बालोद hct : ‘स्कूल चलें हम’ जैसे नारे के बारे में सोचते हुए अक्सर हमारा ध्यान एक ही जिला के अलग-अलग स्कूलों में पल रही गैर-बराबरी पर अनायास चला जाता है। एक तरफ जिला के दूरदराज में स्थित गांव की सरकारी स्कूल, जहां क, ख, ग, लिखने के लिए ढंग की ब्लैक-बोर्ड तक नहीं हैं वहीं दूसरी तरफ हैं शहरी बच्चों के लिए सरकार द्वारा इन दिनों संचालित अंग्रेजी आत्मानंद स्कूल।
बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले यह उद्देश्य की पूर्ति हेतू छत्तीसगढ़ सरकार की बहुत बढ़िया पहल है इसमें कोई संदेह नहीं। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतू छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश में 50 और नई अंग्रेजी आत्मानंद स्कूल संचालन को अमलीजामा पहनाने हेतू कमर कस चुकी है। अलग-अलग स्तर के महंगे प्राइवेट स्कूल, जहां संपन्न वर्ग के बच्चे भव्य इमारत, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सर्वसुविधाओं से युक्त व्यवस्थाओं का फायदा उठा रहे हैं, वैसे ही सुविधाएं प्रदेश सरकार अंग्रेजी आत्मानंद स्कूलों में देने की बात कर रही है।
जैसा कि हमने पहले ही लिखा है कि छत्तीसगढ़ सरकार की बहुत बढ़िया पहल है इसमें कोई संदेह नहीं , लेकिन ग्रामीण अंचल क्षेत्रों की सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था की बारह बजी पड़ी हुई है, उस पर सरकार क्या सोचती है यह एक बड़ा सवाल है। बहरहाल जिला अंतर्गत सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की परिक्षा परिणाम घोषित होने की शुरुआत हो चुकी है जिसमें शासकीय प्राथमिक शाला स्तर ,एवं मिडिल स्कूल शामिल हैं।
परीक्षा परिणाम घोषित होने से ठीक तीन दिन पूर्व राज्य के शिक्षा मंत्री प्रेम साय टेकाम जी का आगमन हुआ था। जिलावासियों ने बड़े ठाट-बाट व सम्मान पूर्वक आदर-सत्कार, स्वागत इत्यादि सरकारी प्रोटोकॉल मैनेंट तक सही तरीके से निभाया।
कार्यक्रम के दौरान, कार्यक्रम में दौरान विधायक एवं अन्य जनप्रतिनिधि , राजनीतिक दल के कार्यकर्ता, जिला प्रशासन के आला अधिकारी जो कार्यक्रम के दौरान मौजूद रहे, वहां पर शिक्षा मंत्री प्रदेश सरकार के द्वारा किए जा रहे शिक्षा की गुणवत्ता पर सुधार सहित सरकार की शिक्षा पर दिए जा रहे विषयों पर तर्क रखा। शायद शिक्षा मंत्री प्रेम साय टेकाम जी को प्रदेश में संचालित सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था पर बदहाली संबंधित विषयों पर ज्यादा कुछ पकड़ नहीं है, जिसके चलते मंत्री महोदय सिर्फ सरकार के द्वारा संचालित की जा रही योजनाओं की बखान को तवज्जो देने में व्यस्त नजर आए।
हकीकत के धरातल पर जिला अंतर्गत सरकारी स्कूलों की शिक्षा में पहले के मुकाबले ज्यादा कुछ बदलाव नहीं हुआ है, क्लास के अंदर आज भी समारू और बुधारू शिक्षा गुणवत्ता के हिसाब से मौजूद है। हालांकि सरकारी दावे तो कुछ अलग नजारा प्रस्तुत करते हैं अब वैसे भी आजकल सरकारी दावों को लोग जुमला समझ कर निकल लेते है। देखा जाए तो सरकार ने अब स्कूलों में पंखा, टीवी, पानी, बिजली, टेबल अन्य और सुविधा देकर रखा है, लेकिन शिक्षा का स्तर वहीं पुरानी दौर वाली आज भी जारी है।
जिला के ग्रामीण अंचल क्षेत्रों की सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले में पढ़ने वाले बच्चों का शिक्षा का अधिकार बराबर का है जिसकी पूर्ति हेतू छतिसगढ़ सरकार कटिबद्ध है, यदि उन अधिकारो का पालन जिला के ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में स्थित सरकारी स्कूलों में देखने को नहीं मिल रहा है तो यह निश्चित तौर पर चिंतन का विषय है।
सरकार एक ओर जहां राज्य में शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता सुधारने का दावा करते हुए जगह=जगह सरकारी छवि को चमकाने में लगी हुई है जिस पर ढाई करोड़ छत्तीसगढ़ की आम जनता के मेहनत और पसीने से कमाई गई पैसा इस्तेमाल हुआ है, तो वंही राज्य के ग्रामीण अंचल क्षेत्रों की सरकारी स्कूलों के सामने शराब की खाली बोतल और डिस्पोजल की ग्लास सहित पानी का पाउच पड़ा मिलता है; जो सरकार की एक और छवि को सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के सामने प्रस्तुत कर रही है।
- ऐसे अन्य और क्या कमजोरियां है जो जिला की शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित करने हेतू जिम्मेदार माना जाता है :-
(1) जिला में कोरोनाकाल के दौरान से कुछ माह पहले तक जिला शिक्षा विभाग में जिला शिक्षा अधिकारी की लगातार अदला-बदली।
(2) जिला के जिम्मेदार लोगों के द्वारा शिक्षा गुणवत्ता पर सरकारी स्कूलों में विषेश महत्त्व की कमी।
(3) ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की उदासीनता और लापरवाही एवं अज्ञानता, जिसके चलते पालक बच्चों और सरकारी स्कूलों पर ध्यान नहीं देना है।
(4) शिक्षा की मौलिक अधिकार की पूर्ति हेतू स्थानीय जनप्रतिनिधियो की गैरजिम्मेदाराना रवैया।
(5) सरकार की शिक्षा व्यवस्था की स्तर को बेहतर बनाने के सोच की जगह, वाहवाही बटोरने वाली विचारों का हावी होना।
(6) सरकारी स्कूलों में पदस्थ शिक्षकों को सिर्फ शिक्षा संबंधी कार्य करने हेतू स्वतंत्रता प्रदान किया जाए ना की अन्य कार्य।