सिकल सेल एनीमिया इस रोग से ग्रसित रोगी या परिवार को केंद्र और राज्य सरकार की ओर से नि:शुल्क परामर्श एवं उपचार सुविधा उपलब्ध है। इस बीमारी से पीड़ित सभी लोगों के लिए एक ही तरह का इलाज मौजूद नहीं है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति में बीमारी के लक्षण कैसे हैं। वैसे तो इस बीमारी के इलाज में खून चढ़ाना पड़ता है लेकिन बार बोन मैरो या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट भी करवाना पड़ सकता है, जो बेहद कठिन और जोखिम भरी प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में कई बार मरीज की जान भी चली जाती है, मगर इस तमाम बातों की जानकारी होने के बावजूद; छत्तीसगढ़ प्रदेश की एकमात्र सिकलसेल संस्थान जो की राजधानी रायपुर में स्थित है वहां के जिम्मेदारों ने अपनी आँखों में पट्ठी बांधकर इस रोग के मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं।
रायपुर hct :सिकलसेल यह कोई संक्रामक बीमारी नहीं है। यह इंफेंक्शन की तरह किसी और व्यक्ति से ट्रांसफर हो सकता है और ना इस बीमारी से ग्रसित किसी अन्य व्यक्ति के सम्पर्क में आने से आपको हो सकता है, यह एक आनुवांशिक बीमारी है। प्रदेश में इस बीमारी से ग्रसित साहू और कुर्मी समाज के लोग बहुतायात में हैं। इस बीमारी की भयावहता को भांप कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सिकल सेल की इस चुनौती को खत्म करने के लिए वित्तीय वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में ‘सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन राष्ट्रीय अभियान 2047’ शुरू करने की घोषणा की है, मगर दुःख की बात यह कि प्रदेश की एकमात्र सिकलसेल संस्थान में दवा वितरण और कर्मचारियों की भर्ती से लेकर मरीजों से दुर्व्यवहार का बड़ा लोचा-लफड़ा होने का खुलासा हुआ है।
दवा वितरण में झोलझाल
राजधानी रायपुर स्थित सिकलसेल संस्थान में एक्स पायरी डेट की दवाई का वितरण किया जा रहा है जिसमें एक आकस्मिक श्रमिक फार्मासिस्ट, अनुबंधित प्रशिक्षु डॉक्टर तथा सिकलसेल एचओडी की संलिप्तता होने की आशंका हैं। कुछ दिनों पहले एक मीडियाकर्मी ने इस संबंध में बेहद हंगामा मचाया था और बात बढ़ने पर किसी एक मंत्रालयीन अधिकारी को शिकायत किए जाने पर एचओडी डॉ उषा जोशी ने उक्त मीडियाकर्मी को ऊपर बुला समझा बुझाकर मामले को शांत करवा दिया। तब जाकर इस बात का खुलासा हुआ, साथ ही यह बात भी सामने आई कि, जब डॉक्टर ने पर्ची में मरीज को देने के लिए 10 टेबलेट लिखा था, उसे 05 टेबलेट थमा दिया जा रहा है;
आकस्मिक श्रमिक और अनुबंधित प्रशिक्षु डॉ० संदेह के दायरे में
वहीं प्रदेश के एकमात्र सिकलसेल संस्थान में एक और चौकाने वाली बात यह खुलकर सामने आई कि यहाँ एक विनिता गजेन्द्र (फार्मासिस्ट) आकस्मिक श्रमिक और अनुबंधित प्रशिक्षु डॉ. दीप्ति जटवार एमबीबीएस के द्वारा मरीजों से बदतमीजी किया जाता है; कहा जाता हैं कि जिसको शिकायत करना है करो, इस संस्थान में पूरे छत्तीसगढ़ के सिकलिंग पीड़ित मरीज आते हैं जो गांव के लोग बिना देखे दवाई लेकर चले जाते हैं, इतनी बड़ी लापरवाही एवं लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।

गुप्त जानकारी तो यह भी है कि इंजेक्शन लगाने वाली स्प्रिट का भी कालातीत होने के बाद उसका भी लेबल निकाल कर उपयोग किया जा रहा है। कुछ दिनों पहले एक कलेक्टर के वाहन चालक ने अपने बेटे की इलाज के लिए आये थे तो आकस्मिक श्रमिक महिला लेब टेक्नीशियन ने बहुत ही उस वाहन चालक से अभद्र व्यवहार करते हुए बतमीजी किया गया जिसकी शिकायत एचओडी डॉ उषा जोशी को करने के बाद भी उक्त कर्मी के ऊपर कोई एक्शन नहीं लिया गया।
