देश में अगर सबसे भयानक रुप में किसी महकमे को देखा जाता है तो वह है पुलिस महकमा। लेकिन आखिर इतनी विषम परिस्थितियों में चौबीसों घंटे की खतरनाक नौकरी बजाने के बाद भी देश में पुलिस इतनी उपेक्षित क्यों है? इस तथ्य की ओर शायद ही किसी ने ध्यान दिया हो। हालांकि इस विषय पर देश में समय-समय पर सवाल उठाए जाते रहे हैं, लेकिन देश की राजनीति में ऊंचे पदों पर बैठे राजनेताओं ने पुलिस महकमे के इस दर्दनाक जख्म पर शायद ही ईमानदारी से मरहम लगाने की सोची हो, जबकि यह बात जगजाहिर है कि, पुलिस महकमे की इस विवादास्पद कार्यशैली के पीछे जो सबसे बड़ा कारण है उसका अपना बूढ़ा हो चुका जर्जर पुलिस कानून है ?
ब्रिटिश शासनकाल सन् में स्थापित पुलिस कानून आज तक घसीटा जा रहा है
शायद बहुत कम लोग इस कटु सत्य से वाकिफ होंगे कि आज देश के हर नागरिक से जुड़े हमारे पुलिस कानून की स्थापना ब्रिटिश शासनकाल में सन् 1857 के गदर के बाद सन् 1861 में की गई थी। जो बूढ़ा और जर्जर होने के बाद भी आज तक जबर्दस्ती घसीटा जा रहा है। मजे की बात यह है कि तेजी से बदलते समय और परिस्थितियों को देख कर स्वयं ब्रिटिश सरकार ने भी एक अरसा पहले ही अपने पुलिस कानून को बदल डाला था
लेकिन भारत में राजनेताओं के निजी स्वार्थों के चलते इस ओर ध्यान ही नहीं दिया गया? परन्तु लचर पुलिस व्यवस्था नये-नये तरह के अपराध, साइबर क्राइम, कानून का सहारा लेकर हाई प्रोफाइल अपराधियों का कानून की जद से बच निकलने और पुलिसिया कामकाज में कदम-कदम पर राजनेताओं के हस्तक्षेप से तंग आकर इसमें कुछ जरुरी सुधारों के लिए उत्तरप्रदेश के पूर्व आईजी प्रकाश सिंह ने सन् 1996 में पुलिस कानून को दुरुस्त करते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय में पुलिस रिफार्म को लेकर एक याचिका दायर कर दी, जिसमें उच्चतम न्यायालय की एक खंडपीठ ने 22 सितंबर 2006 और 17 जनवरी 2007 को माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित एक न्यायादेश के आलोक में अंतरिम व्यवस्था के रुप में देश की सभी राज्य सरकारों के लिए इस संबंध में कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे। लेकिन राज्य सरकारों के कान पर इन दिशा-निर्देशों को लेकर जूं तक नहीं रैंगी।
11 जनवरी 2007 को न्यायालय के इस आदेश पर अमल होता न देख न्यायालय ने वादी पक्ष को जमकर लताड़ा और 31 मार्च तक इस आदेश को अमल में लाने की सख्त हिदायत दी। प्रकाश सिंह के अनुसार माननीय न्यायालय द्वारा पुलिस सुधार की दिशा में राज्य सरकारों के लिए जारी किए गए दिशा निर्देश :- स्टेट सिक्योरिटी कमीशन की स्थापना। पुलिस स्टेब्लिशन बोर्ड का गठन। पुलिस कम्पलैंट अथारिटी का बनाया जाना डायरेक्टर जनरल पुलिस की चयन प्रक्रिया और दो साल का न्यूनतम कार्यकाल आई.जी.जॉन, डीआईजी रेंज, एसपी, एसएसपी और एसएचओ इनका कम से कम दो साल का न्यूनतम कार्यकाल। इनवेस्टीगेशन और लॉ एंड आर्डर के लिए अलग-अलग स्टाफ का होना। नेशनल सिक्योरिटी कमीशन का गठन, सैंट्रल पैरामिलिट्री फोर्स भी इसके अंडर में आएगी। ऊपर के सभी 6 प्वाइंट राज्यों से संबंधित हैं, जबकि सातवां केन्द्रीय सरकार से संबंधित है।
इसके अलावा हर राज्य में पुलिस संबंधी निर्णय लेने के लिए एक स्टेट सिक्योरिटी कमीशन बनाया जाए जिसका चेयरपर्सन राज्य का मुख्यमंत्री और सचिव राज्य का डायरेक्टर जनरल पुलिस होगी। इसमें विपक्ष का नेता व चीफ सेक्रेटरी जैसे पदों के लोग भी सदस्य होंगे। न्यायालय के इस आदेश में राज्य के डीजीपी जैसे पदों पर नियुक्ति के लिए भी कुछ जरुरी बातें चिन्हित की गई हैं, जिनमें सर्विस पीरियड, अच्छा सर्विस रिकार्ड और अधिकारी के सर्विस अनुभव को देखा जाएगा। इस पद पर नियुक्ति के लिए पुलिस बोर्ड यू.पी. एस.सी. को तीन नामों की एक सूची भेजेगा जिनमें से पर संघ लोक सेवा आयोग अपनी संस्तुति प्रदान कर राज्य सरकार को भेजेगा। इसके अलावा प्रकाश सिंह की पुलिस रिफार्म याचिका में भारतीय गुलिना मान 1807 आईपीसी और सीआरपीसी (इंडियन पैनेल कोड) और सीआरपीसी (क्रिमिनल प्रोसीजर कोड) में भी कुछ बदलावों को लेकर सवाल उठाए गए हैं।
इनमें कुछ ऐसे बिंदुओं पर सवाल उठाए गए हैं जिनमें कानून का सहारा लेकर पुलिस की मनमानियों, सीधे-साधे लोगों को एनकाउंटर में मारने, महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा एवं एनडीपीएस एक्ट, एक्साइज एक्ट, आर्स एक्ट, दहेज कानून और एससीएटी एक्ट जैसे विभिन्न बिंदुओं के अलावा इसमें आम आदमी के कानूनी अधिकारों को अमल में लाते हुए मानव अधिकारों को पूरी तरह से लागू करने पर भी जोर दिया गया है।
समाचार पत्र “हाईवे क्राइम टाईम” के जून 2007 में प्रकाशित अंक से उद्धृत।
