Custodial death
भले ही भारत के आकार और आबादी वाले देश के लिए हिरासत में होने वाली मौत के आंकड़े 1888 कोई बड़ी संख्या नहीं है। लेकिन आज भी स्वतंत्र देश में अंग्रेज शासन काल से चली आ रही पूछताछ की परंपरा कायम है। आज भी पुलिसकर्मी थर्ड-डिग्री तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, हिरासत में एक व्यक्ति को चोट पहुंचाते हैं। यह गलत प्रथा है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इन मामलों में पुलिसकर्मियों के खिलाफ 893 केस दर्ज किए गए हैं और 358 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर हुई है। हालांकि इन वर्षों में हिरासत में हुई मौत के मामले में सिर्फ 26 पुलिसकर्मियों को सजा दी गई ये आंकड़े केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत आने वाले नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा तैयार हालिया रिपोर्ट के हैं।
पंकज बेक की मौत
रायपुर hct : सन 2019 जुलाई महीने की 21 तारीख को सूरजपुर जिले के भटगांव थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम सलका – अधिना निवासी पंकज बेक; पिता अमीरसाय, उम्र 30 वर्ष को एक व्यवसायी के घर से 13 लाख चुराने के आरोप में 21 जुलाई को पुलिस ने उसे घर से बुलाकर हिरासत में लिया था। पुलिस के अनुसार, रात करीब 11.30 बजे; वह साइबर सेल की कस्टडी से फरार हो गया। फिर रात करीब सवा 1 बजे उसकी लाश डॉक्टर परमार के हॉस्पिटल के कूलर से पाइप के सहारे फांसी पर लटकी मिली थी।
पुलिस पर लगे हत्या के आरोप। पिंड छुड़ाने पुलिस कह रही आत्महत्या !
चूँकि प्रथम दृष्टया मौका-ए-घटनास्थल पर मृतक के शरीर पर पाए गए चोंट और फांसी पर लटकी लाश कुछ और ही बयां कर रही थी, देखने से साफ जाहिर हो रहा था की पंकज की हत्या होने के बाद उसे फांसी पर लटकाकर आत्महत्या का रूप दिया गया है। हालांकि पंकज बेक कथित आत्महत्या के मामले में मजिस्ट्रियल जाँच करवाई गई थी; जिसमें मौत की वजह दम घुटने से दर्शाया गया है। मगर पंकज बेक की मौत को लेकर अंबिकापुर के कुछ जागरूक पत्रकारों और समाजसेवियों ने सवाल खड़े किए तो मामले ने तूल पकड़ा और मामले में कोतवाली प्रभारी सहित 5 अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।
उक्त मामले में शुरुआत से मुद्दे को अंजाम तक पहुँचाने में अकील अहमद अंसारी (असिस्टेंट प्रोफ़ेसर), मनीष कुमार और जितेंद्र कुमार जायसवाल (पत्रकार) शामिल हैं, जिनके अथक प्रयास से अब तक मामला ठंडा नहीं हो पाया। दिनांक 6 अप्रैल 2022 को अनुसूचित जनजाति आयोग में ‘पंकज बेक कस्टोडियल डेथ‘ मामले में पीड़ित पक्ष के आवेदन पर हत्या के मामले में शामिल आरोपी पुलिस विनीत दुबे (थाना प्रभारी : गुढ़ियारी, रायपुर), प्रियेश जॉन, मनीष यादव सहित अन्य पुलिस वालों की पुकार हुई।
‘‘दैट इज कोल्ड ब्लडेड मर्डर’’
बता दें कि, पंकज बेक और उसके साथी इमरान को साइबर सेल में बंद करके पुलिस दिन से रात तक दानव की तरह मार मारकर चोरी का झूठा आरोप कबूलने पर विवश कर रही थी। चश्मदीद गवाह (इमरान) ने बताया कि तात्कालिक थाना प्रभारी विनीत दुबे ने पंकज को धमकी दी थी कि उसकी पत्नी को नँगा करके उसको सामने दूसरे के साथ सुलाएगा, और पंकज बेक को पुलिसकर्मियों ने इतना मार लगाया कि वह मरणासन्न अवस्था में पहुंच गया।
अब, यदि पंकज को पुलिसकर्मी अस्पताल में भर्ती करवाते और ईलाज के दौरान यदि उसकी उसकी मौत हो जाती तो साफ तौर पर हत्या का मामला सिद्ध हो जाता अतः पुलिस वालों ने उसे मानवघाती फांसी देकर मार दिया गया ऐसा कहना हैं; अकील अहमद अंसारी (असिस्टेंट प्रोफ़ेसर) अंबिकापुर का।
अकील अहमद अंसारी जी ने सीधे-सीधे हत्या में शामिल पुलिस वालों पर आरोप लगाते हुए उन पर यह भी इल्जाम लगाया कि, जान से मारने एवं लाश को प्लांट करने के दौरान समय बीत गया था, पंकज बेक को पुलिस ने बगैर कपड़ो के रखा था, 21 जुलाई 2019 को बारिश भी हुई थी अतः लाश अकड़ गयी जिससे लाश का पैर मुड़ा का मुड़ा रह गया (राइगोर मोर्टीज) अतः बैठे हुए अवस्था में ही लाश को टांगना पड़ा और आत्महत्या का झूठा मामला पुलिस ने बना दिया।
बेख़ौफ़ आरोपियों को राहत
वर्दीधारियों के गैंग में यदि कोई वर्दी वाले पर ऊँगली उठे तो इनकी जमात ऊँगली उठाने वाले की हाथ ही तोड़ डालते हैं जनाब, लेकिन यहाँ तो एक नहीं दो नहीं पूरे पांच-पांच पुलिस वालों पर charged with murder (हत्या का आरोप) लगा हुआ है और सरकार कानों में रुई ठूंसकर खर्राटे भर रही है।
खैर जिन्दा लाशों को झंझोड़ने पर कोई ना कोई जिंदादिल इंसान भी साँस लेते मिल ही जाया करते हैं अतः आयोग ने इस बार जिंदादिली दिखाते हुए कड़ाई का रुख अखित्यार किया और अभियुक्त वर्दीधारियों में शामिल विनीत दुबे (थाना प्रभारी : गुढ़ियारी, रायपुर), प्रियेश जॉन, मनीष यादव सहित अन्य पुलिसकर्मियों को आयोग के समक्ष पेश होने पर विवश किया। दिन भर चली सुनवाई की न्यायिक प्रक्रिया में प्रार्थी पक्ष ने अपनी बात रखने के लिए वकील की मांग की और जिसे माननीय अध्यक्ष महोदय ने सहृदयता दिखाते हुए प्रक्रिया में अगली (अज्ञात) तारीख तक राहत प्रदान कर दिया है।
आयोग की चौखट लांघते ही पत्रकारों को दिखाई हेकड़ी
सुनवाई प्रक्रिया में राहत मिलते ही आरोपियों के पौ बारह थे और जैसे से आयोग के चौखट को लांघकर बाहर आए सामने खड़े पत्रकारों को धमकाते हुए कहने लगे – “ए, ये वीडियो / फोटोग्राफी बंद करो।” और बहस करते हुए निकल लिए।
मगर; सरगुजा में बैठे पुलिस कप्तान अमित तुकाराम कांबले की शै पर खुन्नस खाई पुलिस एक बार फिर पत्रकार जितेंद्र जायसवाल को पहले से षड्यंत्र रचित फर्जी शिकायत पर दिनांक 8 अप्रेल 2022 को दोपहर लगभग 3 : 30 बजे गिरफ्तार कर लिए जाने की जानकारी नजदीकी सूत्रों से मिली है।
क्रमशः
एक तरफ प्रदेश में मुखिया भूपेश बघेल ‘न्याय’ की बात करते हैं और दूसरी तरफ उनकी ‘आपराधिक प्रवृत्ति की पुलिस’ पत्रकारों को सरे आम आंख दिखाकर फर्जी मामलों में गिरफ्तार कर रही है, इसके पीछे की दुर्भावना यह कि पीड़ित पक्ष डर जाए और न्याय की लड़ाई लड़ना छोड़ दे … !
