मैनपुर (गरियाबंद) hct : सार्तिक यादव, उम्र लगभग 72 वर्ष, छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के मैनपुर जनपद के बोईरगाँव पंचायत के सह्गांव बरदुला में, एक जर्जर यात्री प्रतीक्षालय की टूटी-फूटी छांव में अपनी उधार की जिंदगी बसर कर रहे हैं। यह वही सार्तिक हैं, जिनके झुर्रीदार चेहरे पर समय की लकीरें और जीवन की ठोकरें साफ झलकती हैं। लेकिन इन लकीरों के बीच एक उम्मीद की किरण तब जगी, पहली किश्त 40,000 रुपये मंजूर
जब प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उनके नाम पर पहली किश्त, 40,000 रुपये, 4 अक्टूबर 2024 को मैनपुर की छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक में उनके खाते में जमा हुई। यह राशि उनके लिए महज पैसे नहीं, बल्कि एक सुरक्षित छत का सपना थी—वह सपना, जो उनके बुढ़ापे को सम्मान और सुकून दे सकता था।
‘राम’ ने छीना, “आवास की आस”
लेकिन यह कहानी इतनी सीधी नहीं थी। जहाँ एक ओर सार्तिक अपने सपनों का आशियाना बनाने की कल्पना में डूबे थे, वहीं कुछ लालची गिद्धों की नजर उनके इस छोटे-से सपने पर पड़ चुकी थी। ये गिद्ध कोई और नहीं, बल्कि उनके अपने गाँव के परिचित बजरंग कोतवाल के बेटे राम और उसके जैसे कुछ लोग थे।
झांसा देकर हजम कर लिए 40 हजार
इन लोगों ने सर्तिक के भोलेपन और गरीबी का फायदा उठाया। मकान बनाने के नाम पर नींव खोदकर काम शुरू होने का झांसा दिया गया। सार्तिक का पूरा 40,000 रुपये उनके खाते से निकाल लिया गया और वह राशि, जो उनके बुढ़ापे का सहारा बन सकती थी, लालच की भेंट चढ़ गई।
आश्वासन पर टिका है श्वसन
सार्तिक, जिनके पास न तो ताकत थी और न ही संसाधन, इस धोखे के बाद टूट से गए। फिर भी, हिम्मत जुटाकर उन्होंने फरवरी 2025 में स्थानीय पुलिस में राम के खिलाफ शिकायत दर्ज की। राम ने पुलिस के सामने तीन दिन में काम पूरा करने का वादा किया, लेकिन तीन महीने बीत गए; न तो काम शुरू हुआ, न ही राम का कोई अता-पता। सार्तिक की शिकायत कागजों में दफन हो गई ! और उनका विश्वास व्यवस्था पर से उठता चला गया।
दम तोड़ती नजर
आज सार्तिक उसी जर्जर यात्री प्रतीक्षालय में बैठे हैं, जहाँ न तो छत पूरी है, न ही दीवारें मजबूत। बारिश की बूंदें उनके आशियाने को भिगोती हैं, और सर्द रातें उनकी हड्डियों को चीरती हैं। उनके पास न तो पैसे बचे हैं, न ही कोई सहारा। बस, एक फीकी उम्मीद बाकी है—शायद राम लौटे, शायद उनका पैसा वापस मिले, शायद उनका सपना पूरा हो। लेकिन यह उम्मीद भी अब दम तोड़ती नजर आ रही है।
प्रशासन को झकझोरती यह पुकार
यह कहानी सिर्फ सार्तिक की नहीं, बल्कि उन तमाम गरीब, असहाय लोगों की है, जो सरकारी योजनाओं के लाभार्थी तो बनते हैं, लेकिन उनके हक पर डाका डालने वाले उनके ही बीच छिपे रहते हैं। आखिर क्यों सार्तिक जैसे लोग, जो अपने बुढ़ापे में एक छोटी-सी छत के हकदार हैं, धोखे और लूट का शिकार हो रहे हैं? क्यों पुलिस और प्रशासन इस मामले में इतनी सुस्ती दिखा रहा है? क्या 40,000 रुपये की राशि, जो सर्तिक के लिए उनकी जिंदगी का आधार थी, प्रशासन के लिए इतनी छोटी राशि है कि उसकी वसूली के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा?
चुभते सवाल जिला प्रशासन से…
सवाल यह भी है कि आखिर कब तक गरीबों के सपनों को लालची लोग कुचलते रहेंगे? कब तक योजनाओं का लाभ वास्तविक हितग्राहियों तक नहीं पहुंचेगा? क्या सार्तिक को उनके हक का घर मिलेगा, या वे अपनी आखिरी सांस तक उस जर्जर प्रतीक्षालय में इंतजार करते रहेंगे?
प्रशासन से अपील
सार्तिक यादव की यह करुण पुकार गरियाबंद जिला प्रशासन, मैनपुर पुलिस और छत्तीसगढ़ सरकार तक पहुंचनी चाहिए। हम मांग करते हैं कि :-
सार्तिक के साथ हुई ठगी की तत्काल जांच हो और दोषी राम सहित सभी जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
सार्तिक के खाते से निकाले गए 40,000 रुपये की वसूली सुनिश्चित की जाए, ताकि उनका मकान निर्माण का काम शुरू हो सके।
आवास योजना के तहत दी जाने वाली राशि के दुरुपयोग को रोकने के लिए स्थानीय स्तर पर कड़ी निगरानी की व्यवस्था हो।
सार्तिक जैसे बुजुर्गों को तत्काल राहत प्रदान की जाए, ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें।
त्रासदी नहीं, बल्कि व्यवस्था की विफलता का प्रतीक
सार्तिक यादव की यह कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की विफलता का प्रतीक है, जो गरीबों के हक की रक्षा करने में नाकाम रही है। अब समय है कि प्रशासन जागे, सार्तिक के आंसुओं को सुने और उनके सपनों को सच करने के लिए कदम उठाए। क्या सार्तिक को उनका हक मिलेगा? यह सवाल सिर्फ सर्तिक का नहीं, बल्कि हमारी पूरी व्यवस्था की जवाबदेही का है।