देवभोग आंगनबाड़ी सहायिका भर्ती में गड़बड़झाला !
सीईओ सहित चार अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस, नियुक्तियां रद्द करने की प्रक्रिया शुरू

गरियाबंद hct : गरियाबंद जिले के देवभोग ब्लॉक में आंगनबाड़ी सहायिका भर्ती में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। यह घोटाला इतना गंभीर है कि अपर कलेक्टर अरविंद पांडेय के नेतृत्व में गठित जांच समिति ने 24 में से 13 पदों की भर्ती प्रक्रिया में गंभीर गड़बड़ियां पाई हैं। इस खुलासे के बाद हड़कंप मच गया है और चयन समिति में शामिल चार प्रमुख अधिकारियों – मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ), बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ), खंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) और खंड चिकित्सा अधिकारी (बीएमओ) – को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। इन अधिकारियों से संतोषजनक जवाब न मिलने पर सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी, जिससे उनके करियर पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
जांच में सामने आईं चौंकाने वाली अनियमितताएं और धांधली
अपर कलेक्टर के निर्देश पर गठित जांच समिति ने मामले की तह तक जाने के लिए गहन पड़ताल की। जांच में कई चौंकाने वाली अनियमितताएं सामने आईं, जो दर्शाती हैं कि किस तरह भर्ती प्रक्रिया में खुलेआम धांधली की गई :
- एक ही ज्ञापन, अलग-अलग आदेश: सबसे बड़ी विसंगति यह मिली कि सभी पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया एक ही ज्ञापन के आधार पर शुरू की गई थी, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से नियुक्ति आदेश अलग-अलग जारी किए गए। यह प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
- अंकों में हेरफेर: जांच में पाया गया कि मूल्यांकन पंजी में दर्ज किए गए अंकों और नियुक्ति में प्रयुक्त किए गए अंकों में बड़ा अंतर था। यह स्पष्ट रूप से अंकों में हेरफेर और फर्जीवाड़े की ओर इशारा करता है, जिसका सीधा असर योग्य अभ्यर्थियों पर पड़ा।
- ग्रेडिंग मानकों में भिन्नता: ग्रेडिंग के मानकों में भी भिन्नता पाई गई, जो दर्शाती है कि चयन प्रक्रिया में कोई एकरूपता नहीं थी और शायद इसका दुरुपयोग मनचाहे उम्मीदवारों को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया।
- अपात्रों को लाभ पहुंचाने की साजिश: कुछ केंद्रों पर तो और भी गंभीर बात सामने आई। जांच में पता चला कि कुछ अपात्र अभ्यर्थियों को जानबूझकर लाभ पहुंचाने की साजिश रची गई थी। यह पूरी प्रक्रिया की नैतिकता और पारदर्शिता को कठघरे में खड़ा करता है।
नियुक्तियां रद्द होंगी, अधिकारियों पर FIR की तलवार
इन गंभीर अनियमितताओं के उजागर होने के बाद, प्रशासन ने तत्काल कार्रवाई करते हुए जिन नियुक्तियों में गड़बड़ी मिली है, उन्हें रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह उन हजारों योग्य अभ्यर्थियों के लिए एक राहत की खबर है, जिन्हें इस धांधली के कारण नौकरी से वंचित कर दिया गया था।
इसके अलावा, इस मामले में कानूनी शिकंजा भी कसने वाला है। देवभोग थाने में पहले से ही दो मामले दर्ज हैं, और अब संभावना है कि चयन समिति के सदस्यों को भी इन मामलों में सह-आरोपी बनाया जा सकता है। यदि ऐसा होता है, तो इन अधिकारियों पर सिर्फ अनुशासनात्मक कार्रवाई ही नहीं, बल्कि आपराधिक मुकदमे भी चलेंगे, जिससे उनकी मुश्किलें कई गुना बढ़ जाएंगी।
पारदर्शिता और जवाबदेही की दरकार : एक सबक
यह पूरा मामला भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही की अत्यंत आवश्यकता को रेखांकित करता है। पहले एसडीएम की जांच में कुछ अधिकारियों को क्लीन चिट मिल गई थी, लेकिन अपर कलेक्टर की सख्त निगरानी और विस्तृत जांच के बाद अब असली दोषी जांच के घेरे में आ चुके हैं। यह दर्शाता है कि उच्चस्तरीय जांच और सख्ती ही ऐसे घोटालों का पर्दाफाश कर सकती है।

