३६ गढ़ के हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई को लेकर बयानवीर टी एस बाबा ने कहा था कि यदि “कोई गोली-बन्दुक लेकर आया तो पहला गोली मैं खाऊंगा …” के तत्काल बाद न्याय (योजना) के ठेकेदार भूपेश बघेल ने मीडिया के सम्मुख कहा था कि, “बाबा साहब उस क्षेत्र के विधायक हैं। अगर वे नहीं चाहते तो वहां पेड़ क्या एक डंगाल भी नहीं कटेगा।” कहकर फिरकी ले लिए, मगर अब न्यायालय को इस मामले में आगे आना पड़ा और …
रायपुर hct : उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति डी.वाई चंद्रचूड़ और हिमा कोहली की बेंच के सामने केंद्र सरकार और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने वादा किया है कि वे अगली सुनवाई तक कोई पेड़ नहीं काटेंगे। अवगत हो कि यह बेंच हसदेव में कोयला खदानों के लिए वन भूमि आवंटन को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई कर रही है।
तीन याचिकाओं में हो रही है सुनवाई
अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने लगाई थी याचिका
जानकारी के मुताबिक केंद्रीय वन मंत्रालय ने 2011 में परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक में पहले चरण की अनुमति दी थी। केंद्र सरकार की ही वन सलाहकार समिति ने जैव विविधता पर खतरा बताते हुए आवंटन को निरस्त करने की सिफारिश की थी। उसके बाद भी 2012 में अंतिम चरण का क्लियरेंस जारी हो गया। 2013 में इस ब्लॉक में खनन भी शुरू हो गया। इसके खिलाफ छत्तीसगढ़ के अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में शिकायत की। ट्रिब्यूनल ने भारतीय वन्य जीव संस्थान से अध्ययन कराने का सलाह के बावजूद एक्सटेंसन को भी अनुमति दे दी।
अधिवक्ता डी.के. सोनी और हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति की ओर से जयनंदन पोर्ते ने भी दायर की याचिका
अंबिकापुर के अधिवक्ता डी.के. सोनी ने माइन डेवलॅपर एंड ऑपरेटर के कांसेप्ट पर सवाल उठाया है। याचिका में कहा गया है कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने अडानी समूह के साथ संयुक्त उपक्रम बनाकर खदानों को निजी कंपनी के हवाले कर दिया है। इस तरह के अनुबंध को सर्वोच्च न्यायालय 2014 में पहले ही अवैध घोषित कर चुका है। इसी की वजह से राजस्थान को मिला कोल ब्लॉक रद्द भी हुआ था। इस मामले में एक और याचिका हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति की ओर से जयनंदन पोर्ते ने दायर की है।
दलील
मिली जानकारी के मुताबिक उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद-ICFRE की अध्ययन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। ICFRE ने दो भागों की इस रिपोर्ट में हसदेव अरण्य की वन पारिस्थितिकी और खनन का उसपर प्रभाव का अध्ययन किया है।
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने यह रिपोर्ट पेश करने के लिए कुछ और समय देने की मांग की। उन्होंने कहा, इसकी अगली तारीख दिवाली की छुट्टी के बाद और संभव हो तो 13 नवंबर के बाद दी जाए। याचिकाकर्ताओं में से सुदीप श्रीवास्तव की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और अधिवक्ता नेहा राठी ने कहा, सुनवाई आगे बढ़ाने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन तब तक केंद्र सरकार और राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम की ओर से आगे किसी पेड़ की कटाई नहीं होनी चाहिए। उसके बाद केंद्र सरकार और राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम की ओर से कहा गया, अगली सुनवाई तक हसदेव में किसी पेड़ की कटाई नहीं करेंगे। इसके साथ ही न्यायालय ने सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाने का निवेदन स्वीकार कर लिया।
निर्लल्ज सरकार
सर्वोच्च न्यायालय में कटाई पर रोक की याचिका पर सुनवाई हुई तो सरकार ने कहा, जितना पेड़ काटना था उतना तो काट चुके हैं। अब वहां पर शेड बनाने की अनुमति दे दी जाए।
फ़ोर्स का साया 16 घंटे में 600 लोगों की 20 टीम काट डाले 8 हजार पेड़
उदयपुर के हसदेव क्षेत्र में परसा केते पूर्व बासेन खदान के विस्तार के लिए राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम और स्थानीय प्रशासन ने 27 सितम्बर को भारी पुलिस बल की मौजूदगी में वनों की ताजी कटाई शुरू करा दी थी। दूसरे चरण में इस खदान का 14 सौ हेक्टेयर में विस्तार किया जाना है। कोयला खदान क्षेत्र में आने वाले पेड़ों को काटा जा रहा है. पेड़ों की कटाई सुबह से शुरू हो गई थी, जो देर शाम तक 16 घंटे तक चलती रही।
यहां 600 लोगों की 20 टीमें पूरे दिन 150 आरा मशीनों से पेड़ काटती रहीं और यहां 43 हेक्टेयर में 8 हजार पेड़ काटे गए। पेड़ों की कटाई का विरोध न हो, घाटबर्रा, मदनपुर सहित आसपास के 6 गांवों में गलियों से लेकर फुटपाथ तक पुलिस बल भी तैनात किया गया। स्थानीय ग्रामीणों को हिरासत में ले लिया गया था। महाराष्ट्र सरकार ने ठीक ऐसा ही काम आरे जंगल की कटाई में किया था।
