रायपुर (hct)। राजधानी रायपुर से महज पचास किलोमीटर दूर गोबरा नवापारा तहसील अंतर्गत ग्राम पंचायत सोनेसिल्ली के 23 गरीब भूमिहीन परिवारों को 1970 में ग्राम पंचायत कुर्रा के सहयोगी (आश्रित) ग्राम सोनेसिल्ली में शासन द्वारा जीवन यापन के लिए भूमि प्रदान की गई थी। किसी के पास दो एकड़ तो किसी के पास पांच एकड़ की खेती है। जिस पर ये परिवार पिछले 51 साल से कास्तकारी करते आ रहे हैं। इन किसानों के पास ऋण पुस्तिका भी है; वे हर साल सिंचाई का टैक्स भी पटा रहे हैं, लेकिन सरपंच श्रीमती गोमेश्वरी साहू, सरपंच पति अजय साहू और उपसरपंच ताराचंद साहू अपने समूह के साथ जबरदस्ती इन किसानों को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया गया।
मामले में स्थानीय विधायक धनेंद्र साहू का भी हाथ !
सत्ता पर बैठे नेता और अफसरनुमा गुर्गों के साथ मिलीभगत कर गांव के सरपंच पति ने इनकी धान की खड़ी फसल चरा दी। बताया गया कि सरपंच पति इनके खेतों में सरकारी योजना के तहत पौधरोपण करवा रहा है, और यह भी जानकारी मिली है कि इस मामले में स्थानीय कांग्रेसी विधायक धनेंद्र साहू का भी हाथ है! इसकी जानकारी शासन – प्रशासन को दिया गया था; लेकिन पीड़ितों के पक्ष में कोई सुनवाई नहीं होने से पीड़ित परिवारों ने शनिवार सुबह 5 बजे से पैदल मार्च कर राजधानी रायपुर में कलेक्टर और मंत्रियों के पास गुहार लगाने निकल पड़े।
प्रशासनिक नक्सलवाद का जिन्दा प्रमाण
किसान मामले को लेकर तहसीलदार, एसडीएम, कलेक्टर और विधायक सबसे गुहार लगा चुके हैं, लेकिन उन्हें कहीं से राहत नहीं मिली। विधायक ने तो किसानों को गाली-गलौच कर भगा दिया। नेताओं और अधिकारियों के इशारे पर उनके गुर्गे विरोध कर रहे किसानों पर लाठियां बरसा रहे हैं। पुलिस भी गुर्गों के साथ ही खड़ी है। ऐसे में बेचारे किसान आखिर अपनी गुहार किसके पास लगाएं ? जिन लोगों को यह गलतफहमी है कि छत्तीसगढ़ में किसान हितैषी सरकार है। राज्य के किसान बहुत खुशहाल हैं। उन्हें अपनी गलतफहमी जल्द से जल्द दूर कर लेना चाहिए। सरकार अपना चेहरा चमकाने विज्ञापनों पर हर दिन 40 लाख से अधिक फूंकती है, लेकिन चेहरे के पीछे की सच्चाई क्या है ये किसानों के आंसू खुद-ब-खुद बता रहे हैं।
क्या यही है “राजीव गांधी किसान न्याय योजना” ?
यह जो किसान आज रो रहे सिर्फ इसलिए नही की 51 वर्षो से जिस स्थान पर खेती करते आ रहे वो प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने इनसे जबरिया छीन ली बल्कि यह इसलिए भी आंसू बहा रहे की छल कपट वाली राज्य सरकार से इनसे धोखा ही मिला। क्या यही है “राजीव गांधी किसान न्याय योजना” ?
किसानों को लगा कि राजधानी में सरकार बैठती है। “सरकार के मुखिया भी कभी किसान हुआ करते थे“, चलो उन्हें अपनी आपबीती सुनाएंगे, शायद कोई समाधान निकल आये। लेकिन मुखिया के इशारे पर किसानों को बीच रास्ते ही रोक दिया गया। राजधानी अंदर उन्हें घुसने तक नहीं दिया गया। ‘सरकार’ ‘माई-बाप’ से मिलने की बात तो बहुत दूर है। गांव के करीब 150 किसान गांव से पैदल ही रायपुर; सरकार से मिलने आ रहे थे। उनके साथ महिलाएं और बच्चे भी थे। पुलिस ने किसानों को ‘सरकार’ से मिलने नहीं दिया तो बेचारे फूट-फूट कर रोने लगे।
बीच रास्ते माना बस्ती में एस डी एम के लिखित आदेश से पदयात्री हुए वापस।
अभनपुर एसडीएम निर्भय साहू को जैसे ही जानकारी हुआ, वे पदयात्रियों से मुलाकात करने; माना बस्ती वनोपज जांच नाका के पास पहुंच गए। पद यात्रियों के साथ चर्चा कर एस डी एम ने उक्त भूमि पर सरपंच के किसी भी प्रकार की हस्तक्षेप करने से स्थगन आदेश लिखित रूप से जारी किया।
इससे पदयात्री मानकर वापस हुए। चर्चा में पीड़ित किसान बिसहत राम साहू, विजय यादव, पंचूराम साहू, त्रिलोचन यादव, नंदलाल तारक, रामकुमार, साहू, उमा बाई साहू, दूमेश्वरी साहू, खिलेश्वर साहू, लीलाबाई यादव, युवराज तारक के साथ साथ अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के उपाध्यक्ष मदन लाल साहू, सचिव तेजराम विद्रोही, अभनपुर थाना प्रभारी बोधन साहू, माना थाना प्रभारी रावते, गोबरा नवापारा के सहायक निरीक्षक श्रवण मिश्रा विशेष रूप से उपस्थित रहे। पदयात्रा में महिला, पुरुष किसानों के साथ युवा बच्चे पूरे परिवार सम्मिलित रहे।
