Welcome to CRIME TIME .... News That Value...

Uncategorized

एक अनुभूति, एक विचार : डॉ लाखनसिंह।

वो मुतमईन है कि पत्थर पिघल नही सकता,
मैं बेकरार हूँ आवाज में असर के लिए।
अपने आस-पास एक शख्शियत के होने की अनुभति मुझे होती रही है, हालांकि मैं जीवन में कभी डॉ लाखनसिंह से नही मिला, पर उनकी वैचारिक तरंगे अक्सर मुझ तक पहुंचती रही। सच ही कहते है लोग की विचार कभी मरा नही करते।
छत्तीसगढ़ के जनवादी विचारक मानवाधिकार कार्यकर्ता और पीयूसीएल के अध्यक्ष लाखनसिंह के बारे में मैं पूरी तरह उनके अवसान के बाद जान पाया। फिर भी मुझे लगता है कि वैचारिक रूप से हम सदैव एक दूसरे के निकट रहे, सोशल मीडिया ने हमे वैचारिक रूप से मिलाने में एक बड़ी भूमिका अदा की। जिस तरह सैकड़ो किमी दूर होकर भी मैं उनके एहसास जज्ब करता रहा, निश्चित रूप से मेरी भी कुछ भावनाओ को उन्होंने समझा होगा, सम्भवतः इसीलिये जब मैंने अपनी एक व्यंग रचना उन्हें सीजीबास्केट (वेबपोर्टल) में प्रकाशित करने भेजी, तब उन्होंने ना सिर्फ मेरा उत्साहवर्धन किया बल्कि तत्काल उसे सीजीबास्केट पर प्रसारित किया।
दरअसल रचना भेजते मैंने ठेठ लहजे में लिखा था की आपको उचित जान पड़े तो प्रकाशित कीजियेगा, इस ठेठ लहजे का कारण वे अखबारबाज है जिनका मकसद गुटबाजी और केवल आर्थिक लाभ है, सामाजिक सरोकारों से जिनका दूर दूर तक वास्ता नहीं होता, भले ही वो सत्यवादी हरिश्चन्द्र होने का ढोल रात और दिन पीटते हो।
मेरे ठेठ लहजे के जवाब में डॉ लाखनसिंह ने बड़ी सहजता से मुझे लिखा – ठक्कर साहब, बहुत आभार कि आपने महत्वपूर्ण रचना भेजी भविष्य में भी जब भी चाहें रचना, डिस्पेच या कोई रिपोर्ट भेजें तो हमारे लिये प्रसन्नता की बात होगी।
मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक न्याय के लिये संघर्षशील डॉ लाखनसिंह के निधन से छत्तीसगढ़ में आई रिक्तता की पूर्ति बमुश्किल हो पायेगी।
किरीट ठक्कर

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page