किरीट ठक्कर, गरियाबंद। जिले में चल रहे कृषि भूमि पर अवैध प्लाटिंग कारोबार से भू-माफियों के पौबारह हो रहे है, रावनभाठा, टोनहीनाला, ग्राम पंचायत आमदी(म), वार्ड क्रमांक-07, ग्राम पंचायत पारागांव, डोंगरीगांव,तक प्लाटिंग कर आधे से ज्यादा कृषि भूमि को अवैधानिक तरीके प्लाटिंग कर अन्य लोगों के नाम पर रजिस्ट्री कर बेचे जाने का कारोबार पिछले 02 वर्षो से जोरों से चल रहा है जिससे शहरी क्षेत्र में अनियंत्रित विकास को बढ़ावा मिल रहा है। कृषि भूमि को छोटे-छोटे टुकड़े में बेचने से एक ओर जहां नक्शों का अद्यतीकरण नहीं हो पा रहा है वहीं दूसरी ओर सीमांकन का कार्य भी नहीं हो पा रहा है जिससे भूमि विवाद में लगातार वृद्धि हो रही है।
जिले के अलावा मुख्यालय मे अवैध प्लाटिंग का कारोबार बेखौफ चल रहा है।
छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता की धारा 98 के अन्तर्गत बनाये गये नियमों में यह स्पष्ट प्रावधान है कि कृषि भूमि का 0.05 एकड़ अथवा 0.05 रूपये लगान से कम उपखण्ड न किये जाएं। ऐसी स्थिति में कृषि भूमि को छोटे-छोटे टुकड़ो में बेचना उक्त नियमों के विपरीत है। ऐसे प्रकरण नगरीय क्षेत्रों से लगे हुए ग्रामीण क्षेत्रों ज्यादा है इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ की धारा 61-क से 61-छ में काॅलोनी निर्माण से संबंधित प्रावधान दिये हुए है। जिसमें यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति कृषि भूमि को बिना व्यापवर्तित किये तथा काॅलोनी निर्माण का बिना रजिस्ट्रीकरण कराये आवासीय प्रयोजन हेतु छोटे-छोटे टुकड़ों में विक्रय करता है तो उसका यह कृत्य अवैध काॅलोनी निर्माण की श्रेणी में आयेगा। इस हेतु पंचायत राज अधिनियम की धारा 61-घ में अवैध काॅलोनी निर्माण के लिए दाण्डिक प्रावधान रखे गये है। जिले के अलावा मुख्यालय मे अवैध प्लाटिंग का कारोबार बेखौफ चल रहा है।
शासन-प्रशासन के सारे नियमों को परे रखकर यहां खेत खलिहान की आवासीय प्लाट के रूप में खरीदी बिक्री हो रही है स्थिति यह है कि शहर के आसपास के इलाकों में रोज कहीं ना कहीं काॅलोनी का नक्शा खींचा जा रहा है । जिला मुख्यालय में निम्न जगहों पर कृषि भूमि को इसी तरह अंजाम दिया गया है । जिसके सहित आसपास के इलाकों में भी इन दिनों अवैध प्लाटिंग का कारोबार जोर-शोर से हो रहा है ।
रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथाॅरिटी (रेरा) के नियम हुए दरकिनार !
नगर पालिका गरियाबंद सहित अन्य नगरीय निकाय क्षेत्रों में बड़े स्तर पर अवैध प्लाटिंग का खेल चल रहा है । यहां विल्डर, रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथाॅरिटी (रेरा) को दरकिनार कर प्लाट बेच रह है जिसे संबंधित विभाग मुखदर्शन बना भू-माफियाओं को संरक्षण दे रहे हैं। इसके चलते प्लाट खरीदने वाले लोग भविष्य में परेशानी में भी आ सकते है।
शहर व आसपास के गांव से लगे खेतों की बिक्री आवासीय प्लाट के रूप में बेधड़क हो रही है। इन खेतों को प्लाटिंग करने वाले लोग पहले एक आधी सड़क तैयार करते है इसके बाद वहां अपने तरीके से प्लाटिंग करते है। कृषि योग्य भूमि को प्लाट के रूप में विकसित कर खरीदी बिक्री के लिए नियमानुसार डायवर्सन करना पड़ता है, एक से अधिक प्लाॅट काटने के बाद नियमानुसार (काॅलोनाइजर) एक्ट के तह सभी फाॅर्मेलिटी पूरी करने के बाद उसकी खरीदी बिक्री होनी चाहिए, लेकिन बिना पंजीयन के ही न केवल आवासीय काॅलोनी डेवलप हो रहें है, बल्कि खेत खलिहान का आवास के रूप में धड़ल्ले से अवैधानिक प्लाटिंग भी हो रहा है। वहीं शहर में ऐसी कई काॅलोनियां है जिनके अवैध के मामले विभागों में अब भी वर्तमान में लंबित चल रहे हैं।
छत्तीसगढ़ रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथाॅरिटी (रेरा) के नियमानुसार किसी भी बिल्डर को जमीन की प्लाटिंग करने से पहले (रेरा) में रिजस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होता है इसके अलावा प्लाट बेचने से पहले बिल्डर वहां जन सुविधाओं से जूड़ी चीजें जिसमें पानी निकासी के लिए नाली, पानी, सड़क, बिजली व सीवर खेल मैदान आदि की सुविधा उपलबध करायेकगा मगर जिला मुख्यालय सहित अन्य नगरीय निकायों में अवैध प्लाटिंग का खेल जोरो पर चल रहा है। यहां कई एकड़ कृषि भूमि खेतों की अवैध प्लाटिंग कर खरीदारों को बेचा जा रहा है।
निजी भूमि पर काॅलोनी का निर्माण के लिए यह है नियम
काॅलोनी बनाने से पहले लाइसेंस लेना पड़ता है। (काॅलोनाइजर) को संबंधित नगर पालिका से डायवर्सन के लिए एनओसी लेनी होती है। पार्क के लिए भूमि आरक्षित रखनी होती है, टाउन एण्ड कंट्री प्लानिंग से भी काॅलोनी निर्माण के लिए अनुमति लेनी होती है। नगर निकाय में एक एकड़ से कम क्षेत्र में काॅलोनी बनाई जा रही है तो पालिका में वर्तमान रेट का 15 प्रतिशत आश्रय शुल्क जमा करना होता है, अगर एक एकड़ से ज्यादा जमीन है तो एयर डिस्टेंस दो किमी के भीतर ईडब्ल्यूएस बनाने के लिए जमीन छोड़नी होती है किंतु कोई भी मामला भीतर ही भीतर निपटारा कर दिया जाता है और तो और कुछ लोग तो ऐसे भी है जो सामान्य वर्ग के होते हुए भी आदिवासी वर्ग के नाम पर इस तरह का गोरख धंधा चलाकर उनका शोषण कर रहे है किंतु इस अंधेर नगरी चैपट राजा अंधेर नगरी में काला नियम चल रहा है जिसके चलते ही यहां इस कारोबार को बेखौफ होकर भी माफिया संचालित कर रहे है।
बाद में पड़ता है भुगतना
जमीन दलालों के वायदे और झूठे बातों के फेर में फंसकर जमीन व मकान खरीदने वाले लोगों को बाद में खामियाजा भुगतना पड़ सकता है सैकड़ो लोग ड्रायवर्सन व एनओसी के लिए महीनों से कलेक्ट्रोरेट व नगर पालिका दफ्तर के चक्कर काट रहे है। भू-माफियाओं के झांसे में आए लोगों को बुनियादी सुविधाओं के लिए भी तरसना पड़ रहा है। इसके बावजूद जिले में तेजी से बढ़ रहे अवैधानिक प्लाटिंग का कारोबार जोरों से चल रहा है।
शिकायत पर कार्यवाही नहीं !
संबंधित अधिकारियों, कर्मचारियों की मौन स्वीकृति समझ से परे है। आम चर्चा है कि इस खामोशी के बदले इन्हें नगद नारायण के अलावा जमीनें भी नजराने में दी जा रही है, इस नजराने की बदौलत आलम ये है कि भिखमंगी सूरत लिये यहां ज्वानिंग के लिए पहुंचे अधिकारी, कर्मचारी कुछ अर्से बाद ही बादशाही ठाठ बसर करते है। चार फुटिये बल्लियों ऊपर तक उछलते है और जाते वक्त नवाबों की रूखसती पाते है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस गोरख धंधे की शिकायत कुछ जागरूक नागरिकों के द्वारा जिला अनुभाग व तहसील स्तर पर की गई किन्तु सरकारी अमला उपहार पाकर आंनदित है, लाजमी है कि जिन भुख्खड़ो को कभी एक रोटी नसीब ना होती हो, उन्हें सामने वाला यदि छप्पन भोग परोसे तो वे उसके एहसानमंद होंगे ही। चलिए भर पेट भोजन के बाद अब गाइये…. अरपा पैरी के धार….. महानदी है हमार ….
