सिकल सेल संस्थान में फैसले ठंडे बस्ते में, श्रमिक और मरीज दोनों बेहाल
स्वास्थ्य विभाग की बैठकों में बजट पास होता है, पर श्रमिकों को श्रम सम्मान राशि और मरीजों को बुनियादी सुविधा तक नहीं, मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल की अध्यक्षता वाली समिति के निर्णय धरे रह गए।

“सिकल सेल” (आनुवंशिक रक्त विकार) मरीजों को शासन की ओर से मुफ्त जांच, दवा, इलाज और आर्थिक सहयोग उपलब्ध कराने की नीति है। लेकिन वास्तविकता यह है कि कई बार दवाइयों की उपलब्धता, जांच की सुविधा और प्रशासनिक लापरवाही के कारण ये सुविधाएँ कागजों तक सीमित रह जाती हैं।
रायपुर hct : छत्तीसगढ़ शासन के स्वास्थ्य विभाग की चमकती बैठकों और मंत्रालयी घोषणाओं के बीच सिकल सेल संस्थान की हकीकत बेहद निराशाजनक है। 11 दिसंबर 2024 को मंत्रालय महानदी भवन, नया रायपुर में समिति की 10वीं बैठक हुई थी। इस बैठक की अध्यक्षता स्वयं माननीय मंत्री एवं समिति अध्यक्ष श्याम बिहारी जायसवाल ने की थी। बैठक में वित्तीय वर्ष 2024–25 का बजट पारित हुआ और साथ ही यह निर्णय भी लिया गया कि संस्थान में स्वीकृत सेटअप पर कार्यरत दैनिक श्रमिकों को श्रम सम्मान राशि ₹4000 दी जाएगी।
लेकिन नौ महीने बीत चुके हैं, और आज तक उन श्रमिकों को एक पैसा भी नहीं मिला। सर्व विभागीय दैनिक श्रमिक कल्याण संघ का आरोप है कि पूर्व महानिदेशक डॉ. उषा जोशी ने न केवल संचालन मंडल के निर्णय की अनदेखी की बल्कि श्रमिक हितैषी नीति की भी खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई। ऊपर से संस्थान में बैठे वित्त और लेखा अधिकारी तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते रहे, ताकि मामला आगे ही न बढ़े।
मरीजों की परेशानियाँ—जिम्मेदारों की चुप्पी
यह लापरवाही केवल श्रमिकों तक सीमित नहीं रही। मरीजों की बुनियादी सुविधाएँ भी बंद कर दी गईं। उदाहरण के लिए—
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एक्सपायरी दवा प्रकरण: कुछ महीने पहले फार्मासिस्ट ने एक मीडियाकर्मी को एक्सपायरी दवा थमा दी। शिकायत हुई, लेकिन फार्मासिस्ट पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। उलटे अब मरीजों को बाज़ार से महंगे दामों पर हाइड्रॉक्सियूरिया कैप्सूल खरीदने पड़ रहे हैं।
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CBC जांच बंद: पिछले ढाई साल से CBC जांच संस्थान में बंद है। मरीजों को अब निजी लैब में ₹250–₹300 खर्च करने पड़ रहे हैं। यह वही जांच थी जो पहले यहाँ मुफ्त होती थी।
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OPD की अव्यवस्था: OPD का समय सुबह 9 बजे तय है, लेकिन डॉक्टर, टेक्नीशियन और फार्मासिस्ट आराम से 10:30–11 बजे पहुंचते हैं। 22 अगस्त को मरीज ने लिखित शिकायत की, मगर कार्रवाई का नाम तक नहीं।
सेंटर ऑफ एक्सीलेंस—चार साल में सिर्फ नींव
2021 में जिस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के लिए ₹48 करोड़ की स्वीकृति मिली थी, उसका सपना भी अधूरा है। 2024 तक तैयार होना था, लेकिन पूर्व महानिदेशक की लापरवाही से चार साल में केवल नींव की खुदाई हुई और फिर काम ठप हो गया।
बैठक की अध्यक्षता करने वाले मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के लिए यह सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर उनकी उपस्थिति में हुए निर्णयों को क्यों दरकिनार किया गया? क्या उनका आदेश सिर्फ कागज़ तक सीमित था? या फिर विभाग के अफसर मंत्री को ही ठेंगा दिखा रहे हैं…?
