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Chhattisgarh

मुहिम : अखबार पढ़ना बन्द करो… (i)

नई सरकारों में नये मंत्री बनते ही, अपने विभागों की मीटिंग करते है, जेल मंत्री जेलों का दौरा करते है? जानते हो क्यों? सेटिंग…! इसके बाद उसी ढर्रे पर चलती है सरकारें। कम दिमाग वाले मीडिया छापते है, आज जेल मंत्री ने जेलों का दौरा किया, स्वम् अपनी आँखों से देखा कि व्यवस्थाये संतोषजनक थी, कैदियों के साथ बैठकर खाना खाया, जो थोड़ी बहुत कमियां थी उनको तत्काल मंत्री जी ने सुधारने का निर्देश दिया? आदि -आदि…, और जिस जेलर से जेल मंत्री की मंथली सेटिंग उचित मूल्य पर नही होती है तो छपता है कि जेल अव्यवस्थाओं से खिन्न मंत्री जी ने जेलर को तत्काल हटाने का आदेश दिया ! आदि-आदि।
जो छापे अंदर की खबर, वो मीडिया है असली जनप्रहरी। यही हाल, सभी विभागों का होता है।
युवा पीढ़ी से अपील है कि जो छपता है केवल उसे सच मत मानिये, ये मानिये कि सच कभी छपता ही नही।

इसलिए, ऐसे समाचार-पत्रों, मीडिया पर पैसे खर्च मत कीजिये जो सच न बताये, जो सच न दिखाये।

      हमारे मित्र सत्येंद्र भैया का ये पोस्ट वाकई लाजवाब और एक कडुवा सच है।
सही कहा है इन्होने – सच को सामने लाने वाले गली गली से निकलने वाले अखबार के इसलिए तो बन्द हुए।
उनमें के कुछ इन ऊँची-ऊँची बिल्डिंगे बन कर सच को छुपा जो ले जाते है। आज समाज की हर समस्या के असली गुनाहगार तो यही पत्रकार है जो अपने शरीर को कोट से ढकने के लिए एक गरीब का इकलौता वस्त्र भी उतरवा लेते है।
     फाइवस्टार होटल और सरकारी भोज के सामने जीभ लपलपाते तो पहुँच जाते है लेकिन उस वक़्त ये नही देख पाते कि किसी गरीब की थाली की आखरी रोटी भी छिन गयी होगी इस भोज के लिए।वहां AC में बैठ कर दस हजार का ब्रांडेड जूता पहन कर किसी गरीब के तापते पैरों पर आंसू बहाते है। अपने बच्चों को 5 स्टार स्कूलों में और विदेशों में पढ़ाकर गाँव मे स्कूल नही स्कूल है तो टीचर नही जैसे बोल बच्चन की आड़ में सरकार से कोई अपना व्यक्तिगत हित साधते है।
कहीं गरीबी की रिपोर्टिंग के लिए जाते समय हग्गु लगने पर मिनरल वाटर से अपना पिछवाड़ा धोकर बिल-वाउचर समिट करने वाले जब गरीबी के बारे मे लिखते या बताते है तो लगता है दो तमाचे मारकर इन को दिखाया जाए। सत्ता से सुविधा प्राप्त करने के चक्कर मे गरोबो की गरीबी को ऐसे ही लोगो ने सत्ता के गलियारे सालों से बिक रही है।
यदि ऐसा नही होता तो वाकई में पिछड़ा और गरीब वर्ग आज अपने हाल पर रो रहा नही होता।

@Ranjeet bhonsle.

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