ओडिशा से गरियाबंद के समितियों में पहुंच रही “हरा सोना” की अवैध खेप।
छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा पर हरे सोने और धान की तस्करी का काला खेल: सरकारी खजाने को चपत, किसानों की पीड़ा

छत्तीसगढ़ प्रदेश के सीमावर्ती राज्य ओडिसा से सटे गरियाबंद जिला के देवभोग – मैनपुर क्षेत्र तस्करों के लिए स्वर्ग बन गया है। बहुमूल्य धातु हीरा से लेकर बदन से बहती पसीने की धार से उपजी फसल धान और प्रकृति की गोद से पल्ल्वित “हरा सोना” (गांजा तथा तेंदूपत्ता) की तस्करी आम बात हो गई है।
जुम्मा – जुम्मा अभी धान खरीदी से सरकारी नुमाइंदों को थोड़ी राहत मिली ही थी कि, विष्णु देव अपनी उपलब्धियों की दुंदुभि पीटते “सुशासन तिहार” मानते शहर-शहर, गांव-गांव, गली – गली शिकवा शिकायतों का पुलिंदा समेटने में लगा हुआ है कि इसी बीच मैनपुर-देवभोग क्षेत्र से “तेन्दु पत्ता” जिसे Green Gold (हरा सोना) कहा जाता है की तस्करी का मामला मीडिया में सुर्खिया बटोर रही है। यह समाचार दोनों मामलों को जोड़कर तस्करी के इस जटिल जाल और इसके पीछे की सांठगांठ को उजागर करता है।
गरियाबंद hct : जिले की ओडिशा से सटी सीमावर्ती क्षेत्रों मैनपुर- देवभोग में तेंदूपत्ते की तस्करी चरम पर है। कच्ची सड़कों और दोपहिया वाहनों के जरिए ओडिशा से निम्न गुणवत्ता वाला तेंदूपत्ता छत्तीसगढ़ की लघु वनोपज समितियों में खपाया जा रहा है। बिचौलिए स्थानीय संग्राहकों के नाम पर इस अवैध माल को खरीदी केंद्रों तक पहुंचाते हैं। देवभोग रेंज की सात समितियां, जो ओडिशा सीमा से लगती हैं, इस तस्करी का मुख्य केंद्र बनी हुई हैं। यह अवैध कारोबार वर्षों से बेधड़क चल रहा है। “धान” और “हरा सोना” यानी तेंदूपत्ते की अवैध तस्करी से न केवल सरकारी राजस्व को लाखों का नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि सीमावर्ती किसानों को भी दोहरी मार झेलने को मजबूर कर रही है।
धान तस्करी : रंक से राजा बन रहे बिचौलिए
तेंदूपत्ते के साथ-साथ धान तस्करी का खेल भी इस क्षेत्र में बेख़ौफ़ अंजाम दिया जाता है। गहन पड़ताल से यह बात खुलकर सामने आई है कि जहाँ छत्तीसगढ़ में प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान 3100 रुपये के समर्थन मूल्य पर खरीदा जाता है, वहीँ ओडिशा में केवल 15 क्विंटल की खरीदी होती है। ओडिशा में धान का उत्पादन अधिक होने के कारण वहां का अतिरिक्त धान छत्तीसगढ़ में खपाया जाता है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि कुछ पत्रकार, टुच्चे नेता, धनबली और धनलोलुप प्रशासनिक अधिकारी इस तस्करी में कम्बल ओढ़कर घी पीते हैं। बता दें कि इस तस्करी ने दलालों और बिचौलियों की चांदी कर दी है, जो एक सीजन में “रंक से राजा” बन रहे हैं।
ओडिशा से हरा सोना, छत्तीसगढ़ में खपत
ठेका कंपनियां इस निम्न गुणवत्ता वाले तेंदूपत्ते की कीमत जानबूझकर कम आंकती हैं। जहां संग्राहकों को प्रति मानक बोरा 5500 रुपये का भुगतान किया जाता है, वहीं ठेका कंपनियां 5000 रुपये से भी कम दे रही हैं। इससे छत्तीसगढ़ सरकार को भारी राजस्व हानि हो रही है। गरियाबंद जिले की 62 समितियों में से इन सात समितियों की स्थिति सबसे खराब है।
राजनीतिक दबाव और निष्क्रिय प्रशासन
तेंदूपत्ता तस्करी की सूचना पर वन विभाग ने झाखर पारा समिति में औपचारिक कार्रवाई तो की, लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। रेंजर का दावा है कि भविष्य में सख्ती बरती जाएगी, लेकिन स्थानीय लोग इसे खोखला वादा मानते हैं। धान तस्करी के मामले में भी प्रशासन की निष्क्रियता साफ दिखती है। चेकपोस्ट पर तैनात कर्मचारियों की मौजूदगी और सीसीटीवी की खराबी तस्करी को और बढ़ावा दे रही है।
सरकारी खजाने पर डaka
तेंदूपत्ता और धान की तस्करी से छत्तीसगढ़ सरकार को हर साल लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है। निम्न गुणवत्ता वाले तेंदूपत्ते के कारण ठेका कंपनियां कम कीमत दे रही हैं, और धान की अवैध खरीदी से समर्थन मूल्य की व्यवस्था चरमरा रही है। यह नुकसान केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक भी है, क्योंकि वास्तविक किसान और संग्राहक इस व्यवस्था से हाशिए पर धकेले जा रहे हैं।
सख्त कार्रवाई की जरूरत
छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा पर तेंदूपत्ता और धान की तस्करी का यह काला खेल न केवल सरकारी खजाने को लूट रहा है, बल्कि सीमांत किसानों और संग्राहकों की आजीविका पर भी संकट खड़ा कर रहा है। प्रशासनिक सांठगांठ, राजनीतिक दबाव और निष्क्रिय चेकपोस्ट इस तस्करी को और बढ़ावा दे रहे हैं। सरकार को चाहिए कि चेकपोस्ट पर प्रभावी निगरानी, सीसीटीवी की नियमित जांच और तस्करों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर इस गोरखधंधे पर लगाम लगाए। साथ ही, सीमावर्ती किसानों की समस्याओं का त्वरित समाधान कर उनकी उपज को उचित दाम दिलाया जाए।

