आखिरकार भूपेश सरकार ने छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में जंगलों को काटने की व्यवस्था कर ही ली। प्रदेश कांग्रेस के दिग्गजों ने धन्ना सेठ से अपनी दोस्ती निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और पर्यावरण बचाने का ढोंग कर पहली गोली खाने वाला बाबा ना जाने किधर अपनी मुंह छिपाए गायब हो चुके हैं और जंगल उजाड़ने पर राज्य के नामी पत्रकारों ने भी अपनी कलम गिरवी रखकर जुबान में ताला लटका लिया है ! वहीँ कांग्रेस के तथाकथित राजकुमार कहे जाने वाले राहुल गाँधी जिसने कभी कहा था कि इन क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई नही होगी अपनी साख बचाने अंतिम प्रयास के तौर पर भारत जोड़ो यात्रा में मशगूल हैं।
ग्रामीण कर रहें विरोध
हसदेव अरण्य में परसा ईस्ट केते बासेन (पीईकेबी) खदान के दूसरे चरण के लिए पेड़ों की कटाई सुरक्षा बलों की उपस्थिति के बीच आरंभ कर दी गई है। इस क्षेत्र में बासेन से बंबारू तक 45 हेक्टेयर में फैले घने जंगल में पेड़ काटे जाने हैं, खदान के इस विस्तार से सरगुजा जिले का घाटबर्रा गांव पूरी तरह उजड़ जाएगा। वहीं, एक हजार 138 हेक्टेयर का जंगल भी उजाड़ा जाना है। मौके पर भारी पुलिस बल की तैनाती है। किसी को कटाई वाले क्षेत्रों में जाने की इजाजत नहीं दी जा रही है। पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे ग्रामीणों को पुलिस जबरन पकड़कर हिरासत में भेज रही है। यह विरोध आज का नहीं बल्कि दशकों से हो रहा है पर सरकार ने खदान खोलने का मन पूरा बना लिया है।
छावनी में तब्दील अरण्य
4 गांवों को घेरकर जंगल में कड़ी सुरक्षा के बीच घाटबर्रा क्षेत्र में पेड़ों की कटाई शुरू कर दिया गया है। इतनी ज्यादा पुलिस की चाक चौबंद व्यवस्था है कि मौके पर विरोध करने वाले ग्रामीण भी नहीं पहुंच पा रहे हैं। पुलिस ने आसपास के इलाके को छावनी बना दिया है। पेड़ कटाई को लेकर पुलिस प्रशासन और गांव के आदिवासियों के बीच तनाव की स्थिति बन गई है। पूर्व में ग्रामीणों ने जंगलों को बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था, पर सरकार के कान में जूं तक नही रेंगी। ग्रामीणों की मेहनत को चौपट करने के लिए कल से सरकार अपनी मंशा पूरा करने में लग गयी है।
विस्थापित किया जाएगा घाटबर्रा
राजस्थान विद्युत निगम लिमिटेड को आवंटित परसा-केते कोल ब्लॉक के दूसरे चरण में परसा ईस्ट केते बासेन एक्सटेंशन खदान के लिए स्वीकृति वर्ष 2012-13 में दी गई थी। वर्ष 2019 में फारेस्ट क्लीयरेंस दिया गया है। इस कोयले की खुदाई से लेकर बाकी सभी कार्य अडानी कंपनी को मिला है। परसा ईस्ट केते बासेन परियोजना में कुल चार गांवों परसा, हरिहरपुर, घाटबर्रा एवं फतेहपुर की निजी और राजस्व की जमीनों के साथ ही वनभूमि को मिलकार 2711 हेक्टेयर भूमि पर शामिल है। इसमें 1898 हेक्टेयर भूमि वनक्षेत्र है, जिसमें परसा, हरिहरपुर, फतेहपुर और घाटबर्रा के 750 परिवारों को विस्थापित करने का प्रस्ताव है।
हरे भरे जंगल को समाप्त करने का काम जब प्रदेश की सरकार ही करने लगे तो आप समझ सकते है कि उस प्रदेश का क्या हश्र होगा। एक तरफ करोड़ो रूपये पर्यावरण को बचाने में फूंकने वाली सरकार हरियाली खत्म करने के कार्य मे खुद सम्मिलित हो गयी है। छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्रों को नष्ट करने का काम अब शुरू हो ही गया है। इन जंगलों की कटाई से आम जन के साथ वन्य प्राणियों को भी बड़ा नुकसान होगा।
“पेड़ तो क्या एक डंगाल भी नहीं कटेगी” कहने वाले ने पूरा जंगल ही कटवा डाला !
कुछ समय पूर्व इस खदान के विरोध में खड़े ग्रामीणों का समर्थन करते हुए प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने ग्रामीणों के समक्ष कहा था कि गोली चली तो पहली गोली मुझे लगेगी। मैं ग्रामीणों के साथ हु। जंगल को बचाने के लिए मैं आप सभी के साथ हु। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि टीएस सिंहदेव की गोली चलने की बात पर कहा था कि गोली चलने की कोई भी नौबत नहीं आएगी, मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कर दिया था कि यदि बाबा नहीं चाहेंगे तो पेड़ तो क्या एक डंगाल भी नहीं कटेगी। अब खुद सरकार के ही इशारे पर पुलिस-प्रशासन ने जंगल की कटाई शुरू कर दी है तो पेड़ों को बचाने सामने कौन आएगा।
ग्रामीणों के मुताबिक पुलिस ने मंगलवार को सुबह होने से पहले ही खदान के विरोध में आंदोलन कर रहे डेढ़ दर्जन लोगों को हिरासत में ले लिया है। इनमें घाटबर्रा सरपंच जयनंदन सिंह पोर्ते, पतुरियाडांड सरपंच उमेश्वर सिंह अर्मो, बासेन सरपंच श्रीपाल सिंह, साल्ही के ठाकुरराम कुसरो, आनंद कुमार कुसरो, पुटा के जगरनाथ बड़ा, राम सिंह मरकाम, बासेन के श्याम लाल शिव प्रसाद सहित अन्य ग्रामीण नेता शामिल हैं जो वनों की कटाई का विरोध कर रहे थे। यहां करीब 10 दिनों पूर्व भी पेड़ों की कटाई के लिए फोर्स लगाई गई थी, लेकिन फोर्स को हटा लिया गया।
“अभी सिर्फ 45 हेक्टेयर का जंगल काट रहे हैं। इसके बाद 1100 हेक्टेयर का एक और जंगल काटा जाएगा।” : कुंदन कुमार, कलेक्टर, सरगुजा।
सरगुजा कलेक्टर कुंदन कुमार का मीडिया में बयान आया है कि, अभी सिर्फ 45 हेक्टेयर का जंगल काट रहे हैं। इसके बाद 1100 हेक्टेयर का एक और जंगल काटा जाएगा। गांव का नंबर तीन साल बाद आना है; तब देखा जाएगा कि गांव वाले मुआवजा लेकर विस्थापित होने को तैयार हैं या नहीं। फ़िलहाल अभी विरोध करना ठीक नहीं है।
