संवाद में गड़बड़झाला : “प्रकाशन विशेषज्ञ” सव्यसाची का फर्जीवाड़ा

रायपुर hct : अपने गठन काल से ही छत्तीसगढ़ सरकार का मीडिया विभाग घोटालों और विवादों से घिरा हुआ है। इसी कड़ी में एक महत्वपूर्ण जानकारी सूचना के अधिकार के तहत यह प्राप्त हुई है कि, छत्तीसगढ़ संवाद में “प्रकाशन विशेषज्ञ” के पद में पदस्थ सव्यसाची कर ने फर्जी प्रमाण पत्र के सहारे सरकारी नौकरी हासिल कर एक योग्य उम्मीदवार के हक में डाका डाल सरकार को अब तक लाखों करोड़ों का चुना लगा चुका है।

आशीष देव सोनी

राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक) के राष्ट्रीय प्रवक्ता व आरटीआई कार्यकर्ता आशीष देव सोनी ने समाचार पत्र समूह हाईवे क्राइम टाइम को जानकारी देते हुए बताया कि जनसंपर्क विभाग की सहयोगी संस्था छत्तीसगढ़ संवाद द्वारा वर्ष 2001 में दिनांक 20 09.2001 को एक विज्ञापन जारी कर विभिन्न पदों पर संविदा नियुक्ति हेतु आवेदन पत्र आमंत्रित किया गया था, जिसमें प्रकाशन विशेषज्ञ के एक रिक्त पद का उल्लेख था। इस पदनाम के समक्ष कोष्ठक में “डिजाइन/विज्ञापन/कॉपीराइटर/स्क्रिप्ट राइटर” लिखा हुआ था तथा इस पद के लिए वांछित अर्हताएं निम्नानुसार था –
1. किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से प्रिंटिंग टेक्नॉलॉजी में प्रथम श्रेणी की डिग्री या डिप्लोमा,
2. किसी प्रतिष्ठित संस्थान से संबंधित प्रबंधकीय कार्य में न्यूनतम 5 वर्षों का अनुभव ,
3. ग्राफिक्स डिजाईनिंग में कम्प्यूटर पर पूर्ण दक्षता ,
4. वेब डिजाईनिंग में दक्ष एवं कार्य करने का अनुभव
5. स्वनिर्मित 20 डिजाईन साक्षात्कार के समय साथ लाना आवश्यक।

उक्त पद हेतु वैसे तो अनेक हुनरमंदों ने अपनी किस्मत आजमाया मगर जुगाड़ और फर्जीवाड़ा के खेल में स्थानियों को कम और बाहरियों को प्राथमिकता के आधार पर कलकत्ता निवासी सव्यसाची कर ने घुसपैठ बनाकर उपरोक्त पद को योग्य व्यक्ति से छीन लिया और अब तक उक्त पद में पदस्थ होकर सरकार को लाखों करोड़ों का चूना लगा चुका है। चूँकि कहावत है – “पानी में मल त्याग करोगे तो कुछ ही समय में त्यागा हुआ मॉल ऊपर तैरने लगता है” यह कहावत छत्तीसगढ़ संवाद में पदस्थ सव्यसाची कर के ऊपर सटीक बैठता है। भर्ती में फर्जीवाड़ा का खेल कुछ ज्यादा दिन तक गुप्त नहीं रखा जा सका और सूत्रों के माध्यम से बात कुछ आरटीआई कार्यकर्ताओं को प्राप्त होने पर दस्तावेज निकलवाया जाकर शिकायत कर दी गई।

प्राप्त शिकायतों की जांच के लिये मुख्य कार्यपालन अधिकारी, छत्तीसगढ़ संवाद (संचालक जनसंपर्क) द्वारा दिनांक 21-11-2013 को छत्तीसगढ़ संवाद तथा जनसंपर्क संचालनालय के अधिकारियों की एक जांच समिति का गठन किया गया जिसमें स्वराज्य कुमार दास, जवाहर लाल दरियो, एवं पूरनलाल वर्मा थे। समिति के सदस्यों के द्वारा शिकायतों के अध्ययन एवं परीक्षण में पाया गया कि शिकायतकर्ताद्वय सदैव गुप्ता, राजनान्दगांव एवं सदाशिव गुप्ता, भिलाई ने आरोप लगाया है कि “छत्तीसगढ़ संवाद में नौकरी हासिल करने के लिये सव्यसाची कर द्वारा फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र का इस्तेमाल किया गया है तथा भर्ती के लिये प्रकाशित विज्ञापन के अनुसार सव्यसाची कर के पास प्रिंटिंग टेक्नॉलॉजी में डिग्री / डिप्लोमा नहीं है।” साथ ही अनिल अग्रवाल, आरटीआई कार्यकर्त्ता ने शिकायत करते हुए आरोप लगाया कि सव्यसांची ने “प्रिंटिंग टेक्नॉलॉजी में प्रथम श्रेणी में डिग्री या डिप्लोमा हासिल नहीं की है।” चूँकि प्रकाशन विशेषज्ञ का पद अपने आप में महत्वपूर्ण पद है, जिसके दावेदार व्यक्ति को प्रिंटिंग एवं प्रकाशन के संबंध में विशेषज्ञता हासिल होना चाहिए जो कि सव्यसाची कर में नहीं इनके अलावा शिकायतकर्ताओं में शिवशंकर सिंह ठाकुर, एडवोकेट. सुप्रीम कोर्ट, का भी नाम शुमार है।

छत्तीसगढ़ सवाद में प्रकाशन विशेषज्ञ, सव्यसाची कर के विरुद्ध प्राप्त शिकायतो का उपरोक्त जाँच समिति के सदस्यों के द्वारा शिकायतों में दिये गये तथ्यों के सत्यापन का निर्णय लेते हुए सव्यसांची को अपनी शैक्षणिक तथा अन्य अहर्ताओं के मूल प्रमाण पत्रों एवं उनकी दो सेट अभिप्रमाणित छायाप्रतियों के साथ दिनांक 05-12-2013 को जांच समिति के समक्ष उपस्थित होने निर्देशित किया गया। जिसके परिप्रेक्ष्य में सव्यसांची कर ने अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं समन्वयक जांच समिति को सूचित किया कि उनकी शैक्षणिक योग्यता से संबंधित मूल प्रमाण पत्रों में से कुछ प्रमाण पत्र उनके कलकत्ता स्थित पैतृक निवास में उपलब्ध हैं जिन्हें उन्होंने मंगाया है जो तीन – चार दिनों में रायपुर पहुंच जाने का हवाला देते हुए दिनांक 10-12-2013 तक का समय देने का अनुरोध किया गया जिसे जाँच समिति ने स्वीकार करते हुए अनुमोदित कर दिया।

सव्यसाची कर

निर्धारित तारीख को सव्यसाची अपनी शैक्षणिक योग्यता तथा अन्य अर्हताओं के मूल प्रमाण पत्रों के साथ जांच समिति के समक्ष उपस्थित तो हुआ मगर उसी दिन जांच समिति के समक्ष एक और आवेदन पत्र प्रस्तुत किया जिसमें सूचित किया कि संवाद के पूर्व कर्मचारी मोहन मिश्रा ” मृत्युंजय ‘ के द्वारा छ०ग० उच्च न्यायालय में उनकी शैक्षणिक योग्यता एव अन्य अर्हताओं से संबंधित एक याचिका दायर की गई है और मामला छ०ग० उच्च न्यायालय में लंबित है जिसमें जनसंपर्क संचालनालय, छ०ग० संवाद तथा श्री सव्यसांची कर पक्षकार हैं। उक्त तथ्यों से अवगत कराते हुए उन्होंने अनुरोध किया कि माननीय उच्च न्यायालय में दाखिल उक्त याचिका में अंतिम निर्णय आने तक इस संबंध में न्यायहित में कोई भी जांच नहीं किए जाने का शातिराना चाल चल गए।

गठित जांच समिति के सदस्यों के समक्ष प्रस्तुत सव्यसांची कर, “प्रकाशन विशेषज्ञ” के द्वारा प्रस्तुत शैक्षणिक योग्यता तथा अनुभव संबंधी मूल प्रमाण पत्र की जांच में जो वस्तुस्थिति और तथ्य उजागर हुए उसमे यह कि उन्होंने यद्यपि ‘ ग्रॉफिक्स डिजाईन’ विषय में मेरिट श्रेणी में नेशनल डिप्लोमा सर्टिफिकेट प्राप्त किया है, किन्तु प्रिंटिंग टेक्नॉलाजी (विशेषज्ञता) से संबंधित प्रथम श्रेणी का कोई डिग्री अथवा डिप्लोमा उनके पास नहीं है। इस संबंध में सव्यसांची कर ने सफाई दिया कि “ग्रॉफिक्स डिजाईन के तहत ही प्रिंटिंग टेक्नॉलाजी” भी समाहित है। किन्तु उनका यह तर्क मान्य योग्य नहीं हो सकता क्योंकि अपने देश में ही अनेक मेट्रो सिटीज की यूनिवर्सिटीज में ‘प्रिंटिंग टेक्नॉलाजी’ में डिग्री प्रदान की जाती है। किन्तु श्री सांची द्वारा विदेश से ग्राफिक्स डिजाईनिंग का डिप्लोमा प्राप्त किया गया। इससे स्पष्ट हुआ कि साची के पास प्रिंटिंग टेक्नॉलॉजी की ‘विशेषज्ञता’ से संबंधित डिप्लोमा या डिग्री नहीं है और वे प्रिंटिंग टेक्नॉलॉजी के विशेषज्ञ नहीं हैं।

सव्यसांची कर ने वर्ष 1997 के लिये जिस शैक्षणिक संसथान “रग्बी कॉलेज ऑफ फरदर एजुकेशन” द्वारा जारी ग्राफिक्स डिजाईन का नेशनल डिप्लोमा प्रमाण पत्र बी.टी.ई.सी. के चीफ एक्जीक्यूटिव्ह द्वारा हस्ताक्षरित प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया है, नेट में सर्च करने पर तथा उक्त प्रमाण पत्र के पीछे अंकित तथ्यों का अध्ययन करने पर जांच समिति को यह ज्ञात हुआ कि यह ‘बीटीईसी’ एक फाउंडेशन कोर्स है, जो इस प्रकार के लर्निंग प्रोग्राम अनुमोदित करता है, जिन्हें विदेशों के विश्वविद्यालयों में मान्यता दी गई है। बीटीईसी. कोई “बैचलर ऑफ टेक्नॉलाजी एड इजीनियरिंग कोर्स” नहीं है। यह कोई डिग्री / डिप्लोमा नहीं है। जबकि तत्कालीन चयन समिति द्वारा श्री साची द्वारा प्रस्तुत इस प्रमाण पत्र को बैचलर ऑफ टेक्नॉलाजी एंड इंजीनियरिंग कोर्स मानकर ही चयन किया गया था।
चौंकाने वाली तथ्य यह कि सव्यसांची कर ने “नोटिफिकेशन ऑफ परफार्मेंस ऑन ए बी.टी.ई.सी एप्रूव्हड प्रोग्राम से संबंधित नेशनल डिप्लोमा इन ग्राफिक डिजाईन की जो मूल अंकसूची जांच समिति के समक्ष प्रस्तुत की उस पर किसी अधिकृत पदाधिकारी के हस्ताक्षर अंकित नहीं पाये गये। इस संबंध में श्री सांची ने तर्क दिया कि प्रमाण पत्र (अंकसूची) पर अंकित कांटेक्ट / कोड नम्बरों से तस्दीक की जा सकती है। उनका तर्क था कि जांच समिति के मत में पर्याप्त समाधानकारक नहीं है। जांच समिति की राय में अंकसूची जैसे महत्वपूर्ण प्रमाण पत्रों पर अधिकृत पदाधिकारियों के हस्ताक्षर अत्यन्त आवश्यक हैं। उल्लेखनीय है कि; साची द्वारा उक्त अंकसूची की छायाप्रति अपने आवेदन पत्र में संलग्न की गई थी जिसे तत्कालीन चयन समिति द्वारा मान्य किया गया था।

अनुभव प्रमाण पत्र के तौर पर सव्यसांची कर ने “मे० युगबोध डिजिटल प्रिंटर्स” द्वारा दिनांक 04-11-2001 को जारी किया गया 5 वर्ष के अनुभव संबंधी मूल प्रमाण पत्र जांच समिति के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसके अवलोकन से ज्ञात हुआ कि “उक्त संस्था दिनांक 03-12-1998 को पंजीकृत हुई थी” तथा प्रमाण पत्र जारी करने के दिनांक को उक्त संस्था को अस्तित्व में आये लगभग तीन वर्ष ही हुए थे जबकि उक्त संस्था के द्वारा श्री साची को पांच वर्ष के अनुभव का प्रमाणपत्र जारी किया गया था। इसी अनुभव प्रमाण पत्र की छायाप्रति उनके द्वारा आवेदन पत्र में संलग्न कर प्रस्तुत की गई थी, जिसे तत्कालीन चयन समिति द्वारा मान्य किया गया था। इस संबंध में सव्यसांची सफाई दिया कि वे कई वर्षों से “युगबोध प्रिंटर्स” में कार्यरत थे। साची का यह तर्क भी अमान्य हो जाता है क्योंकि यदि वे युगबोध प्रिंटर्स में कई वर्षों से कार्य कर रहे थे तो उसकी नयी शाखा के बैनर से जारी प्रमाण पत्र क्यों प्रस्तुत किया ?

अवगत हो कि सव्यसांची कर द्वारा माननीय उच्च न्यायालय, छत्तीसगढ़, बिलासपुर के डिप्टी रजिस्ट्रार की नोटिस दिनांक 01-11-11 की छायाप्रति जांच समिति को प्रस्तुत की गई जिसके साथ याचिकाकर्ता श्री मोहन मिश्रा “मृत्युंजय” के वकील द्वारा छत्तीसगढ़ शासन एवं तीन अन्य के विरूद्ध दायर की गई रिट याचिका क्र० 6338/2011 की छायाप्रति संलग्न थी, जिसमें सव्यसांची कर को भी पक्षकार बनाया गया है। उक्त रिट में माननीय उच्च न्यायालय ने सव्यसाची कर के विरुद्ध किसी विभाग स्तरीय जांच पर ना तो रोक लगाई है और ना ही जांच नहीं करने संबंधी कोई आदेश – निर्देश जारी किया है।

अत: श्री सव्यसाची कर द्वारा माननीय उच्च न्यायालय की रिट पिटीशन के आधार पर विभाग स्तरीय जांच नहीं किए जाने के आवेदन को भी जांच समिति एकमतेन अमान्य करती है।

Note : उक्त समाचार से सम्बंधित प्रमाणित दस्तावेजों के अवलोकन हेतु नीचे दिए गए link पर जाएं…
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