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आदिवासियों के लिए इंसाफ की गुहार खारिज ! याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार पर 5 लाख का जुर्माना !!

इस तस्वीर को देखिए। इस तस्वीर में ढो कर ले जाने वाली लाशें और दिखाई देने वाले बच्चे की उंगलियों को काटे जाने का कुसूर सिर्फ यह है कि वह “आदिवासी” बच्चा है।

 

यह मैं यहां क्यों लिख रहा हूं! और आप इसे पढ़कर क्या उखाड़ लोगे ? आप उखाड़ भी नहीं सकते क्योंकि आप लाचार हो। एक जिंदा लाश। फिर भी पढ़ तो सकते हैं, पढ़ लेने से हो सकता है आपके मृतप्राय: आत्मा जीवित हो जाए…

रायपुर hct : बात दरअसल यह है कि सन 2009 (से पहले तक) में छत्तीसगढ़ प्रदेश के बस्तर संभाग में एक आताताई आईपीएस पुलिस अधिकारी पदस्थ था, जो जनरल डायर का प्रतिमूर्ति रहा। नाम है, शिव राम प्रसाद कल्लूरी।

तब, इस पुलिस अधिकारी ने बस्तर में आतंक मचा रखा था। उसी के कार्यकाल में बस्तर के सुकमा जिला के गोमपाड़ में 16 आदिवासियों की हत्या के मामले में सामाजिक कार्यकर्ता Himanshu Kumar ने जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी जिसे माननीय न्यायालय ने खारिज कर दिया ! और याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार पर 5 लाख का जुर्माना लगाया है। अंदेशा तो यह भी व्यक्त किया जा रहा है कि, हो सकता है; जल्द ही तीस्ता सीतलवाड़ की तरह उन पर भी गिरफ्तारी की गाज गिर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्णय के बाद हिमांशु कुमार जी ने themooknayak.in में अपनी बात रखा है जिसे ट्वीटर पर जाहिर किया है, लिखा गया है –  “मारे गए 16 आदिवासियों, जिसमें एक डेढ़ साल के बच्चे का हाथ काट दिया गया था के लिए इंसाफ मांगने की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने मेरे ऊपर 5 लाख का जुर्माना लगाया है। मेरे पास 5 लाख तो क्या 5 हजार रूपए भी नहीं है। मेरा जेल जाना तय है।”

देश के सर्वोच्य पद पर “आरूढ़ जातक” किसी समाज का नहीं।

जब एक दलित अधिवक्ता रामनाथ कोविंद जी को राष्ट्रपति नियुक्त किया गया तब देश में दलितों पर अत्याचार की इबारत लिखी गई। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी का कार्यकाल इतना भी उल्लेखनीय नहीं रहा कि उसके लिए चार लाइन लिखा जा सके ! अब राष्ट्रपति पद के आदिवासी समुदाय से एक महिला आदिवासी #DraupadiMurmu को राष्ट्रपति पद हेतु घोषित किया गया है तो आदिवासी समुदाय झूम उठे हैं ! उन्हें तो यह भी नहीं कहा जा सकता कि “तुम्हारे तो दोनों हाथों में लड्डू” क्योंकि उनके भविष्य का तो हाथ काटा जा चुका है…

यह तस्वीर बहुत कुछ बोलना चाहती है लेकिन गूंगी सरकार नहीं सुनना ही नहीं चाहती…!

द्रौपदी मुर्मू जी से आदिवासी समाज की उम्मीद बेमानी है। क्योंकि जब वह मंत्री थीं, तब खुद के गांव में बिजली का एक खंबा तक नहीं लगवा पाई तो अब उनसे कैसी आशा ? हां, हो सकता है कि उनके कंधे पर बंदूक रखकर आदिवासियों के खात्मा को आसानी से अंजाम दिए जाने की कोई साजिश की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता और यह भी हो सकता है कि आदिवासियों की समाप्ति को अंतिम मंजूरी उन्हीं के हस्ताक्षरयुक्त दस्तावेज से किए जाने की साजिश मूर्तरूप लेने जा रही हो…! कुछ भी संभव हो सकता है। क्योंकि “मोदी है तो मुमकिन है।”

न्यू इंडिया में न्याय मांगना जुर्म है !

यह इस देश का दुर्भाग्य है कि अडानी–अंबानी जैसे अत्यंत गरीबों को कर्ज माफी और नीरव मोदी द्वय विजय माल्या जैसे गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले पर रहम खाते हुए माननीय न्यायालय ने महज ₹ 2000/–(दो हजार) जुर्माना लगाता है और किसी मजलूम पर हुए अत्याचार के खिलाफ याचिका लगाने वाले पर 5 लाख का जुर्माना !

बीबीसी के छत्तीसगढ़ स्टेट हेड पत्रकार आलोक पुतुल जी ने अपने ट्विटर हैंडल पर ट्वीट करते हुए लिखते हैं – “फिर एक दिन ऐसा आएगा, जब राज्यसभा में केवल जीवित देह और मरी हुई आत्मा वाले जज भरे रहेंगे.” उन्होंने एक और ट्वीट किया है : –

 

वहीं इसी सम्बंध में #Dilip_Mabdal ने ट्वीटर पर लिखा है – भारत में न्यायपालिका की मृत्यु हो चुकी है। 2 मिनट का मौन रखें। 13 साल पहले छत्तीसगढ़ में 16 आदिवासी फ़ायरिंग में मारे गए। हिमांशु कुमार ने याचिका डाली कि स्वतंत्र जाँच होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने आज वह याचिका ख़ारिज कर दी और याचिका करने वाले पर ही  ₹5 लाख का जुर्माना लगा दिया।

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Dinesh Soni

जून 2006 में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा मेरे आवेदन के आधार पर समाचार पत्र "हाइवे क्राइम टाईम" के नाम से साप्ताहिक समाचार पत्र का शीर्षक आबंटित हुआ जिसे कालेज के सहपाठी एवं मुँहबोले छोटे भाई; अधिवक्ता (सह पत्रकार) भरत सोनी के सानिध्य में अपनी कलम में धार लाने की प्रयास में सफलता की ओर प्रयासरत रहा। अनेक कठिनाइयों के दौर से गुजरते हुए; सन 2012 में "राष्ट्रीय पत्रकार मोर्चा" और सन 2015 में "स्व. किशोरी मोहन त्रिपाठी स्मृति (रायगढ़) की ओर से सक्रिय पत्रकारिता के लिए सम्मानित किए जाने के बाद, सन 2016 में "लोक स्वातंत्र्य संगठन (पीयूसीएल) की तरफ से निर्भीक पत्रकारिता के सम्मान से नवाजा जाना मेरे लिए अत्यंत सौभाग्यजनक रहा।

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