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ILLEGAL DETENTION : छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, “नहीं चलेगी कार्यपालक दंडाधिकारियों की हेकड़ी।”

बिलासपुर (hct)। ब्रजेश कुमार सिंह के द्वारा पेश की गयी याचिका CRMP 46/2015 में हाई कोर्ट ने दिनांक 30.11.2021 को अपना फ़ैसला सुनाते हुए मुख्यमंत्री की निज सचिव श्रीमती सौम्या चौरसिया एवं अन्य से हर्जाने की राशि का भुगतान के लिए उनके स्वयं को मिलने वाली पगार से काटकर याचिकाकर्ता को प्रदान करने का आदेश हुआ है।

अवगत हो कि याचिकाकर्ता ने न्यायालय में पुलिस के द्वारा 1 लाख रुपए की उगाही किए जाने आरोप लगाया था, जिसमें न्यायालय से ज़मानत प्राप्त करने के उपरांत कार्यपालक दंडाधिकारी (Executive Magistrate) के द्वारा बंध पत्र (Bail Bond) को अस्वीकार किया गया और कारण पूछने पर बताया की सौम्या चौरसिया द्वारा bail bond जमा करने पर रिहा करने से रोका गया है।

अवैध रकम की उगाही और एसडीएम की सांठगांठ !

याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत 20 पृष्ठ के आदेश का संक्षिप्त सार यह है कि, दिनांक 13/04/2011 की रात में याचिकाकर्ता और उसके मित्र अनिल पांडे को पुलिस थाना तारबहार, बिलासपुर ने अपराध संख्या 155 / 2011 भादवि की धारा 34 के सहपठित धारा 294, 452 और 506 के तहत दंडनीय अपराध में शामिल होने का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार किया था। तर्क दिया गया था कि प्रतिवादी के.एम.एस. खान तत्कालीन थाना प्रभारी, पुलिस थाना तारबहार, बिलासपुर ने एक लाख रुपये की मांग की और याचिकाकर्ता एवं उसके दोस्त को धमकी दी कि अगर राशि का भुगतान नहीं किया गया तो वह उन्हें जेल भेज देगा। याचिकाकर्ता और उसका दोस्त किसी तरह उसे 50,000/- रुपये का भुगतान करने में कामयाब रहे। लेकिन वे प्राप्त रुपये से संतुष्ट नहीं थे और शेष 50,000/-.रुपये का भुगतान करने के लिए कहा…

अगले दिन; दिनांक 14/04/2011 को, याचिकाकर्ता और उसके दोस्त अनिल पांडेय को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, बिलासपुर के समक्ष पेश किया गया, जहां उन्हें जमानत मिल जानी थी, लेकिन याचिकाकर्ता और उसका दोस्त ने शेष राशि 50,000/- रुपये का भुगतान नहीं कर सके थे।
बदले की भावनागत थाना प्रभारी, तारबहार ने तत्कालीन एसडीएम सौम्या चौरसिया के माध्यम से उन पर सी.आर.पी.सी. धारा 41(2)/110 के तहत पुनः मामला दर्ज कर दिया गया।

प्रशासनिक आतंकवाद का जिन्दा प्रमाण

उसी दिन, 14/04/2011 को, याचिकाकर्ता और उसके दोस्त अनिल पांडेय को कार्यकारी मजिस्ट्रेट, बिलासपुर के समक्ष पेश किया गया और याचिकाकर्ता के खिलाफ सी.आर.पी.सी. धारा 111 के तहत प्रारंभिक आदेश पारित किया गया था जिसमे कहा गया कि; वे ज़मानत के तौर पर एक वर्ष की अवधि के लिए शांति बनाए रखने के उद्देश्य से 5000/- रुपये का व्यक्तिगत बांड प्रस्तुत करें, और सीआरपीसी की धारा 116(3) के तहत एक आदेश जारी किया गया जिसमें मामले के लम्बित रहने के दौरान; याचिकाकर्ता और उसके दोस्त ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से 5000/- रुपए की समान राशि का अदालत के समक्ष अंतरिम बांड पेश किया।

परन्तु जब याचिकाकर्ता की ओर से दो जमानतें पेश की गईं, तो यह पाया गया कि दोनों जमानतदारों का पिछले आपराधिक रिकॉर्ड हैं और इसलिए, जमानत बांड को अदालत ने स्वीकार नहीं किया। परिणामस्वरुप श्री अशोक कुमार मार्बल; तत्कालीन तहसीलदार, बिलासपुर ने जमानत देने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि एसडीएम श्रीमती सौम्या चौरसिया ने उन्हें रिहा करने से रोक दिया था। परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता और उसके दोस्त को 15 /04 /2011 से 19 /04 / 2011 (पांच दिनों) तक “अवैध हिरासत” में जेल भेज दिया…

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

अवैध हिरासत के मामले में हाई कोर्ट द्वारा सौम्या चौरसिया एवं अन्य से हर्जाने के वसूली का किया आदेश

माननीय उच्चतम न्यायालय ने डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य के हवाला से मामले के तथ्यात्मक बिंदुओं पर विचार करते हुए, ऐतिहासिक फैसले दिया है। फैसले का तथ्य यह है कि भारत के संविधान की अनुच्छेद 32/36 के तहत “अवैध हिरासत” में मुआवजा दिया जा सकता है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने पैरा 44 और 54 में निम्नानुसार निर्णय दिया है।
click : 👉  देखिए पृष्ठ क्रमांक 18 कंडिका 32 में उल्लेखित पैरा 44 और 54 : –

यह बिल्कुल स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता को 14.04.2011 से 19.04.2011 तक जेल में अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है। जिसके तहत याचिकाकर्ता को राशि रु. 30,000/- रुपए मुआवजा पाने का हकदार है जो दोषी अधिकारियों / उत्तरदाताओं के वेतन से अथवा सेवानिवृत्ति की दशा में उनको मिलने वाली पेंशन की राशि से जो प्रतिवादी संख्या 3 से 5 तक के द्वारा राज्य शासन को इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से 6 सप्ताह के भीतर वसूली कर रुपये जमा करने का निर्देश दिया है।

टिप्पणी : चूँकि उक्त समाचार; गूगल के माध्यम से हिंदी अनुवादित है, अतः भाषागत त्रुटि हो सकती है। इसलिए माननीय न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले की कम्प्यूटर छायाप्रति अवलोकनार्थ संलग्न है… सम्पादक।

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Dinesh Soni

जून 2006 में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा मेरे आवेदन के आधार पर समाचार पत्र "हाइवे क्राइम टाईम" के नाम से साप्ताहिक समाचार पत्र का शीर्षक आबंटित हुआ जिसे कालेज के सहपाठी एवं मुँहबोले छोटे भाई; अधिवक्ता (सह पत्रकार) भरत सोनी के सानिध्य में अपनी कलम में धार लाने की प्रयास में सफलता की ओर प्रयासरत रहा। अनेक कठिनाइयों के दौर से गुजरते हुए; सन 2012 में "राष्ट्रीय पत्रकार मोर्चा" और सन 2015 में "स्व. किशोरी मोहन त्रिपाठी स्मृति (रायगढ़) की ओर से सक्रिय पत्रकारिता के लिए सम्मानित किए जाने के बाद, सन 2016 में "लोक स्वातंत्र्य संगठन (पीयूसीएल) की तरफ से निर्भीक पत्रकारिता के सम्मान से नवाजा जाना मेरे लिए अत्यंत सौभाग्यजनक रहा।

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