दैनिक भास्कर बिजनेस समूह यूं तो अखबार व्यवसाय के लिए जाना जाता है, लेकिन हकीकत ये है कि अखबार की आड़ में दूसरे धंधों की पर्दादारी भी करता है। दैनिक भास्कर बिजनेस समूह रिअल एस्टेट, बिजली-खनन, टैक्सटाइल फैक्ट्री, शिक्षा, मॉल, फिल्म प्रोड्यूसिंग से लेकर कई धंधों में शामिल हैं। इन धंधों की गड़बडिय़ों को ढंकने के लिए भास्कर ने अखबार का खूब इस्तेमाल किया। हद ये कि भोपाल में वन क्षेत्र केरवा में भास्कर ने सारे नियमों को अखबार के दम पर बदलवाकर संस्कार वैली नाम से स्कूल डाल दिया।
जब यह स्कूल शुरू किया गया, तब पर्यावरण और वन क्षेत्र को नुकसान के खूब आरोप लगे। बावजूद इसके अखबार के जरिए गठजोड़ करके समूह ने स्कूल को वन क्षेत्र में ही शुरू कर दिया। बाद में इस क्षेत्र में अनेक बार बाघ घूमते पाए गए, लेकिन तब भास्कर ने यह कहा कि आवासीय इलाके में बाघ आए, जबकि इससे उलट भास्कर समूह ही बाघ के इलाके में जा पहुंचा था। इसी तरह एमपी नगर में संजय नगर झुग्गी-बस्ती को हटाया गया। इसके बाद भास्कर ने अखबार की पर्देदारी के जरिए वह जमीन सरकार से ले ली। उस पर आलीशान डीबी माल बना दिया गया। इसी माल में अब आयकर की टीम सर्च कर रही है।
सच आखिर सामने क्यों न आए ?
रायपुर। दैनिक अखबार “दैनिक भास्कर” को शासन से 11-6-84 को प्रेस स्थापित करने के उद्देश्य से 45725 वर्ग फुट शासकीय भूमि रूपए 10516750 प्रब्याजि राशि तथा रू 7887- 56 भू भाटक की राशि पटा कर मिली थी। उक्त प्रेस परिसर रायपुर स्थित रजबंधा मैदान में “नवभारत” के बाजू में ही है। 23-11-83 को बिक्री छांट का हवाला देकर तत्कालिन राजस्व निरीक्षक ने वर्ष 82 – 83 में उक्त इलाके की भूमि का प्रति वर्ग फुट कीमत रू 8.98 पैसे होना बताया गया था।
म.प्र. शासन राजस्व विभाग के पत्र क्र एफ 6 – 457/सात/सा.2 बी/83 दि भोपाल, दि 20-8-1985/26-08-1985 द्वारा कलेक्टर रायपुर को दैनिक भास्कर प्रेस रायपुर को उनके द्वारा आवेदित 62500 वर्ग फुट सरकारी भूमि की जगह 45725 वर्ग फुट भूमि का आबंटन ब्लाक नं 9 प्लाट नं 1 में से उक्त प्रब्याजि व भू भाटक की राशि लेकर स्थाई पटटे पर आबंटन करने का निर्देश जारी किया था। और प्रेस समयावधि के अंदर ही संपूर्ण राशि जमा कर देता है।
उक्त आबंटन आदेश में एक शर्त देखे- “यदि दी गई भूमि उस विशिष्ट प्रयोजन के लिये दी गई है, किसी अन्य प्रयोजन के उपयोग में लाई जाएगी तो शासन उसे वापस ले लेगा।” आप लोग व शासन उक्त प्रेस केम्पस की यहां प्रकाशित ताजी फोटो देखे कि एक बैंक काफी अरसे उक्त प्रेस के बगल मे प्रेस भूमि पर कैसा चल रहा है व किरायाखोरी हो रहा है, परंतु ध्रतराष्ट्र बने प्रशासन को यह नहीं दिखता या जान बूझकर वह यहां झाकना नही चाहता।
प्रेस समूह के नाम पर आबंटित भूमि पर डीबी मॉल..!
दैनिक भास्कर को राजस्व मामला क्रं.79 अ/20/(1) सन 83-84 के अंतर्गत एग्रिमेंट बाण्ड की औपचारिकता भी 14.09.1985 को सम्पन्न होकर 31.03.2015 तक 30 साल का पक्का पटटा दे दिया जाता है। उक्त प्रेस अभी अपना छापाखाना (छपाई मशीन) उक्त भूमि से हटाकर उरला ले गया है, इसकी जानकारी शासन को है या नही और प्रेस ने इसकी अनुमति शासन से ली या जानकारी दी है या नही, इस पर संज्ञान लिया जाना भी जरुरी हैं।
आज बड़े अखबारों में शासन के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष बड़े – बड़े विज्ञापन तथा स्तुति गान वाले समाचार कुछ ज्यादा ही दिख रहें है। पत्रकारिता जो कभी मिशन हुआ करती थी तथा समाजिक क्रांति, जनजागृति, नव चेतना व देशप्रेम व देशभक्ति का जज्बा लोगों में उत्पन्न करने का माध्यम होती थी, आज कहीं विलुप्त होती दिख रही है। दिन रात चौबीसों घंटे चैनलों में चलने वालों समाचारों को ही, इसी तरह यदि हम परोसते रहेंगे, तो इसका स्वाद कितना होगा। यदि हमें लोकतंत्र का चौथा खंबा माना जा रहा है, तो तीनों खबों को भी हमें देखना, संभालना, थामना, होगा। यदि हम किसी एक खंबे से चिपकने का मजा लेंगे, तो यह ईमानदारी नहीं होगी…
पत्रकार जगत की अहमियत आज सब से अधिक है, ऐसा हम मानते हूँ परन्तु इसकी अहमियत को बरकरार रखने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है। हमारे बड़े अखबार समूह, जो हमारे मार्गदर्शक, संरक्षक व सहारे है, यदि वे ही कहीं पर गलत है तथा शासन का लाभ उठा रहे है, तो वे हमारी जमात की लड़ाई कैसे लड़ेंगे ?
(उक्त लेख; समाचार पत्र “हाईवे क्राइम टाईम के जुलाई 2009“ के अंक में प्रकाशित अख़बार का अंश मात्र है)
मीडिया संस्थानों पर आयकर के छापे और सुलगते सवाल
सवाल ये कि जब इतने धंधे हैं, तो उनकी गड़बड़ी और अनियमिता पर कार्रवाई क्यों न हो ? भास्कर समूह का यह सच भी सामने आना चाहिए कि किस प्रकार अखबार की आड़ में दूसरे धंधों को बढ़ाया गया ! रिअल एस्टेट, बिजली, खनन, कपड़े से लेकर अनेक धंधों में अनियमिताएं, पर अखबार के जरिए इनकी पर्दादारी !
भास्कर के मप्र में ये प्रमुख बिजनेस…
- भोपाल के केरवा क्षेत्र में संस्कार वैली नाम से स्कूल। यह वन क्षेत्र रहा है। बाघ घूमते रहे हैं। केरवा के वन क्षेत्र में संस्कार वैली स्कूल के लिए नियमों को बदलकर मंजूरी दी गई। जिस समय स्कूल बना, उस समय यह पूरा वन क्षेत्र था।
- एमपी नगर में डीबी मॉल है। पहले इस जगह झुग्गी बस्ती थी। पॉश इलाके एमपी नगर में संजय नगर झुग्गी बस्ती थी। इस झुग्गी बस्ती को हटाकर बाद में सरकार के अफसरों से गठजोड़ करके भास्कर ने जमीन हथिया ली। इसके बाद डीबी माल बनाया गया।
- मंडीदीप क्षेत्र में टैक्सटाइल फैक्ट्री है। भास्कर इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड के नाम से यह फैक्ट्री संचालित की जाती है। यहां भी नियमों की अनदेखी पर पर्दादारी की गई।
- रियल एस्टेट में डीबी होम्स के तहत आवासीय कॉलोनियां। इंदौर में कॉलोनी है। रियल स्टेट में डीबी होम्स बड़े पैमाने पर काम कर रही है।
- डीबी पॉवर कंपनी है। बिजली सेक्टर में काम है, लेकिन मप्र में बिजली उत्पादन नहीं है। बिजली कंपनियों के तहत रीडिंग टेंडर और मेन पावर में भी डीबी पॉवर काम करती है।
- सिंगरौली में डीबी पॉवर के नाम पॉवर प्लांट के लिए जमीन ली गई है। इस पर काम शुरू नहीं हुआ है। यह जमीन सरकार ने ही दी थी।
- मुम्बई में फिल्म प्रोड्यूसिंग की कंपनी है। मुम्बई में कंपनी का स्टूडियो भी है। अनेक फिल्मों में ज्वाइंट प्रोड्सर पार्टनर बने।
- अभिव्यक्ति एनजीओ का संचालन भास्कर ग्रुप। यह सांस्कृतिक और शैक्षिक गतिविधि में। इस एनजीओ को अनेक बार सरकार से बड़े अनुदान भी मिले।
- भास्कर ग्रुप का पब्लिकेशन हाउस किताबों की प्रिंटिंग भी करता है। यह पब्लिकेशन हाउस अखबारों की प्रिंटिंग के साथ सरकारी प्रिंटिंग भी करता रहा है।