अब से पहले सत्ता का इससे घिनोना चेहरा नहीं देखा होगा…
क्रेडाई की मीटिंग के ठीक कुछ घण्टे बाद ही सरकार ने रेलवे को पत्र लिखकर श्रमिक रेलगाड़ियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए आदेश दे दिया। ये बेहद धूर्त और घिनोना फैसला ही नहीं है, बल्कि प्रवासी मजदूरों का अपमान भी है। ये फैसला मजदूरों और किसानों की डिग्निटी का उपहास उड़ाने जैसा है।
कल कर्नाटक सरकार ने श्रमिकों को लाने-ले जाने वाली ट्रेनों पर प्रतिबंध लगा दिया। एक तुगलकी फैसले की वजह से लाखों प्रवासी मजदूर कर्नाटक राज्य में फंसे रह गए हैं…
कोई भी सरकार अपनी समझ के हिसाब से नीतिगत फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है। सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े फैसले बेशक कठोर हो सकते हैं लेकिन आप जब श्रमिक ट्रेनों पर लगाए गए प्रतिबंध पीछे के असली कारण को जान लेंगे तो आपको इस सरकार और इसके औपनिवेशिक चरित्र से नफरत हो जाएगी।
मंगलवार के दिन CREDAI के मेम्बर सरकार से मिले। क्रेडाई रियलस्टेट के बिल्डरों और ठेकेदारों की संस्था है क्रेडाई पूरे देशभर के रियलस्टेट उद्योगपतियों, बिल्डरों, ठेकेदारों को रिप्रजेंटेट करती है। ये इतनी ताकतवर लॉबी है कि फरवरी, 2019 में प्रधानमंत्री मोदी भी इसके एक सेमिनार में भाषण देने के लिए पहुंचे थे।
पूरे देश भर में सरकारों ने प्रवासी मजदूरों के लाने-ले जाने की व्यवस्था के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू किए हुए हैं। कर्नाटक राज्य के “सेवा सिंधु पोर्टल” पर 2,40,000 से अधिक प्रवासी मजदूरों ने खुद को रजिस्टर करवाया। अपढ़ और कम पढ़े लिखे मजदूरों ने इस रजिस्ट्रेशन के लिए कितना धूप-पसीना किया होगा आप अंदाजा लगा ही सकते हैं, जानना उतना भी मुश्किल नहीं है।
क्रेडाई यानी बिल्डरों की लॉबी, कर्नाटक के मुख्यमंत्री से मंगलवार के दिन मिली, क्रेडाई ने सरकार से श्रमिकों को ले जाने वाली रेलगाड़ियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा, चूंकि उनके प्रोजेक्ट्स रुके पड़े हुए हैं। बिल्डरों को अपने प्रोजेक्ट्स पूरे करने हैं, मजदूर चले गए तो बिल्डरों के कामों में कौन खपेगा?
मजदूर बता रहे हैं कि ठेकेदार पैसे नहीं दे रहे, दो-दो महीने की मजदूरी रोक रखी है, ताकि मजदूर घर वापस न चले जाएं। मजदूरों के पास पैसे भी नहीं, खाना भी नहीं है, ऊपर से उन्हें अपने राज्यों में वापस जाने नहीं दिया जा रहा क्योंकि वे चले गए तो लॉकडाउन खुलने के बाद इमारतों के काम में कौन घिसेगा।
पूरा देश 15 अगस्त को आजादी सेलेब्रेट करता है। क्या मजदूरों की कोई आजादी नहीं है? क्या ये बंधुआ मजदूरी नहीं है? श्रमिकों को कब काम करना है, कब जान बचानी है, कब घर वापस जाना है, कब मजदूरी देनी है ये भी सरकार और अमीरों की लॉबी ही तय करेगी?
क्रेडाई की मीटिंग के ठीक कुछ घण्टे बाद ही सरकार ने रेलवे को पत्र लिखकर श्रमिक रेलगाड़ियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए आदेश दे दिया।
लाखों प्रवासी मजदूर बंगलुरू जैसे महंगे शहर में ही फंसे रह गए। क्या रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया का अब कोई महत्व नहीं रह गया? ये कितना बड़ा मानसिक दोहन है? क्या श्रमिकों को मेंटल डिप्रेशन नहीं होते? क्या उन्हें अंग्रेजी वाली एंग्जाइटी नहीं आती? क्या मजदूर औरतों को पैनिक अटैक नहीं पड़ते? जो आपको पड़ते हैं?
ये बेहद धूर्त और घिनोना फैसला ही नहीं है, बल्कि प्रवासी मजदूरों का अपमान भी है। ये फैसला मजदूरों और किसानों की डिग्निटी का उपहास उड़ाने जैसा है। इस औपनिवेशिक फैसले को जल्दी से जल्दी वापस लिया जाना चाहिए।
साथियों, काले अंग्रेजों से सावधान !
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