“व्हाइट हाउस” में जीजा साले की जुगाड़बंदी, रिश्वत और रिश्तेदारी का राज
रायपुर नगर निगम जहाँ योग्यता को जीजा चबाए और नियमों को साला पचाए...!

कहने को तो सरकारी सिस्टम योग्यता, अनुभव और नियम से चलता है, लेकिन जहां जीजा नोटशीट चला रहा हो, वहाँ साला नियमों को फाड़कर कुर्सी पर चढ़ बैठता है। रायपुर नगर निगम का मामला भी कुछ ऐसा ही है। ट्रांसफर की तलवार सिर्फ कमजोरों पर चलती है, और मलाईदार पदों पर बैठने के लिए काफी है सिर्फ एक नाता – “जोरू का भाई” होना। बाकी लोग फाइलें ढोते रह गए, और यहां खेला हो गया …
रायपुर hct : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के महानगर पालिका से एक बड़ी चौकाने वाली खबर इन दिनों तेजी से मीडिया की सुर्खियां बनती जा रही है। प्रदेश की निजाम बदल गई, निगम चुनाव के बाद महापौर भी बदले, कई आयुक्त आए और चले गए, लेकिन एक पद और एक व्यक्ति 10 साल से टस से मस नहीं हुआ बल्कि तीन-तीन प्रमोशन होने के बाद एक भी बार ट्रांसफर नहीं हुआ ! प्रभारी लेखापाल से अधीक्षक तक का सफर तय कर चुके अंगद की तरह अपना पैर जमाएं इस शख्स का नाम है श्याम सोनी।
व्हाइट हाउस में जीजा साले की जुगाड़बंदी
वित्त विभाग में नियुक्त प्रशिक्षित लेखापालों को दरकिनार कर बिना प्रशिक्षण लिए श्याम सोनी ही प्रभारी बने हुए हैं। हर बार जुगाड़ लगाकर अपना ट्रांसफर रुकवा लेना इसकी आदत में शुमार है। फाइल खुद घूमती है और ऊपर से आशीर्वाद की छाया बनी रहती है। सिर्फ यहीं नहीं अपने अधिकार का उपयोग करके इन्होने अपने साले, जो की किसी समय प्लेसमेंट पर कलेक्टर दर में 10,000 की नौकरी कर रहा था उसे नोटशीट चला कर 55 हजार रुपए के वेतनमान पर नियुक्त कर दिया वो भी बिना टेंडर, बिना इंटरव्यू, और सब की नाक के नीचे दोनों जीजा-साले मजे से मलाई काट रहे हैं !
पेमेंट, चेक, कमीशन और बंगला – सब “शिष्टाचार” से अर्जित।
सूत्रों का कहना है कि रायपुर नगर निगम के वित्त विभाग से हर माह लगभग 50 हजार से 100 करोड़ तक का ठेकेदारों को भुगतान होता है। ठेकेदारों का चेक काटने से लेकर भगुतान होने के बीच वित्त विभाग की कितनी बड़ी भूमिका होती है, यह सब जानते हैं नियम की निर्धारित शिष्टाचार के तहत प्रत्येक बिल पर 1-2% की सेवा शुल्क श्याम सोनी के खाते में न्यौछावर स्वरुप स्वतः जुड़ जाता है। जिसके चलते श्याम सोनी ने भाठागांव जैसे महंगी एरिया में अपनी पत्नी श्वेता सोनी के नाम पर 2000 वर्गफुट में आलीशान बंगला खड़ा कर लिया है, जो 10 साल की सरकारी वेतनसीमा से कहीं परे है।
व्यंग्य की चप्पल :
“रायपुर नगर निगम’ जहाँ नोटशीट पर योग्यता नहीं, रिश्तेदारी की मुहर लगती है और रिश्ता भी ऐसा कि – “एक तरफ सारी खुदाई, दूसरी तरफ जोरू का भाई !” आम कर्मचारी अब सैलरी स्लिप नहीं देखता, वो तो रोज़ जीजा-साले की कुर्सी-थिरकन देख कर यही सोचता है: “काश, मेरे भी कोई श्याम जैसा जीजा होता, तो मैं भी निगम की गलियारे में नोटों की बंशी बजा रहा होता।”
