षण के इस तरह का कारोबार संभव ही नहीं। सवाल सीधा है:
क्या आबकारी आयुक्त राजेश शर्मा का मौन रहना महज़ ‘संयोग’ है, या यह कारोबार सचमुच ‘ऊपर से हरी झंडी’ पाकर चल रहा है?
बालोद की जनता अब जानना चाहती है
क्या अवैध शराब के इस खेल में असली खिलाड़ी कौन हैं? और क्या जवाबदेही तय होगी, या यह सवाल भी किसी अलमारी में बंद हो जाएगा?

